बैंकों का एनपीए कई दशकों के निचले स्तर 2.3 फीसदी पर, आगे बढ़ेगा
मुंबई- भारतीय बैंकों का सकल बुरा फंसा कर्ज यानी जीएनपीए मार्च, 2025 में घटकर कई दशकों के निचले स्तर पर आ गया है। इसका प्रमुख कारण कुछ कर्जों को बट्टे खातों में डालने और कुछ को राइट ऑफ करना रहा है। हालांकि, मार्च, 2027 तक यह फिर से बढ़कर 2.6 फीसदी पर जा सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर, 2024 में जीएनपीए का स्तर 2.6 प्रतिशत था। पिछले दशक के उत्तरार्ध में कॉरपोरेट क्षेत्र में तनाव के कारण बड़े पैमाने पर बैंकिंग प्रणाली के लिए एनपीए सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दा रहा है। हालांकि, तब से इसमें सुधार आ रहा है।
बैंकों के जीएनपीए अनुपात में राइट ऑफ 2023-24 के 29.5 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 31.8 प्रतिशत हो गया। इसमें ज्यादातर हिस्सा निजी और विदेशी बैंकों का था। कृषि क्षेत्र का जीएनपीए में सबसे अधिक 6.1 प्रतिशत योगदान रहा। पर्सनल लोन के मामले में 1.2 प्रतिशत पर स्थिर रहा। क्रेडिट कार्ड सेगमेंट में सरकारी बैंकों का जीएनपीए 14.3 प्रतिशत हो गया, जबकि निजी क्षेत्र का 2.1 प्रतिशत था।
बैंकों की ओर से बेतहाशा खराब कर्ज बांटने पर आरबीआई को हस्तक्षेप करना पड़ा। साथ ही, आरबीआई ने ऋणदाताओं को परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा के माध्यम से कुछ ऋणों को एनपीए के रूप में वर्गीकृत करने के लिए मजबूर किया। इस वजह से सरकार को बार-बार बैंकों में पूंजी डालनी होती थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, जीएनपीए में बड़े कर्जदारों का हिस्सा 37.5 प्रतिशत और कुल बकाया कर्ज में 43.9 प्रतिशत था। इस समूह का जीएनपीए अनुपात सितंबर, 2023 में 3.8 प्रतिशत से घटकर मार्च 2025 में 1.9 प्रतिशत हो गया। शीर्ष 100 उधारकर्ताओं में से किसी को भी एनपीए के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है। पिछले छह महीनों में कुल कर्ज में उनकी हिस्सेदारी 15.2 प्रतिशत पर स्थिर रही है।