बैंकों में पैसा डूब जाए तो भी आपको पाने का है अधिकार, यह है बीमा का नियम

मुंबई- रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने महाराष्ट्र मुंबई के न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक पर रोक लगा दी है। यह रोक बैंक में कुछ गड़बड़ी सामने आने के बाद लगाई गई है। यह पहली बार नहीं है कि रिजर्व बैंक ने किसी बैंक पर रोक लगाई है। पिछले साल अप्रैल में केंद्रीय बैंक ने महाराष्ट्र के शिरपुर मर्चेंट्स को-ऑपरेटिव बैंक पर भी बैन लगाया था। यही नहीं इससे पहले पीएमसी और यस बैंक पर भी रिर्जव बैंक रोक लगा चुका है। वहीं दो साल पहले रिजर्व बैंक ने उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के सहकारी बैंकों पर भी रोक लगाई थी।

कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें बैंकों ने लोगों की जमा पूंजी के साथ धोखाधड़ी की है। शिकायत मिलने पर रिजर्व बैंक इन बैंकों की जांच करता है। शुरुआती जांच सही पाए जाने पर रिजर्व बैंक इन बैंकों पर रोक लगा देता है। इस दौरान बैंक ग्राहकों की रकम निकासी को सीमित कर सकता है या रोक सकता है। यह बैन तब तक रहता है जब तक कि जांच पूरी न हो जाए।

अगर बैंक डूब जाता है या रिजर्व बैंक उसका लाइसेंस रद्द कर देता है तो ग्राहकों को अधिकतम 5 लाख रुपये तक ही वापस मिलते हैं। फिर चाहें बैंक में उनके करोड़ों रुपये ही क्यों न जमा हो। रिजर्व बैंक ने कुछ साल पहले यह स्पष्ट किया था कि ग्राहक की जमा रकम का 5 लाख रुपये का इंश्योरेंस होता है। डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन (DICGC) नियमों के तहत यह रकम इंश्योर्ड होती है।

किसी एक बैंक में अकाउंट में 2 लाख रुपये, उसी बैंक में 2 लाख रुपये की एफडी, उसी बैंक के दूसरे अकाउंट में 3 लाख रुपये जमा हैं। ऐसे में आपके उस बैंक में कुल 7 लाख रुपये जमा हैं। अगर वह बैंक डूब जाता है तो आपको अधिकतम 5 लाख रुपये ही मिलेंगे। फिर चाहे एक ही बैंक की अलग-अलग ब्रांच में रकम जमा क्यों न हो।

अगर आप अपने पैसे को सेफ रखना चाहते हैं तो पूरी रकम एक ही बैंक में न रखें। इस रकम को अलग-अलग बैंकों में जमा करें। मान लें कि आपके 8 लाख रुपये दो अलग-अलग बैंक में जमा हैं। एक बैंक में 4 लाख और दूसरे बैंक में भी 4 लाख रुपये हैं। दोनों बैंक डूब जाते हैं। ऐसे में पूरे 8 लाख रुपये मिल जाएंगे। इंश्योरेंस के नियमों के मुताबिक दोनों बैंकों से पूरी रकम मिल जाएगी।

अपना पैसा छोटे और लोकल बैंक में न रखें। इसे पब्लिक सेक्टर बैंकों (PSU) और बड़े प्राइवेट बैंकों में जमा करें। इसकी वजह है कि यहां कॉर्पोरेट गवर्नेंस का स्तर बहुत ऊंचा होता है और रेग्यूलेशंस का भी। जब तक जरूरी न हो को-ऑपरेटिव बैंक में डिपॉजिट करने से बचें। साथ ही केवल एक बैंक के साथ अपने डिपॉजिट लिमिट 5 लाख रुपये को बनाए रखें।

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