मनमोहन सिंह के जाते ही उनके हस्ताक्षर वाले नोटों की एक दिन में जमकर बिक्री
मुंबई- पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार रात निधन हो गया। वह वित्त सचिव, आरबीआई गवर्नर और वित्त मंत्री भी रहे थे। इस तरह वे देश के अकेले प्रधानमंत्री थे जिनके हस्ताक्षर देश के नोटों पर थे। उन्हें 1976 में वित्त सचिव बनाया गया था। एक रुपये के नोट पर वित्त सचिव के हस्ताक्षर होते थे।
मनमोहन 16 सितंबर 1982 से 14 जनवरी 1985 तक आरबीआई के गवर्नर रहे। एक रुपये के छोड़कर बाकी सभी करेंसी नोट पर आरबीआई गवर्नर के साइन होते हैं। मनमोहन सिंह के निधन की खबर आते ही लोग धड़ाधड़ उनके साइन वाले नोट खरीदने गए।
एंटीक और कलेक्टिबल्स बेचने वाले ऑनलाइन मार्केटप्लेस BidCurios पर मनमोहन सिंह के साइन वाला 100 रुपये का नोट आउट ऑफ स्टॉक हो गया। सुबह यह नोट 300 रुपये में मिल रहा था। इसी तरह उनके हस्ताक्षर वाला एक रुपये का नोट 300 रुपये में मिल रहा है। लेकिन दिक्कत यह है कि स्टॉक में केवल एक ही नोट है। यह 1978 का नोट है जिसमें बतौर वित्त सचिव मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर हैं। उनके साइन किए गए 16 नोटों का सेट 12,500 रुपये में मिल रहा है लेकिन यह भी केवल एक ही स्टॉक में है। इसमें एक रुपये के पांच नोट, दो रुपये के तीन नोट, पांच रुपये के दो नोट, दस रुपये के तीन नोट और 20, 50 और 100 रुपये के एक-एक नोट हैं।
मनमोहन सिंह को ऐसे समय में वित्त मंत्री की कमान मिली थी जब देश की इकॉनमी बहुत नाजुक दौर से गुजर रही थी। देश का सोना विदेशों में गिरवी रखा जा चुका था और आयात के भुगतान के लिए केवल दो सप्ताह लायक विदेशी भंडार बचा था। ऐसे में मनमोहन सिंह ने जुलाई 1991 में एक ऐसा ऐतिहासिक बजट पेश किया जिसने भारतीय इकॉनमी की दिशा और दशा को हमेशा के लिए बदल दिया। आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनमी है और जल्दी ही तीसरे नंबर पर पहुंच सकती है।
जब वर्ष 1991 में भारत पर संकट के बादल छा गए थे और सोने को गिरवी रखना पड़ा था तब डॉ मनमोहन सिंह के ही वो फैसले थे जिन्होंने अर्थव्यवस्था को पार लगाया। इस संकट से उबरने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के मार्गदर्शन में वित्त मंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने कई बड़े आर्थिक सुधार किए जिनका जिक्र आज भी होता है। आज हम डॉ सिंह के कुछ उन्ही फैसलों पर प्रकाश डालेंगे जिनकी देश ही नहीं दुनिया में भी गूंज रही।
साल 1991 में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में भारी गिरावट आ गई थी। देश का फोरेक्स रिजर्व मात्र दो सप्ताह तक की आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए बचा था। तब मनमोहन सिंह की नीति ने देश को संकट से उबारा। डॉ सिंह ने न्यू इकनॉमिक पॉलिसी 1991 (NEP 1991) का मसौदा तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी। एनईपी 1991 ने न केवल उद्योग को बंदिशों से मुक्त किया, बल्कि फिस्कल और मॉनेटरी अनुशासन भी लाया जिससे बड़े पैमाने पर प्राइवेटाइजेशन का रास्ता खुला। इस नीति ने बैंकिंग क्षेत्र को भी रेगुलेटर के अतिरिक्त नियंत्रण से मुक्त कर दिया था।
जून 2005 में सूचना का अधिकारी या आरटीआई (RTI) अधिनियम पारित किया गया था। यह एक ऐसा कानून है जो नागरिकों को सूचना लेने का अधिकार देता है। यह अधिनियम डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते पेश किया गया था।
तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बुश और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 18 जुलाई 2005 में सिविलियन न्यूक्लियर डील और बाहरी अंतरिक्ष सहयोग की योजना पर समझौते का एलान किया था। मार्च 2006 में पूरी हुई इस डील ने सभी को हैरान कर दिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिकी कांग्रेस ने 30 वर्षों में पहली बार भारत को असैन्य परमाणु फ़्युअल और टेक्नोलॉजी के निर्यात की अनुमति देने के लिए अमेरिकी कानून को बदलने वाले कानून को मंजूरी दी थी।