बद से बदतर हो रही स्थिति को सरकार ने बचाया- डॉ. वी अनंत नागेश्वरन

दुनिया भर में उथल-पुथल भरा माहौल चल रहा है। हमारे पास कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन हमें 6.5 प्रतिशत के वास्तविक विकास को हासिल करने का विश्वास है।  

नॉमिनल जीडीपी की वृद्धि लगभग 11% होगी। हालांकि सरकार ने बजट में काफी सावधानीपूर्वक इसे 10.5 प्रतिशत बताया है। पिछले चार वर्षों में हमारा बजट विवेकपूर्ण, प्रोग्रेसिव और पारदर्शी रहा है और क्वालिटी निवेश बढ़ा है। बेकार के खर्चों पर लगाम लगी है। तो कुल मिलाकर मुझे लगता है कि विश्व की स्थिति को देखते हुए, जो अभी भी बहुत चुनौतीपूर्ण है, हमारी विकास की संभावनाएं काफी अच्छे हैं। 

सवाल- 140 करोड़ की आबादी वाले देश में आयकर भरने वालों की संख्या बहुत कम है। करदाताओं का दायरा बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए? 

जवाब- यदि आप दूसरी अर्थव्यवस्थाओं को देखें, जब वे आज के भारत जैसी स्थिति में थीं, तो उनके पास भी यही समस्या थी। जैसे-जैसे हमारी अर्थव्यवस्था और बड़ी होती जाएगी, करदाताओं की संख्या भी अपने आप बढ़ती जाएगी। अभी यह वास्तव में बढ़ रहा है। अभी हम कहते हैं कि टैक्स-टू-जीडीपी अनुपात जीडीपी का केवल 11% है। यह वही है, लेकिन जीडीपी बढ़ रही है। इसलिए टैक्स का आधार भी बढ़ रहा है और अनुपात स्थिर है। 

कुछ लोग यह तर्क देंगे कि यदि टैक्स और सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात ऊपर जा रहा है, तो अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक टैक्स लगाया जा रहा है। इसलिए हमारा टैक्स जीडीपी अनुपात स्थिर है क्योंकि जीडीपी बढ़ रही है, इसलिए टैक्स रेवेन्यू भी बढ़ रहा है। लेकिन हम नहीं चाहते कि टैक्स और जीडीपी का अनुपात तेजी से बढ़े ताकि कोई कह सके कि भारत ज्यादा टैक्स लगाने वाली अर्थव्यवस्था है। हमें वह गलती नहीं करनी चाहिए। लेकिन यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि अप्रत्यक्ष टैक्स और करदाताओं की संख्या हर साल बढ़ रही है। जब हम आज की समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं जैसा बन जाएंगे तो हमारा टैक्स बेस और भी बहुत बड़ा होगा। 

सवाल-सरकार लगातार अर्थव्यवस्था में सुधार पर ध्यान दे रही है। ऐसा कोई सुधार है जो आपको लगता है कि इसे प्राथमिकता के आधार पर करना चाहिए? 

जवाब- सरकार हर जगह सही काम कर रही है, चाहे वह निवेश हो, चाहे वह ईज ऑफ डूइंग बिजनेस हो, ईज ऑफ लिविंग हो। अनुपालन को हटाना हो या टैक्स दर को उचित रखना हो या फिर देश की युवा आबादी में स्किल पैदा करना हो। हम सभी क्षेत्रों में हर संभव तरीके से सबसे अच्छा कर रहे हैं। बेशक, न केवल केंद्र सरकार द्वारा, बल्कि राज्य सरकारों द्वारा और भी अच्छा किया जा सकता है और किया भी जाना चाहिए। 

हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि बिजली उत्पादन और बिजली वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) अच्छा काम करें। इसका मतलब है कि उद्योग के लिए बिजली सस्ती और उसकी आपूर्ति विश्वसनीय होनी चाहिए। दूसरा, मुझे लगता है कि हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि बड़ी से बड़ी आबादी में स्किल सेट का विकास जारी रहे, क्योंकि 21वीं सदी की चुनौतियां 20वीं सदी की चुनौतियों से अलग होंगी। इसलिए 150 नर्सिंग कॉलेज बनाना इस दिशा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि बुजुर्गों की देखभाल (एल्डरकेयर) विश्व स्तर पर और भारत में भी एक बड़ा अवसर बनने जा रहा है। 

बजट में भी सरकार ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए सेंटर बनाने का जिक्र किया है। इसलिए हम 21वीं सदी की चुनौतियों को देख रहे हैं और पहले से ही स्किलिंग तैयार कर रहे हैं। हमें अनावश्यक प्रक्रियाओं को हटाना जारी रखना होगा, जिसमें बहुत समय और प्रयास लगता है, विशेष रूप से छोटे व्यवसायों से। 

सवाल- पिछले 20 साल में अर्थव्यवस्था किस तरह से बदली है और अगले 5 से 10 साल में किस तरह से बदलेगी? 

जवाब- हमने अपनी अर्थव्यवस्था खोली है, जिसका अर्थ है कि हम दुनिया के लिए खुले हैं। हम दुनिया को प्रभावित कर रहे हैं। हम अब एक क्लोज्ड इकोनॉमी में नहीं हैं। यह एक बड़ा बदलाव है जो हुआ है। हमारे सेवा क्षेत्र की जीडीपी में हिस्सेदारी पिछले 20 वर्षों में बहुत अधिक रही है। मुझे लगता है भारत मैन्युफैक्चरिंग पावर हाउस बनेगा। यह दुनिया के लिए एक मैन्युफैक्चरिंग केंद्र बन जाएगा और जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा बढ़ेगा और यह एक बहुत बड़ा बदलाव होगा। लेकिन किसी भी तरह से कृषि का महत्व कम नहीं होगा। मुझे लगता है कि कृषि, मैन्युफैक्चरिंग और सेवाओं के बीच आगे जाकर बेहतर संतुलन होगा। 

सवाल-मंदी ने यूरोप को किस तरह प्रभावित किया है और मध्य अवधि में यह भारतीय उद्योग को किस तरह से प्रभावित करेगा? 

जवाब- सबसे पहले तो विश्व अर्थव्यवस्था में इस समय कोई मंदी नहीं है। यह आ सकती है, ऐसा कहा जा रहा है । लेकिन हम नहीं जानते कि ऐसा होगा या नहीं। लेकिन अगर मंदी आती है तो यह भारत के लिए निर्यात को प्रभावित करेगा। यह अपने साथ साथ कुछ अच्छी चीजें भी ला सकता है। तेल की कीमत नीचे जाएगी, अमेरिका ब्याज दरें बढ़ाना बंद कर देगा, डॉलर कमजोर हो जाएगा, विकसित देशों से विकासशील देशों में अधिक पैसा आएगा। तो कई मायनों में, अगर विकसित देशों में मंदी है, तो भारत के लिए पाज़िटिव बातें, निगेटिव से अधिक हो सकती है। 

सवाल- अमेरिका में बढ़ती ब्याज दर का भारतीय रुपये पर कितना प्रभाव पड़ेगा? 

जवाब- इसका ज्यादातर असर पिछले साल महसूस किया गया था। इस साल हमें नहीं पता कि ब्याज दरें बनी रहेंगी या और ज्यादा ऊपर जाएंगी। यह कुछ और समय तक बढ़ना जारी रह सकती है। इस समय ब्याज दरें बहुत अधिक नहीं हैं और वे बिल्कुल सही लेवल पर हैं। अमेरिकी ब्याज दरें इस साल बढ़ सकती हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि रुपये पर पिछले साल की तरह इस साल भी कोई दबाव होगा। क्योंकि हमारी ब्याज दरें भी काफी अधिक हैं जो सुनिश्चित करती हैं कि रुपया कमजोर न हो। 

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