35 रुपए की वैक्सीन की हजारों रुपए कीमत लेती हैं कंपनियां
मुंबई- जिस कोरोना ने 2020 से पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है, वही कोरोना फार्मा इंडस्ट्री के लिए कमाई का जरिया बन गया है। कमाई भी एक दो गुना नहीं, बल्कि कई गुना। 35 रुपए की वैक्सीन हजारों रुपए में बिक रही है।
पिछले हफ्ते ओमिक्रॉन वैरिएंट के फैलने की खबर आते ही फाइजर और मॉडर्ना के 8 इन्वेस्टर्स ने 75 हजार करोड़ रुपए कमा लिए। नए वैरिएंट और बूस्टर डोज को वैक्सीन कंपनियां कमाई का जरिया बना रही हैं। कोरोना का डर दिखाकर दुनिया भर में वैक्सीन कंपनियों की मनमानी चल रही है। माना जा रहा है कि सरकारें, डॉक्टर और साइंटिस्ट भले ही कोरोना महामारी को खत्म करने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन बड़ी फार्मा कंपनियां ऐसा नहीं चाहती।
पीपुल्स वैक्सीनेशन अलायंस (PVA) के एक एनालिसिस के मुताबिक, वैक्सीन की तीन बड़ी कंपनियों फाइजर, मॉडर्ना और बायोएनटेक ने 2021 में हर सेकेंड 75 हजार रुपए का मुनाफा कमाया। इन कंपनियों ने अपने वर्चस्व का इस्तेमाल करके अमीर देशों की सरकारों से मुनाफे वाले कॉन्ट्रैक्ट किए। वहीं गरीब देशों की वैक्सीन की मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
इस वक्त गरीब देशों की 98% आबादी पूरी तरह वैक्सीनेटेड नहीं है। ‘आवर वर्ल्ड इन डेटा’ के मुताबिक दक्षिण अमेरिका में 55% लोग कोविड वैक्सीन की पूरी खुराक ले चुके हैं। उत्तरी अमेरिका, यूरोप और ओशेनिया में भी आधे से ज्यादा लोगों को पूरी खुराक लग चुकी है।
एशिया में अभी 45% लोग ही कोविड वैक्सीन की पूरी खुराक ले पाए हैं, जबकि अफ्रीका में यह आंकड़ा महज 6% है। इजराइल जैसे देश चौथी डोज की तैयारी कर रहे हैं, वहीं गरीब देशों की 94% आबादी को पहला डोज ही नसीब नहीं हुआ। WHO का मानना है कि वैक्सीन में ऐसी असमानता बनी रही तो कोरोना महामारी जल्द खत्म नहीं होगी।
PVA के एनालिसिस के मुताबिक, वैक्सीन कंपनियों को अरबों डॉलर की सरकारी फंडिंग मिली है। इसके बावजूद उन्होंने दवा बनाने की तकनीक और अन्य जानकारियां गरीब देशों की कंपनियों से साझा करने से इनकार कर दिया। ऐसा करके लाखों जानें बचाई जा सकती थीं। वैक्सीन कंपनियां किसी भी कीमत पर पेटेंट अपने पास रखना चाहती हैं। एक ब्रिटिश अखबार द गार्जियन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, फाइजर को वैक्सीन का एक डोज तैयार करने में 1 डॉलर यानी करीब 75 रुपए खर्च आता है। इसे कंपनी 30 डॉलर में बेचती है। यूके जैसे देश 30 गुना ज्यादा कीमत देकर फाइजर की वैक्सीन खरीद रहे हैं।
डाउन टु अर्थ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रस्ताव को रोकने के लिए अमेरिकी फार्मा कंपनियों के संगठन ‘द फार्मास्यूटिकल रिसर्च एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ अमेरिका’ ने महज कुछ दिनों में 50 मिलियन डॉलर, यानी करीब 3 हजार 700 करोड़ रुपए से अधिक नेताओं पर और लॉबिंग में खर्च कर दिए। यही नहीं दवा कंपनियों की मजबूत लॉबिंग की वजह से भारत का यह प्रस्ताव मंजूर नहीं हो पाया।