मेटा और इंस्टाग्राम के विज्ञापन पर कसी गई लगाम, अब देने होंगे डिस्क्लेमर
मुंबई- मेटा और इंस्टाग्राम पर दिए जाने वाले कुछ विज्ञापनों पर लगाम लगाने की तैयारी शुरू हो चुकी है। अब कुछ विशेष कैटेगरी के विज्ञापनों के लिए आपको डिस्क्लेमर भी साथ में देना होगा।
मेटा के मुताबिक, इसके जरिए लोगों के लिये ज्यादा पारदर्शिता लाने की कोशिश है। साथ ही चुनावों के मद्देनजर ईमानदारी के प्रयासों को बढ़ाने की भी तैयारी है। मेटा ने भारत में सामाजिक मुद्दों वाले विज्ञापनों पर प्रवर्तन (एनफोर्समेंट) के लॉन्च की घोषणा की है। इसी महीने से इसे शुरू भी कर दिया गया है। इसके मुताबिक, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सामाजिक मुद्दों पर विज्ञापन चलाने वाले हर व्यक्ति का अथरॉइज्ड होना जरूरी होगा। उसे अपने विज्ञापनों पर डिस्क्लेमर को शामिल करना होगा। इस प्रकार लोग इन विज्ञापनों को चलाने वाले व्यक्ति या संस्था का नाम देख सकेंगे।
पिछले कुछ सालों में मेटा ने चुनावों की बेहतर सुरक्षा, और लोगों को वोट देने और विभिन्न धारणाओं को शेयर करने के लिए एक सुरक्षित प्लेटफॉर्म बनाने में के लिए टीमों और टेक्नोलॉजीज में निवेश किया है। मेटा का मानना है कि तमाम तरह के भाषण चुनाव स्थल पर लोगों के मत पर प्रभाव डालते हैं। इनमें वे विज्ञापन शामिल हैं, जो सामाजिक मुद्दों, चुनावों या राजनीतिक नीति वाले होंगे। साथ ही महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा, बहस या वकालत या विरोध भी इन विज्ञापनों में शामिल होंगे।
यह एनफोर्समेंट सामाजिक मुद्दों के 9 विषयों पर आधारित विज्ञापनों पर लागू होगा। इसमें पर्यावरण की राजनीति, अपराध, अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य, राजनीति शामिल होगी। साथ ही गवर्नेंस, सिविल एवं सोशल राइट्स, इमिग्रेशन, शिक्षा एवं सुरक्षा और विदेश नीति भी इसके दायरे में होगी।
भारत में इस प्रकार के विज्ञापन चलाने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति को सबसे पहले अपनी पहचान और जगह की पुष्टि करनी होगी। यह भी बताना होगा कि विज्ञापन के लिये किसने पेमेंट किया और किसने प्रकाशित किया है। इसमें राजनीतिक हस्तियों, राजनीतिक दलों या चुनावों का हवाला देने वाले विज्ञापन बनाने, प्रकाशित करने या रोकने वाला कोई भी व्यक्ति शामिल है।
दिसंबर 2021 से मेटा ऐसे विज्ञापनदाताओं के लिये ऑथोराइजेशन की प्रक्रिया अनिवार्य बना रहा है, जो फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सामाजिक मुद्दों वाले विज्ञापन चलाना चाहते हैं। फेसबुक पर वह कोई भी राजनीतिक, चुनावी या सामाजिक मुद्दे का विज्ञापन, जिसमें सही ऑथोराइजेशन या डिस्क्लेमर नहीं हैं, प्लेटफॉर्म से हटा दिया जाएगा। सात वर्षों तक एक पब्लिक ऐड लाइब्रेरी में इसे रख दिया जाएगा।
मेटा का कहना है कि सामाजिक मुद्दों वाले विज्ञापन संवेदनशील, बड़ी बहस वाले और अत्यंत राजनीतिक विषय होते हैं। इसका लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। मेटा पर ऐसे एडवर्टाइज से किसी विषय पर लोगों के सोचने का तरीका प्रभावित हो सकता है और किसे वोट दिया जाना चाहिए, इसका फैसला बदल सकता है। इससे चुनाव जैसे परिणाम प्रभावित हो सकते हैं।

