डॉलर की तुलना में रुपया जा सकता है 78 पर, NRI के लिए खुशी, पर आयातकों के लिए घाटा

मुंबई– कोरोना का दूसरा चरण भारतीय रुपया पर भारी पड़ता दिख रहा है। ऐसी उम्मीद है कि डॉलर की तुलना में रुपया 77-78 तक जा सकता है। हालांकि इससे अनिवासी भारतीयों (NRI) को फायदा हो सकता है। ऐसे भारतीय जो विदेश में रहते हैं उनके लिए यह फायदा है। क्योंकि अगर वो वहां से भारत में पैसे भेजते हैं तो उनको डॉलर की तुलना में ज्यादा रुपया यहां पर मिल जाएगा।

दूसरी ओर इसका आयातकों यानी जो लोग बाहर देशों से माल मंगाते हैं, उनके लिए यह घाटे का सौदा होगा। क्योंकि उनको डॉलर के पेमेंट में ज्यादा रुपया देना होगा। अभी डॉलर की तुलना में रुपया 75 के करीब है। हाल के समय में रुपए की कीमतों में काफी गिरावट आई है। साथ ही कोरोना की दूसरी लहर से भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर को झटका लग सकता है।   

भारतीय रुपया डॉलर की तुलना में पिछले साल अगस्त में 75 पर पहुंचा था। उसके बाद अब यह फिर से इसी लेवल पर आ गया है। सोमवार को तो यह 75.055 पर पहुंच गया था। नोमुरा होल्डिंग के अर्थशास्त्रियों ने भारत के विकास को लेकर अपने अनुमानों को बदल दिया है और वे कोरोना की दूसरी लहर की वजह से विकास को डाउनग्रेड कर दिए हैं। भारत की GDP की वृद्धि का लक्ष्य उन्होंने 2021-22 में 11.5% कर दिया है। इसका पहले का अनुमान 12.4% का था। 

पिछले साल देखें तो ज्यादातर समय डॉलर की तुलना में रुपया 72 से 74 के बीच में था। इस साल यह 75 के लेवल को पार कर गया है। रुपए की कीमत गिरने से एनआरआई के लिए यह अच्छी खबर है। हालांकि बाहर देशों से सामान मंगाने वालों को अब ज्यादा पैसा चुकाना होगा। कोरोना की वैक्सीन की धीमी गति के कारण रुपए में और कमजोरी आ सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक रुपए की गिरावट को हालांकि नियंत्रण में लाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन वर्तमान हालात में यह उसके लिए एक बड़ी चुनौती है। कोविड से जुड़ी समस्याओं के अलावा, देश में मैक्रो-इकोनॉमिक फैक्टर्स भी हैं। कम ब्याज दरें रुपए की गिरावट में और मदद कर रही हैं। रिजर्व बैंक ने इसीलिए बांड की भारी खरीदारी का फैसला किया है। इससे सरकार की बॉरोविंग को सपोर्ट मिलेगा। 

सरकारी प्रतिभूतियों (गवर्नमेंट सिक्योरिटीज) की ब्याज दरें 6% या इससे नीचे रखे जाने की कोशिश की जा रही है। रिजर्व बैंक बांड खरीदी का पहला चरण 15 अप्रैल से शुरू कर रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि सिस्टम में ढेर सारी लिक्विडिटी होगी। हालांकि बैंकों ने पहले से ही रिजर्व बैंक के रिवर्स रेपो में काफी पैसा लगा रखा है। रिवर्स रेपो मतलब बैंकों के पास जब ज्यादा पैसा होता है तो वह रिजर्व बैंक के पास इसे रखते हैं। इस पर रिजर्व बैंक उन्हें 3.35% का ब्याज देता है।  

आंकड़े बताते हैं कि बैंकिंग सिस्टम में करीबन 7 लाख करोड़ रुपए की ज्यादा लिक्विडिटी है। 12 अप्रैल को ही बैंकों ने रिजर्व बैंक के पास 4.47 लाख करोड़ रुपए 3 दिन के लिए जमा कराए थे। जबकि 14 अप्रैल को 36 हजार करोड़ रुपए जमा कराए। रिजर्व बैंक की बांड खरीदी की योजना से सिस्टम में नई लिक्विडिटी आएगी। यदि रुपए की लिक्विडिटी बाजार में ज्यादा होती है तो यह इसकी कीमत पर दबाव डालेगी और इससे डॉलर भी मजबूत होता जाएगा।  

दरअसल बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी डालने की रिजर्व बैंक की योजना से यह पता चलता है कि आगे भी ब्याज दरें लंबे समय के लिए कम रह सकती हैं। हालांकि पिछली बार की अपनी मॉनिटरी पॉलिसी में रिजर्व बैंक ने दरों को जस का तस रखने का फैसला किया था। रिजर्व बैंक का फोकस ग्रोथ पर है, भले ही महंगाई अगर उसके लक्ष्य से थोड़ा ज्यादा रहती है तो उसे इस बात की चिंता नहीं है। 

जिस तरह से कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, सरकार के सामने इसे रोक पाना बहुत चुनौता का काम दिख रहा है। हालांकि हर राज्यों ने अलग-अलग तरीके से लॉकडाउन लगा दिया है, फिर भी रोजाना कोरोना के 2 लाख मामले देश में आ रहे हैं। देश के प्रमुख शहर जहां से देश की जीडीपी में ज्यादा योगदान होता है, वह बुरी तरह प्रभावित हैं। वहां पर ज्यादा लॉकडाउन या प्रतिबंध हो चुका है।  

ऐसे शहरों में मुंबई, पुणे, दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, अहमदाबाद, बंगलुरू जैसे इलाके कोरोना के टॉप में हैं। महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली देश की जीडीपी में अच्छा योगदान करते हैं और यह कोरोना के मामले में सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। इस साल के लिए भारत की जीडीपी की वृद्धि का अनुमान 10% से ज्यादा ही है। अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक कोष (आईएमएफ) ने 11.5 से 12.5% रखा है जबकि बार्कलेज ने 11 पर्सेंट का लक्ष्य रखा है। गोल्डमैन सैक्श ने 10.5%, रिजर्व बैंक ने 10.5% और विश्व बैंक ने 10.1% का लक्ष्य रखा है। 

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