पेपल फंसी मनी लांड्रिंग में, 96 लाख रुपए की पेनाल्टी लगाई गई

मुंबई– अमेरिकी ऑनलाइन पेमेंट गेटवे कंपनी पेपल को FIU ने मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी कानून का उल्लंघन करने और संदिग्ध फाइनेंशियल लेनदेन को छुपाने के लिए 96 लाख रुपए की पेनाल्टी लगाई है। साथ ही इस पर भारत के फाइनेंशियल सिस्टम को बिगाड़ने का भी आरोप लगाया गया है।  

नवंबर 2017 में भारत में अपना काम शुरू करने वाली इस कंपनी ने कहा है कि वह उचित प्रक्रियाओं का पालन करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। इस मामले की सावधानीपूर्वक समीक्षा कर रही है। कंपनी पर जनहित के सिद्धांतों और प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के प्रावधानों के साथ छेड़छाड़ करने का भी आरोप लगाया गया है। PMLA का उद्देश्य देश के फाइनेंशियल सिस्टम को आर्थिक अपराधों, आतंकियों की फंडिंग और ब्लैक मनी के लेनदेन से सुरक्षित रखना है। 

इस तरह के नियमों के उल्लंघन को जानबूझकर करने का आरोप लगते हुए फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (FIU) ने 17 दिसंबर को जारी 27 पेज के आदेश में कंपनी को तीन मामलों पर दोषी ठहराया है। इसमें प्रमुख रूप से PMLA के तहत अनिवार्य फेडरल एजेंसी के साथ एक रिपोर्टिंग यूनिट के रूप में खुद को रजिस्टर्ड करने में विफलता है। आदेश में कंपनी को 45 दिन के अंदर जुर्माना राशि चुकाने को कहा गया है। साथ ही उसे एफआईयू में रिपोटिंग एंट्री के तौर पर रजिस्टर्ड करने को कहा गया है।  

इसके अलावा कंपनी को आदेश की कॉपी मिलने के 15 दिन के अंदर प्रिंसिपल ऑफिसर और कम्युनिकेशन के लिए डायरेक्टर नियुक्त करने को भी कहा है। FIU के आदेश के खिलाफ डेढ़ महीने के अंदर पीएमएलए के अपीलीय न्यायाधिकरण में चुनौती देने की भी अनुमति दी गई है। एफआईयू के निदेशक पंकज कुमार मिश्रा द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि कानून का जानबूझकर उल्लंघन करने का पर्याप्त सबूत है। इसलिए पेपल को छोटे-मोटे पेनाल्टी के साथ नहीं जाने दिया जा सकता है। 

एफआईयू और पेपल के बीच कानूनी तकरार मार्च, 2018 में शुरू हुई थी। पीएमएलए की धारा 13 के तहत जारी आदेश के अनुसार पेपल ने एफआईयू के निर्देश को मानने से इनकार कर दिया था। इसलिए पिछले साल सितंबर में उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।  

पेपल ने अपने एक्शन का बचाव किया और भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि यह केवल ऑनलाइन भुगतान गेटवे सेवा प्रदाता (OPGSP) के रूप में काम करती है। यह फाइनेंशियल संस्थान की परिभाषा के भीतर कवर नहीं होता है। इसलिए पीएमएलए के तहत रिपोर्टिंग यूनिट के तहत नहीं आता है। इसने यह भी कहा कि उसने अगले साल जून से पहले भारत में घरेलू भुगतान एग्रीगेटर कारोबार बंद करने के अपने फैसले को आरबीआई के समक्ष पेश किया है। 

हालांकि, एफआईयू ने इसके दावों को खारिज कर दिया और कहा कि पेपल ने भारत में पैसों की हैंडलिंग में कुछ ज्यादा ही शामिल रहा है। इसलिए यह फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन है। इसलिए पीएमएलए के तहत एक रिपोर्टिंग यूनिट होने के लिए क्वालीफाई करता है। पेपल के बिजनेस मॉडल से स्पष्ट रूप से संकेत मिलता है कि यह न केवल मध्यस्थ (intermediary) के रूप में कार्य करता है बल्कि सक्रिय रूप से मनी ट्रांसफर का संचालन भी करता है।  

आदेश में कहा गया है कि पेपल ग्राहक के खाते (जारी करने वाले बैंक) से व्यापारी खाते में पैसे लेकर ऑनलाइन लेनदेन करने का काम करता है। जो अंततः व्यापारी के बैंक खाते (प्राप्त करने वाले बैंक) को पैसा पहुंचाता है। आदेश में कहा गया है कि पेपल भारत में इस प्रक्रिया का पालन नहीं करती है, जबकि अमेरिका में उसकी मूल कंपनी पेपल-इंक, अमेरिकी एफआईयू और ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में हर तरह की एजेंसियों को संदिग्ध लेनदेन की रिपोर्ट करती है।  

आदेश में कहा गया है कि पेपल द्वारा संदिग्ध लेनदेन रिपोर्टों को साझा करना, भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए काफी महत्वपूर्ण था। इसके द्वारा रजिस्टर्ड करने से इनकार करने से न केवल संदिग्ध वित्तीय लेनदेन को छुपाना था बल्कि भारत के फाइनेंशियल सिस्टम पर चोट पहुंचाने जैसा था। इसमें कहा गया है कि यदि पेपल के विवाद को स्वीकार कर लिया जाता है, तो मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी कानून अनावश्यक साबित हो जाएंगे और इस तरह की अन्य संस्थाओं को तकनीकी रूप से बचने के लिए मौका मिल जाएगा। इससे पीएमएलए के उद्देश्य बुरी तरह से प्रभावित होंगे। 

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