किर्लोस्कर इंडस्ट्रीज और उसके डायरेक्टर आरबीआई के फिट और प्रॉपर प्रोविजन के दायरे में

मुंबई- कोर इन्वेस्टमेंट कंपनियों (सीआईसी) और एनबीएफसी के लिए लागू आरबीआई के संशोधित दिशा-निर्देशों के तहत किर्लोस्कर इंडस्ट्रीज (केआईएल) के निदेशकों को बैंकिंग नियामक आरबीआई की जांच के दायरे में रख दिया गया है। यह जानकारी विश्सनीय सूत्रों ने दी है।  

अगस्त 2020 में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के नोटिफिकेशन के अनुसार, सिर्फ डायरेक्टर्स की नियुक्ति के समय ही नहीं, बल्कि निरंतर आधार पर निदेशकों की ‘फिट एंड प्रॉपर’ स्थिति सुनिश्चित करने के लिए सीआईसी को लागू किया जाना चाहिए। सूत्रों का कहना है कि इनसाइडर ट्रेडिंग के लिए सेबी की जांच में केआईएल के निदेशकों का नाम सामने आने के बाद यह आरबीआई के स्कैनर में आ गया है।  

सूत्रों के मुताबिक, आरबीआई सुनिश्चित कर रही है कि क्या डायरेक्टर्स ‘फिट एंड प्रॉपर’ स्थिति में लगातार बने हुए हैं या नहीं। क्या वे केवल नियुक्ति के समय ही इसका पालन कर रहे हैं। यह जांच आरबीआई द्वारा नया सर्कुलर जारी करने के कुछ महीने बाद की गई है। 

आरबीआई के तहत केआईएल एक एनबीएफसी के रूप में हाल ही में खबरों में रही है। इससे पता चलता है कि इसके डायरेक्टरअतुल किर्लोस्कर, अनिल अलवानी और निहाल कुलकर्णी इनसाइडर ट्रेडिंग और फ्रॉड के लिए सेबी द्वारा जांच के घेरे में हैं। इसलिए इन लोगों के ऊपर आरबीआई की इस नई गाइडलाइन की गाज गिरी है। सूत्रों के अनुसार, यदि कोई आरोप पाया जाता है तो आरबीआई अधिनियम की धारा 45 के तहत आरबीआई को कारण बताओ नोटिस जारी करने और/या एनबीएफसी या सीआईसी को गुमराह करनेवाले डायरेक्टर्स को हटाने का अधिकार है। 

“किर्लोस्कर समूह की अर्का फिनकैप लिमिटेड (पूर्व में किर्लोस्कर कैपिटल) आरबीआई में रजिस्टर्ड एनबीएफसी है। इसमें निहाल कुलकर्णी और अनिल अलावनी (केआईएल के डायरेक्टर होने के कारण) के साथ अतुल किर्लोस्कर हैं। एक सूत्र ने कहा कि इन संस्थाओं की सेबी द्वारा पहले से ही जांच की जा रही है, जिसने 2019 के अपने कारण बताओ नोटिस में इन तीन डायरेक्टर्स को इनसाइडर ट्रेडिंग के साथ अन्य लोगों को आरोपी बनाया है। 

सेबी ने दिसंबर 2019 में एक कारण बताओ नोटिस जारी किया और केआईएल के 6 प्रमोटर्स – राहुल किर्लोस्कर, अतुल किर्लोस्कर, गौतम कुलकर्णी, अल्पना किर्लोस्कर, ज्योत्सना कुलकर्णी और आरती किर्लोस्कर और दो अन्य पर धोखाधड़ी की रोकथाम के तहत धोखाधड़ी और अनुचित ट्रेड प्रैक्टिसेज (PFUTP) का आरोप लगाया है। उनके ऊपर आरोप है कि अक्टूबर 2010 में किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड (केबीएल) में केआईएल के लिए अपने शेयरों की बिक्री से लाभ हुआ है। उन्हें केबीएल की बिगड़ती आर्थिक स्थिति के बारे में अच्छी तरह से पता था। मीटिंग के मिनट्स की कॉपी के अनुसार 27 जुलाई 2010 को हुई केबीएल की बोर्ड बैठक में प्रबंधन ने केबीएल के खराब मुनाफे का खुलासा किया था। 

यह सेबी नियमों के तहत भी स्पष्ट रूप से गोपनीय जानकारी थी। उस बोर्ड की बैठक में भाग लेने वाले केबीएल के निदेशक गौतम कुलकर्णी, राहुल किर्लोस्कर और एएन अलवानी को इस यूपीएसआई की जानकारी थी। अगले ही दिन 28 जुलाई को केआईएल बोर्ड की बैठक में इसके चेयरमैन अतुल किर्लोस्कर, राहुल किर्लोस्कर के भाई ने एक नया आइटम जोड़ा, जो कि एजेंडे में नहीं था। इसमें चौंकाने वाला सुझाव दिया कि केबीएल को अपने सर प्लस फंड का इन्वेस्टमेंट केबीएल शेयरों की खरीदारी के लिए करनी चाहिए। इसके लिए इसे फॉल्स रिप्रेजेंटेशन बनाना चाहिए जिससे केबीएल को अच्छा प्रदर्शन करने का मौका मिलेगा। 

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी एन श्रीकृष्ण के अनुसार, ऐसी परिस्थितियों में आरबीआई एक उचित रेगुलेटर के रूप में इसके अधिनियम की धारा 45 -आईडी के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए बाध्य है। उसे कार्रवाई करनी होगी। साथ ही ऐसे गुमराह संबंधित निदेशकों को शो कॉज नोटिस भेजने या तत्काल उन्हें हटाने के लिए कदम उठाने ही चाहिए। 

भारतीय रिजर्व बैंक ने एनबीएफसी/कोर इन्वेस्टमेंट कंपनी (सीआईसी) के डायरेक्टर्स के “फिट एंड प्रॉपर” नियमों की जांच करने का अधिकार अपने पास सुरक्षित रखा है। चाहे उनकी संपत्ति की साइज कुछ भी हो। इससे पहले डीएचएफएल के डायरेक्टर्स वधावन के मामले में एनसीएलटी ने ऐसे गुमराह निदेशकों को हटाने के लिए आरबीआई के अधिकार की पुष्टि की थी। ट्रिब्यूनल ने कहा था कि जब अपने कर्तव्यों के प्रदर्शन में कुछ चूक या लापरवाही होती है तो ऐसा किया जा सकता है। सेबी के कारण बताओ नोटिस जारी करने के कारण आरबीआई के लिए यह जांच करना अनिवार्य है कि क्या ऐसे गुमराह निदेशक केआईएल के निदेशकों के रूप में “फिट एंड प्रॉपर” मानदंडों को पूरा करते हैं।  

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