बिपरजॉय तूफान से भारत को इतना होगा नुकसान, इससे पहले भी हुआ है भारी नुकसान
मुंबई- अरब सागर में उठे ताकतवर तूफान बिपरजॉय के गुरुवार को गुजरात के कच्छ में तट से टकराने की संभावना है। मौसम विभाग की मानें तो इस दौरान 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवाएं चल सकती हैं। मौसम विभाग ने तूफान को देखते हुए गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ के तटीय इलाकों में रेड अलर्ट जारी किया है। इस तूफान के कारण गुजरात के तटीय इलाकों में भारी तबाही की आशंका है।
रेलवे ने 67 ट्रेनों को पूरी तरह कैंसिल कर दिया है। हजारों लोगों और मवेशियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। इससे मछुआरों, बंदरगाहों में काम करने वालों और ऑयल रिग्स में काम करने वालों की आजीविका प्रभावित हुई है। कंपनियों के एक्सपोर्ट पर प्रभाव पड़ा है। देश की सबसे मूल्यवान कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने सिक्का पोर्ट से डीजल और दूसरे ऑयल प्रॉडक्ट्स का निर्यात रोक दिया है। इस पोर्ट की रोजाना क्षमता 704,000 बैरल है।
यूरोप को डीजल के निर्यात में इस पोर्ट की अहम भूमिका है। रूस पर यूरोप यूनियन की बंदिशों के बाद एशियाई देशों से यूरोप का तेल का इम्पोर्ट बढ़ गया है। अडानी ग्रुप ने भी फिलहाल उस इलाके में अपना कामकाज बंद कर दिया है। अडानी के मुंद्रा पोर्ट को फिलहाल बंद कर दिया गया है। यह देश का सबसे बिजी कंटेनर हार्बर है। इसके साथ-साथ वडिनार और सिक्का के ऑयल पोर्ट को भी बंद कर दिया गया है। साथ ही कांडला, ओखा, बेदी, और नवलाखी बंदरगाहों में भी कामकाज बंद है। मुंद्रा देश का सबसे बड़ा कमर्शियल पोर्ट है। इसमें देश का सबसे बड़ा कोल इम्पोर्ट टर्मिनल भी है। तूफान के कारण गुजरात में आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।
2019 में आए तूफान फैनी के कारण ओडिशा को करीब 9,336.26 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक मई 2020 में भारत-बांग्लादेश सीमा पर आए अम्फान तूफान के कारण भारत के 1.16 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ था। इसके एक साल बाद यास नाम के तूफान ने देश के पूर्वी इलाकों में तबाही मचाई थी। इससे पश्चिम बंगाल को 2.76 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था। अगर इसमें ओडिशा और झारखंड का नुकसान भी मिला दिया जाए तो यह सात से आठ अरब डॉलर बैठता है।
तूफान के कारण हुई तबाही के बाद जिंदगी के पटरी पर लौटने में काफी समय लगता है। इससे फसल बर्बाद हो जाती है जिससे खाने पीने की चीजें के दाम बढ़ जाते हैं। साथ ही राज्य और केंद्र सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ता है। तूफान के कारण हेल्थकेयर सर्विसेज पर दबाव बढ़ जाता है और बिजली और पानी की सप्लाई प्रभावित होती है। ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम, ट्रेड एंड कॉमर्स भी बुरी तरह प्रभावित होता है। तूफान के कारण आई बाढ़ के कारण उपजाऊ जमीन रातोंरात बंजर बन जाती है। साइक्लोन के कारण रोड, पुल और पावर लाइन जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर भी तबाह हो जाता है। इन सब कारणों से इंडस्ट्रीज और बिजनस एक्टिविटी प्रभावित होती है। इन सबका इकॉनमी पर बुरा असर पड़ता है।
द इकनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट की ईसीजी रेटिंग्स सर्विस के मुताबिक एनवायरमेंट पिल्लर पर भारत की रैंकिंग 151 देशों में 144 है। इसका मतलब है कि भारत को डिकार्बनाइजेशन, वेस्ट एंड वेस्ट वॉटर मैनेजमेंट और एनवायरमेंट के मोर्चे पर बहुत कुछ करने की जरूरत है। आरबीआई के मुताबिक 2030 तक भारत को क्लाइमेट चेंज एडेप्शन के लिए 85.6 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी।