कमजोर रुपये, सोने और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से फिर बढ़ रहा आयात बिल

मुंबई- देश का आयात बिल एक बार फिर तेजी से बढ़ रहा है। इसकी वजह कमजोर रुपया, सोने और कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में तेजी और आयातित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर लगातार निर्भरता है। इससे अक्तूबर में व्यापार घाटा बढ़कर 41.68 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, कमजोर रुपया भारत के बढ़ते आयात बोझ का सबसे बड़ा कारण बना हुआ है। जैसे-जैसे मुद्रा का मूल्य कम होता है, भारत को उतनी ही मात्रा में विदेशी सामान खरीदने के लिए अधिक खर्च करना पड़ता है। चूंकि देश बड़े पैमाने पर कच्चा तेल, सोना व इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आयात करता है, इसलिए रुपये के मूल्य में मामूली गिरावट भी कुल आयात बिल को बढ़ा देती है।

रिकॉर्ड निचले स्तर पर रुपया

3 दिसंबर को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर 90 से भी नीचे पहुंच गया। यह एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गया। अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें कुछ अस्थायी राहत दे सकती हैं, लेकिन अस्थिरता बनी रहेगी। विदेशी संस्थागत निवेशकों की लगातार निकासी जारी है।

सोने की कीमतों में तेजी बरकरार

देशों के बीच तनावों और आर्थिक अनिश्चितता के बीच वैश्विक स्तर पर सोने की कीमतों में तेजी आई है। स्थानीय मांग में कमी के कारण घरेलू कीमतें थोड़ी गिरकर 1,33 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम पर हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमतों में तेजी का मतलब है कि भारत समान मात्रा में सोने के लिए अधिक डॉलर का भुगतान कर रहा है। इससे कुल आयात बिल बढ़ रहा है।

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का आयात भी बढ़ा

मेक इन इंडिया के तहत हुई प्रगति के बावजूद भारत सेमीकंडक्टर, डिस्प्ले पैनल, कैमरा सेंसर और एसी कंप्रेसर जैसे उच्च मूल्य वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आयात पर अधिक निर्भर है। भारत अब भी अधिकांश उच्च मूल्य वाले पुर्जों का आयात करता है। कमजोर रुपया इन आयातों को महंगा बना देता है।

1.21 लाख करोड़ मूल्य का इलेक्ट्रॉनिक्स आयात

लगभग एक दर्जन इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों ने 2024-25में 1.21 लाख करोड़ से अधिक मूल्य के पुर्जों और उत्पादों का आयात किया। यह पिछले वर्ष की तुलना में 13% अधिक है।

कच्चे तेल का आयात: दोहरा प्रभाव

तेल की कीमतें सामान्य रहने पर भी कच्चा तेल आयात बिल पर सबसे अधिक बोझ डालता है। भारत जरूरत का 85% से ज्यादा कच्चा तेल आयात करता है। इसका भाव 63-64 डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहने से कुल कीमत प्रबंधनीय लग सकती है लेकिन कमजोर रुपया लागत को कई गुना बढ़ा देता है।

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