कर्ज पर ब्याज दर घटने से परिवारों की सालाना 60,000 रुपये होगी बचत

मुंबई- बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों की ओर से कर्ज पर ब्याज दर घटाने के कारण भारतीय परिवारों की सालाना 50,000 से 60,000 रुपये की बचत होगी। यह स्थिति तब होगी जब हम यह मान लें कि खुदरा और छोटे एवं मझोले उद्योगों यानी एमएसएमई के 80 फीसदी कर्ज ईबीएलआर से जुड़े हैं। ईबीएलआर का मतलब बाहरी बेंचमार्क लेंडिंग रेट है जो सीधे आरबीआई के रेपो दर से जुड़ा होता है।

एसबीआई की रिपोर्ट कहती है कि आरबीआई के रेपो रेट घटाने के फैसले के तुरंत बाद ईबीएलआर से जुड़े कर्ज सस्ते होने लगे हैं। अगर आरबीआई की यह नरम दर की रणनीति अगले दो साल तक जारी रहती है तो इससे परिवारों की ब्याज लागत में और गिरावट जारी रहेगी। जो इंडिविजुअल लोग कर्ज ले रहे हैं वो ज्यादातर पर्सनल लोन, क्रेडिट कार्ड, कंज्यूमर ड्यूरेबल और अन्य पर्सनल लोन ले रहे हैं। इन सभी का हिस्सा कुल खुदरा और एमएसएमई कर्ज में 45 फीसदी है।

रिपोर्ट के अनुसार, संपत्ति निर्माण जैसे होम लोन और वाहन कर्ज का हिस्सा 25 फीसदी है। उत्पादक उद्देश्यों जैसे कृषि , कारोबार ऋण और शिक्षा क्षेत्र का हिस्सा 30 फीसदी है। भारत का घरेलू ऋण अन्य उभरते देशों के 49.1 फीसदी की तुलना में केवल 42 फीसदी है। हालांकि, पिछले तीन वर्षों में इसमें वृद्धि हुई है। दिलचस्प बात यह है कि यह वृद्धि कर्ज के बजाय ग्राहकों की संख्या के कारण हुई है। परिवारों के कर्ज में वृद्धि बिल्कुल भी चिंताजनक इसलिए नहीं है क्योंकि पोर्टफोलियो का दो तिहाई हिस्सा बेहतर क्वालिटी वाला है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा ब्याज दरों में ढील के चक्र में भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई ने पहले ही रेपो दर में एक फीसदी की कटौती कर दी है। इससे ईबीएलआर ब्याज दरें अपने आप कम हो गई हैं। नकद आरक्षित अनुपात यानी सीआरआर, लिक्विडिटी कवरेज रेशियो यानी एलसीआर आदि जैसे सभी सेगमेंट को हटा दें तो बैंकों के पास 100 रुपये की प्रत्येक जमा राशि पर वाणिज्यिक ऋण के लिए केवल 44.4 रुपये बचते हैं।

आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि रेपो दर में सबसे अधिक 4.5 प्रतिशत की कटौती सितंबर, 2008 से सितंबर 2013 के बीच हुई थी। इसे दौरान सबसे अधिक 4 फीसदी की बढ़ोतरी भी दर में की गई। उसके बाद उसके बाद दिसंबर, 2018 से दिसंबर, 2024 के बीच में 2.5 फीसदी की कमी की गई थी। 2003 से 2024 तक देखा जाए तो हर गवर्नर ने रेपो दर में अपने कार्यकाल के दौरान दो फीसदी से ज्यादा की कमी की है।

संजय मल्होत्रा से पहले गवर्नर रहे शक्तिकांत दास के करीब छह साल के कार्यकाल में रेपो दर शुद्ध रूप से देखा जाए तो बराबर रही। दरअसल, कोरोना आने के कारण दास ने अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए उस दौरान जरूर 2.50 फीसदी की कटौती की थी, लेकिन बाद में उतनी ही बढ़ोतरी भी कर दी। इस तरह से जिस दर पर उनको जिम्मेदारी मिली, उसी दर पर उन्होंने विदाई भी ली। हालांकि, मल्होत्रा ने महज अपने छह महीने के कार्यकाल में ही अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए एक फीसदी की कमी कर बड़ी उम्मीद जगा दी है।

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