सैटेलाइट सेवाओं पर कंपनियों को देना पड़ सकता है राजस्व का 4 फीसदी शुल्क

मुंबई- भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने सिफारिश की है कि स्टारलिंक जैसी फर्मों द्वारा निर्धारित सैटेलाइट सेवाओं को समायोजित सकल राजस्व पर 4 फीसदी स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क देना चाहिए। इसके साथ ही, प्रति शहरी ग्राहक 500 रुपये का वार्षिक शुल्क भी देना होगा। ये सिफारिशें एलन मस्क की स्टारलिंक के भारत में आने से पहले की गई हैं।

ट्राई ने कहा, सैटेलाइट नेटवर्क पर उपलब्ध कुल बैंडविड्थ बहुत कम है। स्पेक्ट्रम को सैटेलाइट प्रदाताओं के बीच साझा किया जा सकता है। ट्राई के चेयरमैन अनिल कुमार लाहोटी ने कहा, यह एक पूरक सेवा है। प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में इस मुद्दे की जांच करने का कोई ठोस आधार नहीं है। स्टारलिंक को अब ट्राई की सुझाई गई शर्तों के तहत स्पेक्ट्रम हासिल करना होगा, जिसके तहत उसे इस्तेमाल किए जाने वाले स्पेक्ट्रम के लिए न्यूनतम 3,500 प्रति मेगाहर्ट्ज का शुल्क देना होगा।

ट्राई ने कहा, सैटेलाइट के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन केवल पांच साल तक होगा, जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है। स्टारलिंक ने स्पेक्ट्रम की न्यूनतम 15 साल की वैधता मांगी थी। सिफारिश के मुताबिक, 8 फीसदी का प्राधिकरण शुल्क भी लागू होगा जो दूरसंचार ऑपरेटरों और फिक्स्ड लाइन इंटरनेट प्रदाताओं के लिए लागू होता है। इन शुल्कों और अधिभारों के कारण स्टारलिंक सेवाओं की लागत 4,200 से अधिक होने की संभावना है।

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