कोरोना और 2008 पर भारी टैरिफ वॉर, एफआईआई ने निकासी के तोड़े रिकॉर्ड

मुंबई- विदेशी संस्थागत निवेशकों ने घरेलू शेयर बाजार से पैसे निकालने का सभी रिकॉर्ड तोड़ दिया है। यहां तक कि कोरोना के समय बाजार में औंधे मुंह गिरावट और 2008 में वैश्विक मंदी को भी इन निवेशकों ने पीछे छोड़ दिया है। चालू वित्त वर्ष के समाप्त होने में अभी 13 दिन बाकी हैं, फिर भी इन निवेशकों ने शुद्ध रूप से 1.53 लाख करोड़ रुपये के शेयर बेच दिए हैं।

डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष से पहले सबसे बड़ी निकासी वित्त वर्ष 2021-22 में रही जो शुद्ध रूप से 1.40 लाख करोड़ रुपये थी। 2008-09 में वैश्विक मंदी के दौरान 47,706 करोड़ रुपये निकाले थे। 2022-23 में 37,000 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे। हालांकि, इन निवेशकों का अब तक सबसे ज्यादा निवेश 2020-21 में रहा है जो 2.74 लाख करोड़ रुपये था। एक दो वित्त वर्षों को छोड़ दें तो बाकी वित्त वर्षों में इन निवेशकों ने निवेश ही किया है।

कैलेंडर साल की बात करें तो इसमें भी इन निवेशकों ने रिकॉर्ड निकासी की है। इस कैलेंडर वर्ष यानी 2025 में जनवरी से अब तक कुल 1.43 लाख करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं। इससे पहले 2022 में शुद्ध रूप से 1.21 लाख करोड़ और 2008 में 52,987 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं। जबकि सबसे अधिक निवेश 2023 में 1.70 लाख करोड़ रुपये का रहा है। 2020 में 1.70 लाख करोड़, 2012 में 1.28 लाख करोड़ और 2010 में 1.33 लाख करोड़ रुपये का भारी निवेश किया गया था।

विदेशी संस्थागत निवेशक यानी एफआईआई ने पहली बार 1992-93 में भारतीय बाजार में 13 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया था। 1993-94 में यह रकम बढ़कर 5,127 करोड़ रुपये हो गई थी। हालांकि, पहली बार 10,000 करोड़ से ज्यादा निवेश 1998-99 में हुआ। 2007-08 में पहरी बार 50,000 करोड़ रुपये के पार निवेश हुआ था।

विदेशी निवेशकों का घरेलू बाजार में करीब 50 लाख करोड़ रुपये का निवेश है। हालांकि, हाल में सबसे ज्यादा बिकवाली इन निवेशकों ने वित्तीय सेवाओं के शेयरों में की है। एफआईआई जब भी भारतीय बाजार से रकम निकालते हैं, उसका असर हमारे बाजार पर दिखता है। इस वित्त वर्ष में अक्तूबर से इन निवेशकों ने निकासी शुरू की है और तब से बाजार में 15 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि, घरेलू संस्थागत निवेशक अच्छी खरीदी कर रहे हैं, बावजूद इसके बाजार नीचे जा रहा है।

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