गरवारे ऑफशोर सर्विसेस के ओपन ऑफर पर सुप्रीम कोर्ट में 16 को सुनवाई

मुंबई- गरवारे ऑफशोर सर्विसेज के ओपन ऑफर के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आगामी 16 नवंबर को सुनवाई होगी। ग्लोबल ऑफसोर सर्विसेज द्वारा अपने ओपन ऑफर में तथ्यों को दबाने के लिए इंडिया स्टार मॉरीशस के खिलाफ जीआईसी और कुछ अन्य निवेशकों ने SEBI के पास शिकायत की थी। सेबी ने बाद में इस मामले को सुप्रीम कोर्ट को भेज दिया था।  

ग्लोबल ऑफशोर सर्विसेज द्वारा अपने ओपन ऑफर में तथ्यों को दबाने के लिए इंडिया स्टार मॉरीशस के खिलाफ जनरल इंश्योरेंस कारपोरेशन (GIC) और कुछ अन्य निवेशकों ने बाजार नियामक प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) के पास शिकायत की थी। सेबी ने बाद में इस मामले को सुप्रीम कोर्ट को भेज दिया था। 

मार्च 2008 में, इंडिया स्टार मॉरीशस (India Star Mauritius) ने गरवारे ऑफशोर सर्विसेज (Garware Offshore Services) में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने करने के लिए 234 रुपए प्रति शेयर के हिसाब से ओपन ऑफर लाया था। कंपनी के शेयरहोल्डर की हैसियत से जीआईसी ने ओपन ऑफर में अपनी हिस्सेदारी बेचने की पेशकश नहीं की थी। वर्ष 2011 में जीआईसी ने सिक्यूरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (SAT) में एक याचिका डाल कर कहा था कि इंडिया स्टार मॉरीशस ने ओपन ऑफर के दौरान कुछ तथ्यों का खुलासा नहीं किया था। इसलिए उसे नए सिरे से ओपन ऑफर (Open Offer) देने की सिफ़ारिश की जाए। जीआईसी ने कहा था कि अगर उन फैक्ट्स का खुलासा किया जाता तो वह अपने शेयरों की पेशकश करता। तब सैट ने जीआईसी को सेबी के पास जाने का निर्देश दिया था। 

जनवरी 2012 में जीआईसी ने सेबी के पास लिखित शिकायत दायर कर कहा था कि इंडिया स्टार मॉरीशस ने कुछ तथ्य को छिपाया है। उसने इस बात का खुलासा नहीं किया कि उसके मूल इंडिया स्टार फंड एलपी का स्वामित्व साइकामोर मैनेजमेंट कॉर्पोरेशन के पास था। जीआईसी ने कहा कि कंपनी ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि ग्रुप की कंपनी साइकामोर वेंचर्स ने भारतीय इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों और तेल और गैस में निवेश किया था।  

सेबी के होलटाइम मेंबर ने 21 नवंबर 2014 के ऑर्डर में हालांकि ये बात कही है कि अमेरिकी सिनेट की जांच में परमानेंट सब कमिटी ऑन इनवेस्टिगेशन ने यह पाया कि साइकोमोर वेंचर अमेरिकी में मनी लांड्रिंग करते हुए पकड़ा गया था। जिसकी वजह से उसका नाम ओपन ऑफर डॉक्युमेंट में उसका नाम छिपाया गया है। शेयरधारकों का यह भी आरोप है कि अगर मनी लांड्रिंग के बारे में ओपन ऑफर में लिखा जाता तो वे ऐसी कंपनी के शेयर रखते ही नहीं, जिसमें अमेरिका के मनी लांड्रिंग वाले लोगों की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी हो जाएगी।  

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने मॉरीशस को उस लिस्ट से बाहर कर दिया है जिसमें देशों को जरूरी मॉनिटरिंग पूरी करनी होती है। यह भारतीय रेगुलेटर के लिए एक अच्छी खबर है। हालांकि सेबी देखो और इंतजार करने की रणनीति पर काम कर रहा है। सेबी ने मॉरीशस से आने वाले निवेश पर कोई भी प्रतिबंध नहीं लगाया है। पिछले साल रिजर्व बैंक ने कहा था कि फाइनेंशियल फर्म को मॉरीशस के साथ कोई भी फंड्स सेटअप नहीं करना चाहिए।  

2012 की शुरुआत के बाद से मॉरीशस भारत में निवेश के मामले में टॉप पर रहा। पर पिछले पांच सालों में यह दूसरे नंबर पर खिसक गया। अब अमेरिकी निवेशकों का पैसा भारत में 19.17 लाख करोड़ रुपए है जबकि मॉरीशस के जरिए केवल 5.72 लाख करोड़ रुपए का निवेश है। हालांकि मॉरीशस इस समय ग्रे लिस्ट से बाहर है पर हाल में पंडोरा पेपर्स से पता चला है कि अभी भी मॉरीशस से इस तरह के फंड आ रहे हैं। ऐसे में भारतीय रेगुलेटर को यह चाहिए कि वह अन्य रेगुलेटर्स के साथ सूचनाओं को साझा कर इस पर काम करे।  

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