बीमा में एफडीआई : ज्यादा कंपनियों के आने से बढ़ेगी प्रतिस्पर्धा, कम हो सकते हैं प्रीमियम
मुंबई- संसद ने बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा 74 फीसदी से 100 फीसदी करने वाला बिल सबका बीमा सबकी रक्षा विधेयक पास कर दिया है। सरकार के इस फैसले से घरेलू बाजार में बीमा क्षेत्र प्रतिस्पर्धा बढ़ने की उम्मीद है। इससे कंपनियां आने वाले समय में पॉलिसी का प्रीमियम कम कर सकती हैं। साथ ही, बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश भी आएगा।
जानकारों के मुताबिक, वैश्विक बीमा कंपनियां बिना किसी साझेदार के घरेलू बाजार में आ सकती हैं। हालांकि, कंपनी के शीर्ष प्रबंधन में भारतीय लोगों को ही नियुक्त किए जाने का भी प्रावधान है। यह निर्णय से देश में 2047 तक सभी को बीमा देने के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक अहम कदम है। इस बिल से बीा क्षेत्र के बाजार में अच्छी खासी तेजी आएगी। इसका असर एलआईसी पर भी दिखेगा, जो एक मात्र सरकारी जीवन बीमा कंपनी है।
विश्लेषकों का कहना है कि इस फैसले से ज्यादा से ज्यादा तरह के उत्पाद होंगे। इससे ग्राहकों को अलग-अलग तरीके के उत्पादों को खरीदने या उनमें निवेश करने की ज्यादा सुविधा मिलेगी। वैश्विक स्तर पर नए निवेश से बीमा कंपनियों को देश में अधिक लोगों तक पहुंचने में मदद मिल सकती है।
व्यक्तिगत जानकारी सुरक्षित रहेगी
इस विधेयक से पॉलिसीधारकों को यह भी फायदा होगा कि उनका डाटा सुरक्षित रखा जाएगा। उसको अपडेट किया जाएगा। आपकी व्यक्तिगत जानकारी को बीमा कंपनियां और मध्यस्थ सटीक तरीके से रखेंगी। इसके अलावा, यह विधेयक ग्राहकों के लिए प्रणाली को अधिक पारदर्शी बनाएगा।
- बीमा कंपनियों को पॉलिसी और दावों का उचित रिकॉर्ड रखना होगा। दावा कब दर्ज किया गया, उसका निपटारा हुआ या अस्वीकार किया गया और अस्वीकृति के स्पष्ट कारण जैसी बातें प्रमुख रूप से नियामक को बतानी होगी।
मिस-सेलिंग पर लगेगी रोक
विधेयक में बीमा पॉलिसियों की गलत बिक्री पर रोक लगाए जाने का प्रावधान है। ज्यादा कमीशन के चक्कर में एजेंट गलत पॉलिसी बेचते हैं। इसलिए अब नियामक को इसे सही करने के लिए अधिक शक्ति दी गई है। यानी गलत बीमा बेचने वाले एजेंटों और कंपनियों पर कठोर कार्रवाई होगी। नियामक अब निम्नलिखित काम कर सकता है-
- एजेंट के कमीशन की सीमा तय करना
- कमीशन का खुलासा कैसे किया जाए, यह तय करना
- ग्राहकों के हितों को नुकसान पहुंचाने वाले बिचौलियों के खिलाफ कार्रवाई
एक करोड़ के भारी जुर्माने का प्रावधान
बीमा कंपनी फाइलिंग में देरी करती है। आंकड़ों की गलत रिपोर्टिंग करती है। नियामक निर्देशों की अनदेखी करती है या ग्राहकों के हितों के विरुद्ध कार्य करती है तो रोजाना एक लाख रुपये जुर्माना लग सकता है। गंभीर मामलों में जुर्माना करोड़ों में भी हो सकता है। ऐसे किसी भी फैसले को बीमा कंपनियों को सार्वजनिक भी करना होगा।एक करोड़ के भारी जुर्माने का प्रावधान
बीमा कंपनी फाइलिंग में देरी करती है। आंकड़ों की गलत रिपोर्टिंग करती है। नियामक निर्देशों की अनदेखी करती है या ग्राहकों के हितों के विरुद्ध कार्य करती है तो रोजाना एक लाख रुपये जुर्माना लग सकता है। गंभीर मामलों में जुर्माना करोड़ों में भी हो सकता है। ऐसे किसी भी फैसले को बीमा कंपनियों को सार्वजनिक भी करना होगा।

