डॉलर की मजबूती से सोने–चांदी की चमक फीकी, दिल्ली बाजार में 600 रु सोना टूटा—चांदी

मजबूत डॉलर और कमजोर वैश्विक संकेतों के दबाव में गुरुवार को सोने और चांदी की कीमतों में तेज गिरावट आई। दिल्ली सर्राफा बाजार में सोना 600 रुपये गिरकर 1,26,700 रुपये प्रति 10 ग्राम पर आ गया। वहीं चांदी 2,000 रुपये टूटकर 1,58,000 रुपये प्रति किलोग्राम (सभी करों सहित) पर पहुंच गई। इस गिरावट के पीछे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमजोर रुख, डॉलर का मजबूत होना और सुरक्षित निवेश (Safe Haven Buying) की मांग में कमी मुख्य कारण रहे।

क्यों टूटा सोना? जानकारों ने बताए मुख्य कारण
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के वरिष्ठ विश्लेषक (कमोडिटीज) सौमिल गांधी ने कहा, “अमेरिकी डॉलर में मजबूती और यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने के लिए अमेरिका की ओर से नए सिरे से प्रयास किए जाने की खबरों के बाद सुरक्षित निवेश की मांग में कमी के कारण गुरुवार को सोने में गिरावट आई।” गांधी ने कहा कि अमेरिकी श्रम सांख्यिकी ब्यूरो की ओर से अक्तूबर महीने की रोजगार रिपोर्ट प्रकाशित न करने की घोषणा के बाद बाजार की धारणा और भी खराब हो गई। इससे फेड को वर्ष की अपनी अंतिम बैठक से पहले महत्वपूर्ण श्रम आंकड़े नहीं मिल पाए।

गांधी ने कहा, “अक्टूबर FOMC मिनट्स से संकेत मिला है कि कई अधिकारी 2025 तक ब्याज दरें स्थिर रखने के पक्ष में हैं।”

अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्या स्थिति?
वैश्विक बाजार में सोने–चांदी दोनों में कमजोरी देखी गई

  1. अंतरराष्ट्रीय सोना हाजिर: 0.40% गिरकर $4,061.53 प्रति औंस
  2. हाजिर चांदी: 1.22% की गिरावट के साथ $50.73 प्रति औंस
  3. डॉलर इंडेक्स: 0.03% चढ़कर 100.26 पर

मिराए एसेट शेयरखान के प्रवीण सिंह ने कहा कि मजबूत डॉलर के कारण सोना $4,060 के स्तर पर नुकसान में है।

फेड की नीति पर बाजार की नजर
ऑग्मोंट रिसर्च की प्रमुख रेनिशा चैनानी के अनुसार, अब बाजार का फोकस आने वाले अमेरिकी आर्थिक आंकड़ों पर है, जिससे यह तय होगा कि फेड आगे ब्याज दरों में क्या रुख अपनाएगा।

उन्होंने कहा, “सोने–चांदी की कीमतों में हाल के दिनों में मजबूती आई थी, लेकिन अब निवेशक नए संकेतों का इंतजार कर रहे हैं।” अक्टूबर FOMC मिनट्स में यह साफ हुआ कि फेड अधिकारी कम ब्याज दरों से बढ़ती मुद्रास्फीति को लेकर सावधान हैं।

किस रिपोर्ट का है इंतजार?
व्यापारी अब सितंबर की गैर-कृषि पेरोल रिपोर्ट (Non-Farm Payrolls) का इंतजार कर रहे हैं, जो फेड की आगे की मौद्रिक नीति पर महत्वपूर्ण असर डाल सकती है।

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