सालाना 90 लाख रुपये का वतन, फिर भी लोगों के खर्च नहीं हो पा रहे हैं पूरे

मुंबई- देश के बड़े शहरों जैसे बेंगलुरु, गुरुग्राम आदि में क्या सालाना 90 लाख रुपये की सैलरी भी कम पड़ रही है? बेंगलुरु के एक सलाहकार का कहना है कि भारत में सैलरी और खर्च का हिसाब बिगड़ गया है। उनका कहना है कि 90 लाख रुपये सालाना कमाने के बाद भी लोगों का खर्च नहीं चल रहा है और वे आर्थिक रूप से फंसे हुए हैं।

असल में दिक्कत ये है कि सैलरी तो उतनी ही है, लेकिन खर्चे लगातार बढ़ रहे हैं। जो लोग ज्यादा कमाते हैं, उन्हें लगभग 39% तक टैक्स देना पड़ता है। वहीं, शहरों में औसत सैलरी सिर्फ 35,000 रुपये महीना है। 90 लाख रुपये सालाना कमाने वाला, गुरुग्राम में शानदार घर में रहने वाला और प्राइवेट स्कूल में दो बच्चों को पढ़ाने वाला भी परेशान है। भारत का अपर-मिडिल क्लास एक मुश्किल जाल में फंसा हुआ है जिससे निकलना मुश्किल है।

इस बारे में चंद्रलेखा ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट की है। इस पोस्ट में उन्होंने गुरुग्राम के एक स्टार्टअप फाउंडर का उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि उस व्यक्ति का बजट कैसा है। उस व्यक्ति को घर और कार के ईएमआई के लिए 2.68 लाख रुपये देने पड़ते हैं। बच्चों की स्कूल फीस 65,000 रुपये है। स्टाफ को 30,000 रुपये देने पड़ते हैं। छुट्टियों के लिए वह 30,000 रुपये बचाता है। इसके अलावा कपड़ों, गिफ्ट और घर के रखरखाव पर भी खर्च होता है। इस तरह उसका कुल खर्च 5 लाख रुपये महीना हो जाता है। टैक्स भरने के बाद इतना पैसा बचाने के लिए उसे हर महीने 7.5 लाख रुपये कमाने होंगे। यानी साल के 90 लाख रुपये।

चंद्रलेखा ने लिखा कि उस फाउंडर ने अपना जाल खुद बनाया है और अब उसमें सांस भी नहीं ले पा रहा है। लोग कहते हैं कि यह लग्जरी है और यह सच भी है। लेकिन यह लग्जरी जैसा लगना भी चिंता की बात है।’ बड़े शहरों में रहने वाले परिवारों के लिए ये आंकड़े ज्यादा नहीं हैं। आजकल 3 करोड़ रुपये का घर खरीदना कोई बड़ी बात नहीं है। काम करने वाले कपल्स के लिए नौकर, कुक और ड्राइवर रखना जरूरी हो गया है।

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