मेटल, रियल्टी और कमोडिटीज जैसे क्षेत्रों में आगे भारी गिरावट की आशंका

मुंबई- ट्रंप के टैरिफ से बाजार में भारी गिरावट का सबसे ज्यादा असर मेटल, रियल्टी, कमोडिटीज और औद्योगिक क्षेत्रों पर पड़ा है। विश्लेषकों का अनुमान है कि अगर टैरिफ पर कोई बात नहीं बन पाती है तो आगे इन क्षेत्रों में और ज्यादा गिरावट आ सकती है। ऐसे में निवेशकों को सावधानी के साथ बाजार में निवेश करना चाहिए।

भारतीय बाजार में सोमवार को जिन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा गिरावट देखी गई, उनमें मेटल, 6.22 फीसदी, रियल्टी, 5.69 फीसदी, कमोडिटीज 4.68 फीसदी, औद्योगिक 4.57 फीसदी, ऑटो 3.77 फीसदी और बैंकेक्स में 3.37 फीसदी गिरावट रही। विश्लेषकों के मुताबिक, आईटी और धातु जैसे क्षेत्रों ने व्यापक बाजार के सापेक्ष कम प्रदर्शन किया है, क्योंकि धीमी वृद्धि के साथ उच्च महंगाई का जोखिम है । इसके परिणामस्वरूप अमेरिका में संभावित मंदी हो सकती है।

मेटल क्षेत्र की जिन कंपनियों के शेयरों पर टैरिफ का सबसे ज्यादा असर देखने को मिला, उनमें नेशनल एल्युमिनियम 8.18 फीसदी, टाटा स्टील 7.73 फीसदी, जेएसडब्ल्यू स्टील 7.58 फीसदी, सेल 7.06 फीसदी और जिंदल स्टील 6.90 फीसदी टूट गया। इनकी तुलना में बाकी क्षेत्र के शेयरों में कम गिरावट रही। इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा गिरावट इसलिए आई, क्योंकि टैरिफ का सर्वाधिक असर इन्हीं क्षेत्रों पर होने वाला है।

घरेलू मोर्चे पर 9 अप्रैल को आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति यानी एमपीसी की बैठक का समापन होगा। 11 अप्रैल को महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) और खुदरा महंगाई के आंकड़े जारी किए जाएंगे। तिमाही आय सीजन की शुरुआत 10 अप्रैल को टीसीएस के नतीजे के साथ होगी। ऐसे में इनका भी बाजार पर असर दिख सकता है।

भारतीय इक्विटी बाजार में इस वर्ष में अब तक तेज गिरावट देखी गई है। बीएसई का कुल बाजार पूंजीकरण वर्ष की शुरुआत में 442 लाख करोड़ रुपये से घटकर 403 लाख करोड़ रुपये रह गया है, जो करीब 39 लाख करोड़ रुपये घट गया है। इस अवधि के दौरान, बीएसई 500 शेयरों में 10 ऐसी कंपनियां हैं जिनकी पूंजी 50,000 करोड़ रुपये से अधिक घटी है। इनमें विप्रो की पूंजी 58,000 करोड़, सिमेंस की 57,000 करोड़, महिंद्रा एंड महिंद्रा की 51,000 करोड़ और ट्रेंट की पूंजी 55,000 करोड़ रुपये घट गई।

गोल्डमैन सैश ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बुरा दौर शायद खत्म हो चुका है। भारत संभवतः आर्थिक मंदी और आय में गिरावट के अपने सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से आगे निकल चुका है। हालांकि, टैरिफ ने भारत की आर्थिक वृद्धि को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं।

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