5 महीने में पहली बार चार फीसदी से कम रह सकती है खुदरा महंगाई की दर
मुंबई- लगातार आरबीआई के दायरे से ऊपर बनी रहने वाली खुदरा महंगाई दर पांच महीने में पहली बार चार फीसदी से नीचे आ सकती है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी यानी सीएमआईई के मुताबिक, फरवरी 2025 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) गिरकर 3.81 प्रतिशत पर आने की संभावना है। जनवरी में यह 4.31 और पिछले साल अगस्त में 3.65 फीसदी पर रही थी।
सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में अब तक औसत खुदरा महंगाई 4.87 प्रतिशत पर रही है। इस बार खाद्य कीमतों में गिरावट का कारण कीमतों में प्रभावी रूप से कमी आना है। सब्जियों की कीमतों में सर्दियों में सुधार और दालों की कीमतों में लगातार नरमी से मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने में मदद मिली है। लेकिन, सोने की कीमतों में मजबूती के कारण मुख्य महंगाई में बढ़ोतरी का अनुमान है।
फरवरी 2025 में खाद्य मुद्रास्फीति जनवरी के छह प्रतिशत से घटकर 4.3 प्रतिशत पर आ जाने की संभावना है। यह मई, 2023 के बाद से सबसे कम होगी। लंबे समय से मुद्रास्फीति की चिंता बढ़ाने वाली सब्जियों की कीमतें तेजी से गिरी हैं। इससे खाद्य मुद्रास्फीति को बहुत राहत मिली है। अनुमान है कि फरवरी में सब्जियों की महंगाई दर घटकर 1.4 प्रतिशत रह गई है, जो जनवरी के 11.4 प्रतिशत से काफी कम है। अप्रैल, 2024 से जनवरी, 2025 के बीच सब्जियों की औसत महंगाई दर 24 प्रतिशत तक रही।
आंकड़ों में कहा गया है कि सब्जियों की कीमतें मासिक आधार पर नौ प्रतिशत घट सकती है, जो लगातार चौथे महीने कीमतों में गिरावट का संकेत है। फरवरी में टमाटर की औसत कीमत 23 रुपये प्रति किलोग्राम थी। इसके दाम में 30 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आने की संभावना है। फरवरी में प्याज और आलू की कीमतें क्रमश: 36 रुपये प्रति किलोग्राम और 26 रुपये प्रति किलोग्राम थीं। हालांकि ये कीमतें अभी भी एक साल पहले के स्तर से ऊपर हैं, लेकिन ये नवंबर, 2024 के उच्च स्तर क्रमशः 56 रुपये और 37 रुपये प्रति किलो से कम हैं।
लहसुन, अदरक, गोभी, फूलगोभी, बैंगन और भिंडी जैसी अन्य सब्जियों की कीमतों में भी कमी आई है। इससे सब्जियों की बेकाबू महंगाई कम हुई है। दालों ने खाद्य मुद्रास्फीति को कम करने में भी मदद की। फरवरी में अरहर में 7.2 प्रतिशत की मासिक गिरावट देखी गई। अनाज और उत्पादों में मुद्रास्फीति फरवरी में घटकर 5.9 प्रतिशत रही। जनवरी में 6.2 प्रतिशत थी। गेहूं की कीमतों में वृद्धि जारी रही, हालांकि यह कमजोर रही।