खाने के तेल की हो सकती है किल्लत, तिलहन की उपज कम होने की आशंका
मुंबई- देश में आने वाले दिनों में खाने के तेल की किल्लत हो सकती है। इसकी वजह यह है कि किसान तिलहन से ज्यादा गेहूं की फसल पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। रबी फसलों का कुल रकबा 2024-25 में पिछले फसल वर्ष की तुलना में बढ़ा है लेकिन इस दौरान तिलहन फसलों के रकबे में गिरावट आई है।
सरकार इंपोर्ट बिल कम करने के लिए देश में तिलहन के रकबे को बढ़ाने में लगी है। लेकिन इन प्रयासों के बावजूद चालू वर्ष में 2023-24 की तुलना में गेहूं के रकबे में लगभग 2.8% की बढ़ोतरी हुई है जबकि तिलहनी फसलों का रकबा 4% गिरा है।
इस साल सभी फसलों का रकबा पिछले वर्ष के 644 लाख हेक्टेयर की तुलना में लगभग 656 लाख हेक्टेयर है। इसमें करीब 12 लाख हेक्टेयर यानी 2% की बढ़ोतरी हुई है। इसमें रबी की मुख्य फसल गेहूं का रकबा आधा यानी 324 लाख हेक्टेयर है। साल 2023-24 में यह 315 लाख हेक्टेयर था। कृषि मंत्रालय द्वारा रबी बुआई सीजन के अंत में जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक दलहनों का रकबा 3 लाख हेक्टेयर बढ़ा है। साल 2023-24 में यह 139 लाख हेक्टेयर था जो 2024-25 में बढ़कर 142 लाख हेक्टेयर हो गया।
दूसरी ओर तिलहन के रकबे में चार लाख हेक्टेयर की गिरावट दर्ज की गई है। 2023-24 में यह 102 लाख हेक्टेयर था जो 2024-25 में घटकर 98 लाख हेक्टेयर रह गया है। रेपसीड और सरसों के रकबे में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई है। गेहूं और दलहन जैसी प्रतिस्पर्धी फसलों की तुलना में तिलहन पर किसानों को कम रिटर्न मिलता है। यही वजह है कि किसान इससे दूरी बना रहे हैं। गेहूं के लिए मूल्य संकेत पॉजिटिव है जबकि तिलहन के लिए यह स्थिर या निगेटिव है।
सरकार के बाजार में हस्तक्षेप नहीं करने के कारण किसानों को सरसों, सूरजमुखी और सोयाबीन को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा। चूंकि तिलहन की स्टोरेज लाइफ गेहूं की तुलना में कम है, इसलिए किसानों के पास कम कीमत पर बिक्री के अलावा कोई चारा नहीं था।