मिलों की मजबूत मांग से गेहूं की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर, बढ़ सकती है महंगाई

मुंब्ई- आटा मिलों की मजबूत मांग के बीच घटती आपूर्ति के कारण गेहूं की कीमतें सोमवार को रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गईं। रिकॉर्ड कीमतों से खुदरा महंगाई बढ़ने की संभावना है, जो अक्तूबर में 14 महीने के उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद नवंबर में कम हो गई थी। महंगाई बढ़ी तो ब्याज दर में कटौती के आरबीआई के फैसले को प्रभावित कर सकती है।

आटा मिलों के मुताबिक, बाजार में गेहूं की आपूर्ति सीमित है। रिकॉर्ड कीमतें चुकाने के बाद भी आटा मिलें पूरी क्षमता से काम करने में सक्षम नहीं हैं। दिसंबर में सरकार ने अनाज की उपलब्धता बढ़ाने और कीमतों को नियंत्रित करने के लिए कारोबारियों और मिल मालिकों के लिए भंडार की सीमा कम कर दी थी। हालांकि, सरकार का यह तरीका कीमतों को कम करने में विफल रहा।

सरकार के उपरोक्त फैसले के बाद भी नई दिल्ली में गेहूं की कीमतें लगभग 33,000 रुपये प्रति टन पर कारोबार कर रही हैं। अप्रैल में यह 24,500 रुपये से अधिक थीं। साथ ही, पिछले सीजन की फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 22,750 रुपये से भी काफी ज्यादा थीं। मिल मालिकों का कहना है कि भंडारण सीमा आपूर्ति में सुधार करने और कीमतों को नीचे लाने में विफल रही। इससे पता चलता है कि निजी कंपनियों के पास कुछ आपूर्ति है और सरकार को अपने भंडार से थोक ग्राहकों को अधिक गेहूं बेचने की जरूरत है।

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) हर हफ्ते थोक ग्राहकों को 100,000 टन गेहूं बेच रहा है, लेकिन यह मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। नवंबर में सरकार ने मार्च 2025 में समाप्त होने वाले वर्ष में राज्य के भंडार से थोक ग्राहकों को 25 लाख टन गेहूं बेचने की योजना की घोषणा की थी। यह पिछले सीजन में बेचे गए लगभग एक करोड़ टन से काफी कम है। एफसीआई के पास गेहूं सीमित है, जिससे वह निजी कंपनियों को ज्यादा गेहूं नहीं दे पा रहा है। दिसंबर की शुरुआत में राज्य के गोदामों में गेहूं का भंडार 2.06 करोड़ टन था, जो पिछले साल के 1.92 करोड़ टन से थोड़ा अधिक है।

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