पकवान की महक से महकते रिश्तोँ की दीवाली
“दिवाली कुछ इस तरह मनाएं
पटाखे थोड़ेँ कम फोड़े
और मिठाई खूब खाएं।”
(लेखिका-अनामिका झा)
इन दिनों जिस तरह प्रदूषण के हालात है उसमें पटाखे फोड़ के और प्रदूषण फैलाने से अच्छा है इस बार पारंपरिक मिठाई का लुत्फ उठाया जाए।
भारत में मिठाइयों का आनंद लेने का एक लंबा इतिहास है , जो सिंधु घाटी सभ्यता से 8,000 साल पुराना है, जब गन्ने से चीनी निकालने की तकनीक विकसित की गई थी। भारतीय मिठाइयों की सूची बहुत बड़ी है और इसमें रसगुल्ला, रसमलाई , बाल मिठाई, मालपुआ, मैसूर पाक, संदेश, लड्डू, खीर, कुल्फी, जलेबी और कई अन्य शामिल हैं। प्रत्येक राज्य की अपनी अनूठी मिठाइयाँ होती हैं जो उन सामग्रियों से बनाई जाती हैं जो आस-पास आसानी से उपलब्ध होती हैं।
भारतीय मिठाइयाँ कई प्रकार की चीनी और गुड़ के अलावा दूध, आटा, पिसी हुई दालें, चावल और अन्य सामग्रियों से बनाई जाती हैं। भारत में पैक्ड मिठाई का बाजार लगभग 4500 करोड रुपए का है और आगे आने वाले कुछ वर्षों में अनुमान है की है इसमें कई गुना की बढोतरी दर्ज होगी। अब आपमें से बहुत घसीटाराम के हलवे, प्रभु जी के दरवेश लड्डू , धारवाड़ पेड़ा के दीवाने होंगे।
अब आप ना सिर्फ आप लोगों को यह खिला सकते हैं बल्कि गिफ्ट भी कर सकते है वह भी बिना रस गिरे, यह अब बाजार में काफी अच्छी पैकेजिंग में उपलब्ध है। वैसे भी कोई पारंपरिक मिठाई किसी खास इलाके में क्यों रह जाए , जैसे अगर पश्चिम बंगाल का रसगुल्ला और संदेश बेंगलुरु तक जा सकता है तो मैसूर का स्पेशल मैसूर पाक राजस्थान की मिठाई की दुकान की शोभा बढ़ा रहा है हां लेकिन इसमें जरूरी है कि इन मिठाइयों की ना मिठास कम हो न ही उसकी क्वालिटी। इस सबके लिए आत्मनिर्भर भारत के योजना के तहत लोगों को सरकार से सहयोग भी मिल रहा है माना जा रहा है 2023 से भारतीय मिठाई का मार्केट 15,05.2 करोड रुपए तक बढ़ बढ़ाने की उम्मीद है वैसे भी आत्मनिर्भर भारत की योजना के तहत अब लोगों में जी आई टैग को लेकर उत्सुकता बड़ी है लोग भारतीय मिठाई को पूरी दुनिया तक पहुंचाना चाहते हैं फिर चाहे वह सिलाव का खाजा हो या फिर मैसूर पाक या सीताभोग जो कि एक किंवदंती के अनुसार, बर्दवान के महाराजा ने अपने ब्रिटिश मेहमानों के लिए हलवाईयों से एक विशेष प्रकार की मिठाई सीताभोग और मिहिदाना बनाने का निर्देश दिया था साल 2017 में सीताभोग को जीआई टैग मिला।
2018 में बिहार के सिलाओ खाजा को जीआई टैग प्राप्त हुआ। ऐसा कहा जाता है कि सिलाओ के तापमान और पानी ने इस व्यंजन के स्वाद और स्वरूप को प्रभावित किया है। इसमें 12 से 16 अविश्वसनीय रूप से पतली आटे की शीटें होती हैं जो एक के ऊपर एक खड़ी होती हैं और कुरकुरी और बहुस्तरीय होती है। लोककथा के अनुसार, बुद्ध को राजगीर से नालंदा की यात्रा करते समय सिलाओ खाजा दिया गया था। यह मिठाई भी बनने के बाद लगभग 12-15 दिनों तक खासी फ्रैश रहती है।
मूंगफली से बनी मीठी चिक्की भारत में काफी पसंद किया जाने वाला नाश्ता है। हालाँकि, यदि आप अनोखी कदलाई मिट्टई आज़माना चाहते हैं, तो आपको तमिलनाडु के कोविलपट्टी की यात्रा करनी चाहिए। स्थानीय उत्पादकों का दावा है कि मिठाई का विशिष्ट स्वाद सावधानी से खरीदी गई मूंगफली और जैविक गुड़ में थामिराबरानी नदी के पानी को मिलाने के कारण है। अप्रैल 2021 में, मिठाई को अपना जीआई लेबल प्राप्त हुआ।
वैसे मिठाई खाने और खिलाने को लेकर किसी कवि ने खूब कहा है “य़े जो महक है इसकी मिठास पकवानोँ की तेरे मेरे रिश्ते की झलक है”.