अगले साल विनिवेश लक्ष्य घटा सकती है सरकार, नहीं मिल रहे खरीदार
मुंबई- वित्त वर्ष 2024-25 के लिए विनिवेश लक्ष्य घटाया जा सकता है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि आईडीबीआई बैंक सहित कुछ विशेष विनिवेश को छोड़ दें तो केंद्र सरकार को अगले वित्त वर्ष में संपत्ति बिक्री से बड़ी रकम मिलने की संभावना नहीं दिख रही।
सूत्रों के अनुसार, अभी अगले वित्त वर्ष के लिए बजट अनुमान लगा रहे हैं। मगर बड़ी संपत्तियों की बिक्री की ज्यादा संभावना नहीं है, इसलिए ध्यान मौजूदा सौदों को पूरा करने पर ही रहेगा। वैश्विक अनिश्चितता ने निवेशकों का हौसला कमजोर किया है, जिसका असर सौदे पूरे करने की पिछली समयसीमा पर भी पड़ा है।
वित्त वर्ष 2025 के बजट अनुमान में विनिवेश का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमान से करीब 15-20 फीसदी कम रखा जा सकता है। मगर यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि अभी चल रही संपत्ति बिक्री की क्या प्रगति है। केंद्र सरकार चालू वित्त वर्ष के 51,000 करोड़ रुपये के बजट अनुमान में भी कटौती कर सकती है। ऐसा हुआ तो चौथा मौका होगा, जब सरकार अपना विनिवेश लक्ष्य पूरा नहीं कर पाएगी।
निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) के आंकड़ों के अनुसार संपत्ति बेचकर सरकार अभी तक 8,000 करोड़ रुपये ही जुटा पाई है। अगले वित्त वर्ष बिक्री के कुछ प्रस्तावों को अगले वित्त वर्ष के टाला जा सकता है, लेकिन इंडियन रीन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी में 25 फीसदी हिस्सेदारी की बिक्री के लिए आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) चालू वित्त वर्ष के अंत तक आ सकता है।
केंद्र सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से मिलने वाले लाभांश को लेकर भी आशान्वित है और उसे इस मद में बजट अनुमान के मुताबिक 43,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का लाभांश मिलने की उम्मीद है। सरकार ने अंतिम बार 2018-19 में ही विनिवेश लक्ष्य पूरा किया था। सरकार को तब 84,972 करोड़ रुपये मिले थे, जबकि बजट अनुमान 80,000 करोड़ रुपये का था।
वित्त वर्ष 2020 में वास्तविक प्राप्तियां 50,299 करोड़ रुपये रहीं, जो उस वित्त वर्ष के बजट अनुमान की आधी थीं। महामारी के दौरान 2020-21 और 2021-22 में भी विनिवेश के जरिये अनुमान से बहुत कम रकम मिली।
वित्त वर्ष 2023 में भारतीय जीवन बीमा निगम के आईपीओ से सरकार को 35,293 करोड़ रुपये मिले थे। फिर भी उस बार विनिवेश प्राप्तियां संशोधित अनुमान से करीब 15,000 करोड़ रुपये कम रह गईं।
विशेषज्ञों के अनुसार संपत्तियों की बिक्री में धीमी प्रगति सरकार के लिए चिंता की बात नहीं है क्योंकि कर और गैर-कर राजस्व संग्रह बेहतर है। हाल में किसी नए रणनीतिक विनिवेश को भी मंजूरी नहीं मिली है। कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और अगले साल लोकसभा चुनाव भी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे में विनिवेश जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दे पर सरकार शायद ज्यादा जोर न दे।
आईडीबीआई बैंक में शेयर बिक्री के प्रस्ताव को 8 महीने पहले शुरुआती बोलियां मिली थीं। लेकिन अभी तक छांटे गए बोलीदाताओं पर भारतीय रिजर्व बैंक से ‘उपयुक्त एवं उचित’ का ठप्पा नहीं लगाया है। दीपम के मुताबिक देर इसलिए हो रही है क्योंकि बैंकिंग जैसे संवेदनशील क्षेत्रों के लिए जांच-परख की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है।
बीईएमएल और शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया में रणनीतिक विनिवेश इसलिए अटक गया क्योंकि उनके भूखंडों को मुख्य विनिवेश गतिविधियों से अलग किया जाना है। कॉनकॉर के मामले में रेल मंत्रालय ने लॉजिस्टिक्स कीमतों पर असर पड़ने की चिंता जताई है। वहीं निवेशकों द्वारा ज्यादा रुचि नहीं दिखाए जाने के कारण भारत पेट्रोलियम में हिस्सेदारी बिक्री का प्रस्ताव रद्द कर दिया गया। पवन हंस और सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए बोली जीतने वालों को अपात्र ही करार दे दिया गया।