छह दशकों की तुलना में पिछले 9 वर्षों में ज्यादा बढ़ा बैंकों का जमा और कर्ज 

मुंबई- देश के बैंकों की वित्तीय सेहत लगातार मजबूत होती जा रही है। आंकड़े बताते हैं कि 1951 से लेकर 2014 तक के छह दशकों में बैंकों के जमा और कर्ज का कुल आकार 142 लाख करोड़ रुपये रहा, जबकि 2014 से 2023 के बीच यह 187 लाख करोड़ रुपये रहा। यानी पिछले 9 वर्षों में जो बढ़त रही, वह 60 वर्षों की तुलना में 1.3 गुना रही। 

एसबीआई की एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, बैंकों की एसेट और लाइबिलिटी यानी जमा व कर्ज में पिछले 9 वर्षों में अच्छी खासी तेजी आई है। बैंकिंग के बही खाते सुधरने का असर सीधे तौर पर देश की अर्थव्यवस्था पर भी दिखा है। 1951 से 2014 की तुलना में पिछले 9 वर्षों में नॉमिनल जीडीपी 1.4 गुना बढ़ी है। वित्त वर्ष 2024 में नॉमिनल जीडीपी की तुलना में बैंकों का कर्ज अनुपात 1.7 गुना रह सकता है जो उसके पहले के साल में 1.2 गुना था। 

रिपोर्ट के अनुसार, 2001 से 2010 के बीच बैंकों का कर्ज नॉमिनल जीडीपी के अनुपात में औसतन 1.82 गुना बढ़ा जबकि 2011-20 के दौरान इसमें एक गुना की कमी देखी गई। ऐसा इसलिए, क्योंकि 2008 में वैश्विक मंदी से बैंकों की बैलेंसशीट पर भारी दबाव प़ड़ा था। 2020–21 और 2022 में कोरोना के कारण जीडीपी पर असर हुआ तो बैंकिंग क्षेत्र में 2008 की तरह ही रुझान देखने को मिला था। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि त्योहारी सीजन में कर्ज की मांग तेजी से बढ़ सकती है। हालांकि, हाल में खुदरा कर्ज पर जोखिम को लेकर जताई जा रही चिंता के बीच रिपोर्ट में कहा गया है कि असुरक्षित खुदरा कर्ज कुल पर्सनल लोन का दसवां हिस्सा है। इसमें भी आधा हिस्सा हाउसिंग का है जो लंबे समय के लिए होता है। 

कुल पर्सनल लोन में 50 हजार रुपये और उससे ज्यादा का हिस्सा 98 फीसदी है। 50 हजार से कम का हिस्सा केवल 2 फीसदी है। ऊंची महंगाई से लोग क्रेडिट कार्ड पर अब कम खर्च कर रहे हैं। अगस्त में जरूर क्रेडिट कार्ड से खर्च में 13 फीसदी की बढ़त आई पर जनवरी की तुलना में इसमें 24 फीसदी की गिरावट आई है। 

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