नये उभरते भारत के आधार स्तंभ हैं हमारे देश के शिक्षक
नये उभरते भारत के आधार स्तंभ हैं हमारे देश के शिक्षक
(कुमार नीलेंदु, हेड, डेवलपमेंट सपोर्ट टीम, CRY-पश्चिम)
मुंबई- अभी हमने हाल ही में हम सभी ने देश भर में शिक्षक दिवस मनाया, क्योंकि हम जानते हैं कि शिक्षक सही मायनों में राष्ट्र निर्माता हैं। लेकिन क्या हमने वास्तव में इस विचार और विरासत को आगे बढ़ाया है? दुर्भाग्य से, इस प्रश्न का उत्तर हाँ में नहीं होगा।
हमारे देश में हमारे शिक्षकों को सम्मान देने की एक समृद्ध परंपरा रही है क्योंकि शिक्षकों को अतीत काल से ही हमारे समाज के सबसे सम्मानित स्तंभों में से एक माना जाता रहा है, क्योंकि ये सामूहिक चेतना को जगाने का काम करते आ रहे हैं। इसीलिए इनको समर्पित एक श्लोक से तो हम सभी परिचित ही हैं –
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरूसाक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः।।
गुरु या शिक्षक को भगवान और माता-पिता से भी श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि वे ही बच्चे को ज्ञान और बुद्धि प्रदान करते हैं और उन्हें इस तरह का नागरिक बनाते हैं जो समाज और देश को आगे ले जाते हैं। हाल के दिनों में हमारे शिक्षकों को वह सम्मान और स्थान नहीं दिया गया है जो उन्हें पहले प्राप्त था। उनके लिए जो नीतियां बनाई गई हैं उनमें शिक्षकों को सशक्त बनाने के लिए आवश्यक महत्व और जोर नहीं दिया गया है जो उन्हें वास्तव में हमारे देश के भविष्य को आकार देने में सक्षम बना सकता है।
आइए प्रारंभिक शिक्षा के लिए पूरे बोर्ड में प्रशिक्षित शिक्षकों की स्थिति पर एक नज़र डालें। 2017-18 में क्राई संस्था के सहयोग से CGBA द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, पिछले काफी सालों से शिक्षकों की शिक्षा धन की कमी से जूझ रही है। शिक्षक की शिक्षा में शिक्षकों का सेवा से पहले और सेवा के दौरान ट्रेनिंग, दोनों शामिल हैं। अध्ययन में बताये गए अवधि के दौरान, प्रारंभिक स्तर पर कुल 66।41 लाख शिक्षक थे और उनमें से 11 लाख शिक्षकों को कोई ट्रेनिंग ही नहीं दी गई थी। इसके बावजूद, शिक्षक को बेहतर ट्रेनिंग देने में काफी हिचकिचाहट सी है।
2017-18 (बीई) में शिक्षकों की शिक्षा उत्तर प्रदेश में 0।001 प्रतिशत से लेकर बिहार में 1।3 प्रतिशत तक था। हालाँकि, ऐसा लगता है कि 14वें एफसी की सिफारिशों के बाद राज्यों को प्राप्त अतिरिक्त संसाधनों के साथ 2014-15 (ए) की तुलना में पिछले तीन वर्षों में शिक्षकों की ट्रेनिंग के लिए बजट में वृद्धि कर दी गई है। ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि आंशिक रूप से 2019 तक सभी पेशेवर रूप से अयोग्य शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए आरटीई अधिनियम के तहत सरकार द्वारा समय सीमा भी निर्धारित कर दी गई है। (स्रोत – स्कूली शिक्षा के लिए बजट: क्या बदला है और क्या नहीं? सीबीजीए और क्राई द्वारा 14वें फाइनेंस कमीशन रिकमेन्डेशन पीरियड में छह राज्यों का विश्लेषण)। यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि हमें वास्तव में शिक्षक को ट्रेनिंग देने में निवेश करना होगा और इसे मिशन मोड में आगे ले जाना होगा।
मैंने क्राई के साथ अपने काम में ऐसे उदाहरण देखे हैं, जहां शिक्षकों ने अपने स्कूलों को बेहतर बनाने के लिए अतिरिक्त प्रयास किए हैं, यहां तक कि उन्होंने अतिरिक्त कठिनाइयाँ और पैसे का बोझ भी उठाया है। ऐसा ही एक मामला जो मेरी याददाश्त में आज भी ताजा है, वह मैंने छत्तीसगढ़ में देखा। एक सरकार में 2 शिक्षकों ने सरकारी स्कूल के मामूली स्कूल भवन को सही लुक देने के लिए अपनी जेब पैसा लगाया जो बच्चों और उनके माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करेगा। लेकिन, इस दौरान उन्होंने स्कूल में बच्चों को एक बहुत ही मूल्यवान पाठ पढ़ा दिया कि कड़ी मेहनत करने और खुद आगे आकर पहल करने से वास्तव में हमारी स्थिति में सुधार हो सकता है।
एनईपी 2020 सही दिशा में एक कदम है। लेकिन, इसके उद्देश्यों और समयसीमा को पूरा करने के लिए एनईपी 2020 को सही मायने में इसे मूल भावना के साथ लागू किया जाना चाहिए। मैं चाहता हूं कि एनईपी 2020 शिक्षकों के ट्रेनिंग के पहलू को आवंटित बजट के 2% से अधिक देने के साथ साथ संसाधन भी प्रदान किया जाए। इसके साथ ही शिक्षकों के ट्रेनिंग को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए और हमें अपने शिक्षकों को नवीनतम ज्ञान, तकनीक और शिक्षाशास्त्र से लैस करना चाहिए और यह सब कुछ एक मिशन मोड में किया जाना चाहिए।
जब भी मैं शिक्षकों को किसी अपनी मांगे मनवाने के लिए या फिर विरोध प्रदर्शन करने के लिए उन्हें सड़क पर उतरता देखता हूँ तो यह मेरे लिए बड़ा ही निराशादायक अनुभव होता है। हमें भविष्य के भारत के निर्माण में शिक्षकों के महत्व को सबसे महत्वपूर्ण मानते हुए अगले दशक के लिए एक सुविचारित, समयबद्ध योजना अपनानी चाहिए, जो दुनिया से आगे निकल सके और हमारी आने वाली पीढ़ियों को एक ऐसे भारत के सपने को हासिल करने के लिए तैयार कर सके, जिससे नए भारत का नवनिर्माण हो सके और जिसके चलते यह वर्ल्ड लीडर का स्थान ले सके।