आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल पीएमएस: एक ही छत के नीचे मिलता है सब कुछ
मुंबई- बीते एक साल में पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज (पीएमएस) की दुनिया पहले से कहीं ज्यादा सुर्खियों में रही है। अभी तक एसेट मैनेजमेंट कंपनियां मुख्य रूप से रिटेल निवेशकों पर ध्यान केंद्रित करती थीं, लेकिन पिछले कुछ सालों में इस ट्रेंड में बदलाव दिखा है। भारत में एचएनआई की संख्या में जिस तरह से लगातार वृद्धि हो रही है, उसके परिप्रेक्ष्य में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि अब ऐसी कंपनियां अपने विशेष ऑफर्स के साथ निवेशकों के इस खास क्लास में पैठ बनाना चाह रही हैं।
एसेट के मैनेजमेंट से होने वाले ग्रोथ के मामले में पिछले एक साल में सबसे तेजी से बढ़ने वाला पीएमएस प्लेयर आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी था, जिसने पीएमएस एयूएम में 90% की धमाकेदार वृद्धि दर्ज की। यह उस समय था जब इनवेस्को एसेट मैनेजमेंट (इंडिया), निप्पॉन लाइफ इंडिया एसेट मैनेजमेंट और मोतीलाल ओसवाल एसेट मैनेजमेंट कंपनी जैसी नामी कंपनियों ने अपनी संपत्ति में गिरावट दर्ज की थी।
एयूएम | ग्राहकों की संख्या | |||||
पोर्टफोलियो मैनेजर | जून 2022 | जून 2023 | वृद्धि (%) | जून 2022 | जून 2023 | वृद्धि (%) |
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी | 2,720 | 5,176 | 90 | 3,611 | 5,707 | 58 |
एसबीआई फंड्स मैनेजमेंट | 333 | 557 | 67 | 516 | 788 | 53 |
इनवेस्को एएमसी (इंडिया) | 661 | 615 | -7 | 1,250 | 935 | -25 |
निप्पॉन लाइफ इंडिया | 626 | 578 | -8 | 1,338 | 1,168 | -13 |
मोतीलाल ओसवाल एएमसी | 10,193 | 9,226 | -9 | 16,102 | 12,283 | -24 |
डेटा स्रोत: एपीएमआई, एयूएम करोड़ रुपये में
दिलचस्प बात यह है कि आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल 2000 में पीएमएस लाइसेंस हासिल करने वाली भारत की पहली एसेट मैनेजमेंट कंपनी थी। पिछले दो दशकों में, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल पोर्टफोलियो मैनेजमेंट के क्षेत्र में ट्रेंडसेटरों में से एक रही है जो विभिन्न इनवेस्टमेंट थीम के इर्द-गिर्द अपने प्रोडक्टस लॉन्च कर रही है।
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल के पीएमएस के प्रमुख आनंद शाह के पास 20 से अधिक अनुभवी रिसर्च की टीम है जो 25 से अधिक सेक्टर्स के 470 से अधिक शेयरों को कवर करते आए हैं। निवेश टीम यह सुनिश्चित करती है कि पोर्टफोलियो का निर्माण रिस्क-इनाम की क्षमता को ध्यान में रखते हुए किया जाए।
कॉन्ट्रा, पीआईपीई और फ्लेक्सीकैप स्ट्रेटेजी पर आधारित प्रोडक्टस ने निवेशकों को मनमाफिक रिजल्ट प्रदान किया है।
स्ट्रेटेजी | 1 वर्ष | 2 साल | 3 साल |
कॉन्ट्रा स्ट्रेटेजी | 43.91 | 18.77 | 32.39 |
PIPE स्ट्रेटेजी | 45.66 | 25.63 | 43.45 |
फ्लेक्सीकैप स्ट्रेटेजी | 29.49 | 13.01 | 25.80 |
एसएंडपी बीएसई 500 टीआरआई (बेंचमार्क) | 23.98 | 11.72 | 26.42 |
स्रोत: पीएमएस बाज़ार, रिटर्न 30 जून 2023 तक, 1 वर्ष से ऊपर का डेटा CAGR है
कॉन्ट्रा का निवेश के प्रति विरोधाभासी या बिल्कुल उल्टा अप्रोच होता है। यहां, उद्देश्य यह होता है कि निवेश वहाँ किया जाए जहां एंट्री में ज्यादा मुश्किलें हों और जो प्रतिकूल बिजनेस साइकिल के कारण या किसी विशेष स्थिति के कारण या उद्योग में आए संकट के कारण चुनौतीपूर्ण समय से गुजर रहे हैं। पिछले एक साल में कॉन्ट्रा फंड ने बेंचमार्क एसएंडपी बीएसई 500 टीआरआई के 24% की तुलना में 44% का रिटर्न दिया है।
एक अन्य स्ट्रेटेजी – पीआईपीई – जो मुख्य रूप से मिड और स्मॉल कैप कंपनियों में निवेश करती है और जिनमें अगले 4-5 वर्षों में अच्छा खासा बढ़त लेने की क्षमता है, ने पिछले एक साल में 46% का शानदार रिटर्न दिया है। यह शानदार परफॉरमेंस एक अच्छी तरह से सोची गई निवेश प्रक्रिया का परिणाम है जिसने टीम को इतना उत्कृष्ट निवेश अनुभव देने में सक्षम बनाया है।
जब फ्लेक्सीकैप स्ट्रेटेजी की बात आती है, तो पोर्टफोलियो में ‘कोर’ और ‘सैटेलाइट’ एलेमेन्ट होते हैं। कोर पोर्टफोलियो 60% – 70% हो सकता है और यह मुख्य रूप से उन पर फोकस करता है जिनका वैल्यूऐशन बिल्कुल तथ्यों के आधार पर (निरपेक्ष) होता है। जबकि सैटेलाइट पोर्टफोलियो कई निवेश स्ट्रेटेजीयों का मिला जुला होगा जिसका उद्देश्य उचित मूल्य पर ग्रोथ के अनुरूप होता है। इसका उपयोग लाभ कमाने और मुख्य पोर्टफोलियो का वजन बढ़ाने के लिए मौका मिलने पर किया जाएगा। पिछले वर्ष इस स्ट्रेटेजी ने 29.5% रिटर्न दिया है।
आनंद शाह का मानना है कि एक अच्छी तरह से परिभाषित निवेश प्रक्रिया को पोर्टफोलियो मैनेजर को बिजनेस साइकिल में बने रहने दिया जाना चाहिए। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल पीएमएस टीम इन-हाउस बिजनेस-मैनेजमेंट-वैल्यूएशन (बीएमवी) ढांचे पर भरोसा करती है। इसका उद्देश्य दीर्घकालिक विकास की क्षमता वाली लचीली कंपनियों की पहचान करना है। इस ढांचे के माध्यम से, टीम सक्षम मैनेजमेंट वाली उन मजबूत कंपनियों की पहचान करती है जो उचित मूल्यांकन पर कारोबार कर रही हैं।
बिजनेस फिल्टर के तहत, टारगेट उन मजबूत व्यवसायों की पहचान करना होता है जिनमें तेजी से आगे बढ़ने की क्षमता है। शाह कहते हैं कि यहां हम उन उद्योगों की पहचान करते हैं जो जीडीपी की तुलना में तेजी से बढ़ सकते हैं और ऐसी कंपनियां जो उन उद्योगों में प्रतिस्पर्धियों की तुलना में तेजी से बढ़ सकती हैं। दूसरा फोकस उन कंपनियों पर होता है जिनमें लगातार प्रतिस्पर्धा से लाभ देने का माद्दा होता है। और अंत में, हम उन उद्योगों को प्राथमिकता देते हैं जो विखंडित हो रहे उद्योगों की तुलना में मजबूत हो रहे हैं।
उनके मुताबिक, चूंकि हम किसी निवेश को 5 से 10 साल के नजरिए से देखते हैं, इसलिए ये प्रोसेस फॉलो करना महत्वपूर्ण है। एक बार संभावित बिजनेस की पहचान हो जाने के बाद, पूरा ध्यान उनकी मैनेजमेंट टीमों पर केंद्रित हो जाता है। यहां, कॉर्पोरेट प्रशासन स्टैन्डर्ड, उनकी योग्यता और शेयरहोल्डरों के साथ जुड़ाव के मामले में जिनका अच्छा खासा ट्रैक रिकॉर्ड होता है उन्हें इस स्टेप को पार करना होना है। अब, अंतिम चरण वैल्यूऐशन होता है।