वैश्विक झटकों के बाद भी चालू वित्त वर्ष में 6 पर्सेंट की दर से बढ़ेगी जीडीपी 

मुंबई- भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सदस्य आशिमा गोयल ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में देश की आर्थिक वृद्धि दर छह प्रतिशत से अधिक रहेगी। देश बड़े वैश्विक झटकों के दौर में भी आर्थिक स्थिरता और प्रदर्शन को मजबूत रखने में कामयाब रहा है। 

गोयल ने कहा, वैश्विक मंदी से भारत की निर्यात वृद्धि कम हो रही है। देशों के बीच तनाव से तेल और खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ रही हैं। खराब मौसम भी ऐसे कुछ जोखिम हैं, जिनका देश सामना कर रहा है। देश की आर्थिक वृद्धि दर 2022-23 में 7.2 प्रतिशत रही थी। केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। 

गोयल ने कहा, लंबे समय से कंपनियों की महंगाई का अनुमान चार प्रतिशत के आसपास हैं। इसका मतलब है कि लागत के झटकों के बावजूद, उनकी मूल्यवृद्धि चार प्रतिशत से अधिक नहीं है। अगस्त में खुदरा महंगाई घटकर 6.83 प्रतिशत पर आ गई है। गोयल के अनुसार, बार-बार आपूर्ति के झटके (यूक्रेन युद्ध की तरह) होने पर भी, महंगाई की उम्मीदों को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक सख्ती पर्याप्त होनी चाहिए। हालांकि इतनी तेज नहीं कि एक बड़े विकास का बलिदान दे दिया जाए। 

गोयल ने कहा, सरकारी पूंजीगत खर्च स्टील, सीमेंट, लॉजिस्टिक्स, हरित बुनियादी ढांचे में निजी पूंजीगत खर्च के अवसर पैदा करता है। एक अच्छे चक्र में जीडीपी के साथ कदम मिलाकर निजी पूंजीगत खर्च लगातार बढ़ेगा, भले ही चुनावी वर्ष में राजनीतिक अनिश्चितता के कारण कुछ देरी हो। 

आरबीआई ने मासिक बुलेटिन में कहा कि 2,000 रुपये के नोटों की वापसी के कारण मुद्रा के चलन (सीआईसी) की वृद्धि 8.2 फीसदी से घटकर 4 फीसदी हो पर आ गई है। 31 अगस्त तक जमा के रूप में 2000 रुपये के लगभग 93 फीसदी नोट बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गए हैं।2000 रुपये के नोटों को बदलने की आखिरी तारीख 30 सितंबर को है। बैंकों में वापस आए कुल नोटों में से लगभग 87 फीसदी जमा के रूप में थे और शेष 13 फीसदी को बदला गया है। 

मासिक बुलेटिन में आरबीआई ने कहा, चीन और यूरोप में मंदी को लेकर चिंताएं हैं। आक्रामक मौद्रिक सख्ती का प्रभाव फैल रहा है। सेवा क्षेत्र में आवास, बैंक ऋण और औद्योगिक उत्पादन की गति में गिरावट आ रही है। आरबीआई के उप गवर्नर माइकल पात्रा ने इस लेख को लिखा है।  

उनके अनुसार, वसुधैव कुटुंबकम के लोकाचार के साथ भारत की जी20 की अध्यक्षता और इसके परिणाम ऐसे माहौल में महत्व रखते हैं, जहां वैश्विक आर्थिक गतिविधि विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक आर्थिक स्थितियों में द्वंद्व के कारण गति में कमी का अनुभव कर रही है। कमजोर होती वैश्विक संभावनाओं के बीच, भारतीय अर्थव्यवस्था घरेलू चालकों – निजी खपत के नेतृत्व में ताकत हासिल कर रही है। 

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