डीलिस्टिंग ऑफर में हिस्सा लेनेवाले पब्लिक शेयरधारकों को ये लाभ मिलते हैं
पहले समझिए डीलिस्टिंग क्या है?
मुंबई- डीलिस्टिंग एक स्टॉक एक्सचेंज से किसी शेयरों के कारोबार और लिस्टिंग को हटा देना है। किसी भारतीय लिस्टेड कंपनी के लिए शेयरों को लिस्ट करने की प्रक्रिया सिक्युरिटी मार्केट को रेगुलेट करने वाली भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा नियंत्रित की जाती है।
सेबी (इक्विटी शेयरों की डीलिस्टिंग) रेगुलेशन, 2021 (डीलिस्टिंग रेगुलेशन) के अनुसार, एक बार पोस्टल बैलट या ई-वोटिंग के माध्यम से आवश्यक बहुमत के साथ शेयरधारक की मंजूरी और स्टॉक एक्सचेंजों से सैद्धांतिक मंजूरी जहां कंपनी सूचीबद्ध है, प्राप्त की जाती है और प्रक्रिया में अगला महत्वपूर्ण कदम विस्तृत सार्वजनिक घोषणा और प्रस्ताव पत्र जारी करना होता है।
ऑफर डॉक्युमेंट्स जारी होने पर, बिडिंग सिस्टम शुरू हो जाता है और जिसमें पब्लिक शेयरहोल्डरों को डीलिस्टिंग मूल्य निर्धारित करने के लिए रिवर्स बुक बिल्डिंग (आरबीबी) प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर दिया जाता है।
फिज़िकल या डीमैट रूप में इक्विटी शेयर रखने वाले सभी योग्य पब्लिक शेयरहोल्डर आरबीबी प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं। बिडिंग या टेन्डरिंग चरणों और प्रासंगिक समय सीमा के साथ ऑफर लेटर योग्य शेयरधारकों को उचित समय पर भेजा जाता है। डीलिस्टिंग ऑफर को तभी सफल माना जाता है यदि डीलिस्टिंग ऑफर के माध्यम से स्वीकार किए गए इक्विटी शेयर अधिग्रहण कर्ता (प्रमोटर और प्रमोटर समूह के अन्य सदस्यों के साथ) डीलिस्टिंग रेगुलेशन के अनुसार कंपनी की शेयरधारिता को पेड-अप इक्विटी शेयर पूंजी का कम से कम 90% तक ले जाते हैं।
भारत में मौजूदा टैक्स कानूनों के तहत, किसी भारतीय कंपनी में इक्विटी शेयरों की बिक्री पर कैपिटल गेन टैक्स लगता है। चाहे शेयरधारक भारत का निवासी हो या अनिवासी, किसी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड इक्विटी शेयर बेचने से कोई भी लाभ भारत में कैपिटल गेन टैक्स के दायरे में आएगा।
घरेलू स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से आए डीलिस्टिंग ऑफर्स में स्टॉक एक्सचेंज द्वारा सिक्युरिटी ट्रैन्सैक्शन टैक्स (एसटीटी) कलेक्ट किया जाता है और शेयरधारक को देय राशि से काट लिया जाता है। डीलिस्टिंग ऑफर से पहले 12 महीने तक की अवधि के लिए शेयर रखने वाले शेयरधारकों के लिए लाभ को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन के रूप में माना जाएगा और आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 111 ए के अनुसार 15% टैक्स लगाया जाएगा।
12 महीने से अधिक समय तक शेयर रखने वाले शेयरधारकों को 1 लाख रुपये से अधिक के लाभ पर आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 112ए और धारा 55(2)(एसी) के अनुसार 10% की दर से लॉंग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा।। इक्विटी शेयरों की बिक्री से भारत में एक अनिवासी को होने वाले कैपिटल गेन की करदेयता (taxibility) का मूल्यांकन प्रावधानों के आधार पर किया जाता है। यह भारत और विक्रेता जिस देश का निवासी है, के बीच आयकर अधिनियम या दोहरा कराधान बचाव समझौता द्वारा निर्धारित शर्तों के बीच ते किया जाता है। ये टैक्स की दरें सरचार्ज, हेल्थ और एजुकेशन सेस के रेट्स के अधीन होते हैं।
टैक्स की दरों और अन्य प्रावधानों में बदलाव भी हो सकता है। यदि डीलिस्टिंग सफल होती है और शेष शेयरधारक जिन्होंने आरबीबी प्रक्रिया में अपने शेयर नहीं दिए हैं, उनसे ज्यादा टैक्स लिया जा सकता है क्योंकि उनके पास गैर-सूचीबद्ध शेयर होंगे।
इस पूरी प्रक्रिया में अधिग्रहण व्यक्ति के साथ-साथ एक्वायर, जो कंपनियों को सफलतापूर्वक डीलिस्ट करने में कामयाब रहा है, उनने कुछ मामलों में 10% से लेकर 200% से अधिक तक का प्रीमियम अदा करना पड़ा है। इनमें से कुछ डीलिस्टिंग ऑफ़र्स का विवरण नीचे दिया दिया जा रहा है:
यह ध्यान देना जरूरी है कि डीलिस्टिंग की घोषणा के समय घोषित की गई फ्लोर प्राइस मैनेजमेंट द्वारा तय नहीं की जाती है। यह केवल अधिग्रहणकर्ता (acquirer) द्वारा प्रस्तावित मिनमम प्राइस के रूप में कार्य करता है और इसकी गणना डीलिस्टिंग रेगुलेशन के अनुसार की जाती है। वास्तविक कीमत आरबीबी प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित की जाती है, जहां अधिक सार्वजनिक शेयरधारक भागीदारी का मतलब सार्वजनिक शेयरधारकों के साथ डीलिस्टिंग मूल्य स्थापित करने के अधिक अवसर से होता है।
एक बार जब डीलिस्टिंग ऑफर अधिग्रहणकर्ता की स्वीकृति के बाद सफल हो जाता है, तो शेष सार्वजनिक शेयरधारक जिन्होंने आरबीबी प्रक्रिया में भाग नहीं लिया है, उन्हें उन शेयरों के बावजूद आरबीबी में डीलिस्टिंग तिथि से कम से कम एक वर्ष के लिए अपने इक्विटी शेयरों को टेंडर करने का अधिकार है, हालांकि उन शेयरों को टैक्स की गणना के लिए अनलिस्टेड शेयरों के रूप में माना जाएगा।