पत्नी के गहने बेचकर खोला होटल, आज दुनिया के सबसे मशहूर रेस्तरां में  

मुंबई- अगस्त 1947 में देश की बंटवारे की विभीषिका से गुजरना पड़ा था। यह मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है। पाकिस्तान से भारत आए लोगों के शुरुआत में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। किसी नें तांगा चलाया तो किसी को एक छोटे से कमरे में 13 लोगों के साथ रहना पड़ा। लेकिन इनमें से कई लोगों ने अपनी मेहनत और लगन के दम पर सफलता हासिल की। 

महाशियां दी हट्टी यानी एमडीएच कंपनी के फाउंडर महाशय धर्मपाल गुलाटी को भारत में मसालों का बादशाह कहा जाता है। धर्मपाल गुलाटी का जन्म पाकिस्तान के सियालकोट में 27 मार्च, 1923 को हुआ था। देश विभाजन के दौरान उनका परिवार भारत आ गया। दिल्ली आकर उन्हें कुछ काम-धंधा न मिला तो तांगा चलाने लगे।  

फिर अजमल खां रोड पर खोखा बनाकर दाल, तेल, मसालों की दुकान शुरू कर दी। काम चल निकला और 1960 में उन्होंने कीर्ति नगर में फैक्ट्री लगाई। जल्दी ही पूरे देश में एमडीएच मसालों की धूम मचने लगी। अभी एमडीएच के 60 से अधिक प्रॉडक्ट बाजार में हैं। 2016 में उन्हें 21 करोड़ रुपये से अधिक सैलरी मिली थी जो गोदरेज कंज्यूमर के आदि गोदरेज और विवेक गंभीर, हिंदुस्तान युनिलीवर के संजीव मेहता और आईटीसी के वाईसी देवेश्वर से अधिक थी। उनका निधन दिसंबर 2020 में हुआ। 

रौनक सिंह का जन्म 16 अगस्त 1922 को पाकिस्तान में हुआ था। उन्होंने लाहौर में स्टील ट्यूब्स बनाने का बिजनस शुरू किया था लेकिन बंटवारे के कारण उन्हें पाकिस्तान छोड़ना पड़ा। भारत आने के बाद वह गोल मार्केट में एक छोटे से कमरे में 13 दूसरे लोगों के साथ रहे। शुरुआत में उन्होंने मसालों की एक दुकान पर काम किया जहां उन्हें दिन का एक पैसा मिलता था।  

उन्होंने पत्नी के गहने बेचकर कोलकाता में मसालों का काम शुरू किया जो चल निकला। लेकिन उनकी किस्मत में स्टील था। कहा जाता है कि एक बार दिल्ली से कोलकाता जाते समय उन्हें स्टील ट्यूब बनाने वाली एक कंपनी के सीईओ मिले। इस तरह भारत स्टील ट्यूब्स लिमिटेड की शुरुआत हुई। रौनक सिंह ने 1972 में अपोलो टायर्स की शुरुआत की जो दुनिया की प्रमुख कंपनियों में से एक है। रौनक सिंह का 2002 में निधन हो गया। 

मोती महल देश के सबसे मशहूर रेस्टोरेंट्स में से एक है। आज इसके रेस्टोरेंट्स पूरी दुनिया में फैले हैं। इसकी शुरुआत दिल्ली के दरियागंज में एक छोटी सी दुकान से हुई थी। दुनिया को तंदूरी चिकन और बटर चिकन से रूबरू कराने का श्रेय भी इसी रेस्टोरेंट को जाता है। इसकी शुरुआत 1948 में पाकिस्तान से आए तीन लोगों कुंदन लाल गुजराल, कुंदन लाल जग्गी और ठाकुर दास मागो ने की थी। इन लोगों ने अपनी बीवियों के गहने बेचकर इस रेस्टोरेंट की शुरुआत की थी। इसके चाहने वालों में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी शामिल थे। जब इसकी लोकप्रियता बढ़ी तो नेहरू ने उन्हें बड़ी जगह दे दी। 

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