बेटी की मौत के बाद बना निरमा ब्रांड, ऐसे 80 के दशक में बना विज्ञापन
मुंबई-‘दूध सी सफेदी, निरमा से आई…निरमा, निरमा, वॉशिंग पाउडर निरमा’। 80 से दशक में पैदा होने वाले हर शख्स की जुंबा पर यह धुन चढ़ गया था। सफेद रंग की फ्रॉक पहने बेहद क्यूट दिखने वाली लड़की इस धुन पर गोल-गोल घूमकर लोगों को सफाई का मतलब समझाती थी।
80-90 के दशक में रेडियो और टीवी पर कुछ गिने-चुने विज्ञापन आते थे। बहुत कम लोगों के पास टीवी -रेडियो हुआ करता था, लेकिन इसके बाद भी निरमा के विज्ञापन ने सबका मन मोह लिया। विज्ञापन तो आपने भी कभी न कभी देखा होगा, लेकिन ‘निरमा गर्ल’ की दिल छू लेने वाली कहानी बहुत कम लोग जानते हैं। कैसे एक पिता-पुत्री की इमोशनल कहानी ने भारत के एक बड़े वॉशिंग पाउडर ब्रांड को जन्म दे दिया।
वॉशिंग पाउडर निरमा भारत का एक जाना-माना ब्रांड है। गंदे-मैले कपड़ों को चमकाने वाला ये वॉशिंग पाउडर अपने भीतर एक इमोशनल कहानी को समेटे हुए हैं। गुजरात के अहमदाबाद में रहने वाले करसन भाई पटेल ने अपनी बेटी को वापस पाने के लिए इस कंपनी की शुरुआत की। साल 1969 में उन्होंने अपने घर के आंगन से इसकी शुरुआत की और आज करोड़ों के टर्नओवर वाली मल्टीब्रांड कंपनी बन चुकी है।
करसन भाई का जन्म 13 अप्रैल 1944 में किसान परिवार में हुआ। पिता ने बेटे को केमेस्ट्री ऑनर्स करवाया। पढ़ाई के बाद बेटे की सरकारी नौकरी लग गई। शादी हुई और घर में एक प्यारी की बच्ची का जन्म हुआ। करसन भाई पटेल ने बेटी का नाम निरूपमा रखा। अपनी बेटी को बहुत ज़्यादा प्यार करते थे। प्यार से उसे निरमा कहकर बुलाते थे। लेकिन बाप-बेटी का यह प्यार ज्यादा दिन नहीं चल सका। एक हादसे में निरमा की मौत हो गई और करसन भाई को अपनी लाडली से हमेशा-हमेशा के लिए जुदा होना पड़ा।
करसन भाई बुरी तरह से टूट चुके थे। वो चाहते थे कि उनकी बेटी निरमा ख़ूब पढ़े लिखे और दुनिया भर में उसका नाम हो, लेकिन कम उम्र में ही उनकी मौत से ये सपना अधूरा रह गया। एक दिन अचानक उनके दिमाग में ख्याल आया कि क्यों न वो अपनी बेटी के नाम से कोई कंपनी शुरू करें, ताकि दुनियाभर में लोग निरमा के बारे में जाने।
केमेस्ट्री के छात्र करसन भाई ने घर के पीछे वाले आंगन में डिटर्जेंट बनाने का काम शुरू किया। कई बार फेल हुई, लेकिन आखिरकार उन्होंने फॉर्मूला निकाल ही लिया। वॉशिंग पाउंडर का नाम अपनी बेटी के नाम पर ‘निरमा’ रखा।