कोरोना से उबरकर मजबूत बना भारत, वैश्विक सुस्ती के दौर में निकला आगे 

मुंबई- विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने कहा कि भारत कोरोना महामारी के दौर की चुनौतियों से मजबूत बनकर उभरा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती के दौर में वह कई ऐसे कदम उठा रहा है, जो उसे आगे रखने में मदद कर रहा है। हालांकि, भारत को यह रफ्तार बनाए रखने की जरूरत है। 

विश्व बैंक के शीर्ष पद पर पहुंचने वाले भारतीय मूल के पहले व्यक्ति बंगा ने कहा कि भारत के पक्ष में खास बात यह है कि इसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बड़ा हिस्सा घरेलू मांग का है। इसलिए, भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर सुस्ती के बावजूद अपने घरेलू खपत की वजह से सुरक्षित है। यही खपत भारतीय अर्थव्यवस्था को प्राकृतिक सहारा प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि दुनिया में भले ही कुछ महीनों के लिए मंदी आ जाए, लेकिन भारत के पास इस तथ्य से प्राकृतिक सहारा है कि वह अधिक घरेलू खपत उन्मुख है। 

उच्च आय वाली नौकरियों में संभावित वृद्धि पर विश्व बैंक के अध्यक्ष ने कहा, हमें यह समझना होगा कि ये नौकरियां कहां पर हैं। ये नौकरियां प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हैं और बहुत कम संख्या में हैं। फिर विनिर्माण क्षेत्र में ऐसी नौकरियां हैं। विश्व बैंक अध्यक्ष ने कहा कि भारत के सामने फिलहाल यह मौका है कि वह ‘चीन प्लस वन’ रणनीति का फायदा उठाए। चीन प्लस वन रणनीति का मतलब है कि दुनिया के विकसित देशों की कंपनियां अब अपने विनिर्माण केंद्र के रूप में चीन के साथ किसी अन्य देश को भी जोड़ना चाहती हैं। इसके लिए भारत भी एक संभावित दावेदार के तौर पर उभरकर सामने आया है। 

भारत को यह भी ध्यान रखना होगा कि चीन प्लस वन रणनीति से मिलने वाला अवसर 10 वर्षों तक नहीं खुला रहेगा। यह तीन से लेकर पांच साल तक उपलब्ध रहने वाला अवसर है, जिसमें आपूर्ति शृंखला को अन्य देश में ले जाने या चीन के साथ अन्य देश को जोड़ने की जरूरत है। 

महामारी के दौरान चीन में विनिर्माण गतिविधियां पूरी तरह ठप होने से आपूर्ति शृंखला पर बहुत बुरा असर पड़ा था। उसी समय से बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने विनिर्माण गतिविधियों के लिए चीन के विकल्प की तलाश शुरू कर दी थी। 

बंगा की यह टिप्पणी भारत में सेमीकंडक्टर निर्माता माइक्रोन सहित अन्य अमेरिकी कंपनियों की हाल ही में की गई निवेश घोषणाओं के बाद आई है। 

विश्व बैंक अध्यक्ष के रूप में पहली बार भारत यात्रा पर आए बंगा ने कहा कि महामारी के दौरान स्कूलों के बंद रहने से पढ़ाई-लिखाई का बहुत अधिक नुकसान हुआ है। इस नुकसान से निपटना सिर्फ भारत की समस्या नहीं है, बल्कि यह दुनियाभर के लिए एक मुद्दा है। इसलिए, अगली महामारी आने से पहले ही एक मजबूत प्रणाली तैयार करने की जरूरत है ताकि ऐसी स्थिति को उत्पन्न होने से रोका जा सके। 

उन्होंने कहा, महामारी के दौरान स्कूल जाने वाली पीढ़ी को लेकर हमारे पास वास्तविक चुनौतियां हैं। हम जब कोविड-19 की चपेट में आए तो विकसित और विकासशील देश इससे निपटना सीख रहे थे। 

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