एफआईआई पर सेबी के नकेल कसने से 100 कंपनियों पर पड़ सकता है असर 

मुंबई- विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) के तौर पर पंजीकृत तकरीबन 100 इकाइयों पर बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (Sebi) के सख्त खुलासा नियमों का असर पड़ सकता है। पिछले महीने सेबी निदेशक मंडल ने जो नियम मंजूर किए थे, उनके मुताबिक एक समूह में 50 फीसदी से निवेश वाली या भारतीय शेयरों में 25,000 करोड़ रुपये से अ​धिक निवेश वाली FPI इकाइयों को अपने स्वामित्व, आ​र्थिक हित और इकाई पर नियंत्रण वाले व्यक्तियों के नामों का विस्तृत खुलासा करना होगा। 

प्राइम इन्फोबेस ने FPI शेयरधारिता का विश्लेषण किया, जिससे पता चलता है कि 100 के करीब FPI ऐसे हैं, जिनकी किसी एक समूह में 50 फीसदी या अधिक हिस्सेदारी है। मार्च 2023 को खत्म तिमाही में इन FPI के पास करीब 1.2 लाख करोड़ रुपये के शेयर थे। 51 FPI ने तो अपना समूचा निवेश एक ही कारोबारी समूह में किया है। 5 FPI का देसी शेयरों में 25,000 करोड़ रुपये से अ​धिक का निवेश है। 

सेबी के नए नियम का असर इससे भी ज्यादा FPI पर पड़ सकता है क्योंकि यह विश्लेषण नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में लिस्टेड कंपनियों द्वारा किए गए सार्वजनिक खुलासे पर आधारित है। नियम के मुताबिक 1 फीसदी से अ​धिक हिस्सेदारी रखने वाले FPI का नाम बताना होता है।  

हालांकि ऊपर बताई गई सीमा तक निवेश वाले सभी FPI को अलग से जानकारी देने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि सेबी ने सॉवरिन फंड, सार्वजनिक रिटेल फंड और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) जैसी इकाइयों को खुलासे के नए सख्त नियमों से परे रखा है। इसकी वजह यह है कि इन इकाइयों के स्वामित्व में किसी तरह की अस्पष्टता नहीं है। उदाहरण के लिए भारतीय शेयरों में सबसे ज्यादा 1.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश सिंगापुर की सरकार का है। मगर सॉवरिन फंड होने के नाते इसे नए नियमों से छूट मिल जाएगी। 

विशेषज्ञों का कहना है कि एक ही समूह में निवेश की शर्त कई FPI पूरी नहीं कर पाएंगे। प्राइम इन्फोबेस के अनुसार मार्च 2023 में अदाणी समूह के शेयरधारिता ढांचे के मुताबिक करीब 6 एफपीआई का 75 से 100 फीसदी निवेश इसी समूह में है। उनका कुल निवेश 30,000 करोड़ रुपये से अ​धिक का है। हिंदुजा, रेलिगेयर, जीएमआर और ओपी जिंदल जैसे कुछ कारोबारी समूहों में भी FPI का निवेश तय सीमा से अधिक है। 

विशेषज्ञों के मुताबिक यह देखना दिलचस्प होगा कि सेबी के नए नियमों के बाद मर्च से जून ​के बीच FPI की शेयरधारिता में किस तरह का बदलाव आया है। नया नियम अभी लागू नहीं हुआ है। एक ही समूह में तय सीमा से अ​धिक का निवेश करने वाले FPI को अपना निवेश घटाने के लिए नए नियम अधिसूचित होने की तारीख से 3 महीने का वक्त दिया जाएगा। पहले 6 महीने की मोहलत का प्रस्ताव था। जो लोग खुलासा नहीं करना चाहते, उन्हें निवेश घटाना होगा वरना उनके निवेश पर रोक लगा दी जाएगी। 

नए नियमों से प्रभावित होने वाले एफपीआई की संख्या ज्यादा हो सकती है क्योंकि अभी उन्हीं FPI की सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध है, जिनकी किसी एक कंपनी में कम से कम 1 फीसदी हिस्सेदारी है। FPI का ज्यादातर निवेश टॉप 100 शेयरों में है। ऐसे में 1 फीसदी सीमा काफी ज्यादा हो सकती है। इसलिए अतिरिक्त खुलासे के वास्ते प्रतिशत के बजाय बाजार मूल्य आधारित सीमा तय करना चाहिए।’ 

खुलासा नियमों में सख्ती तब की जा रही है, जब सेबी को अदाणी समूह में ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाले लगभग दर्जन भर विदेशी निवेशको के अंतिम लाभार्थियों का पता लगाने में बहुत दिक्कत आई। सेबी कैमन आईलैंड्स, माल्टा, कुराकाओ, ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड्स और बरमूडा के नियामकों से जानकारी हासिल करने का प्रयास कर रहा है। 

नियामकीय अ​धिकारियों ने कहा कि खुलासे के नए नियम भारत में निवेश करने वाले सभी FPI पर लागू होंगे और किसी भी सं​धि या PMLA नियमों के कारण इसमें रियायत नहीं दी जाएगी। 

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