चावल की कीमतें 11 साल के शीर्ष पर, आगे और ज्यादा बढ़ सकता है दाम  

मुंबई- दुनिया के प्रमुख उत्पादक छह देशों में अल-नीनो का असर चावल पर दिखने लगा है। इस प्रमुख खाद्यान्न की कीमतें अब 11 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं। आगे इसमें और तेजी की संभावना है। विश्लेषकों का कहना है कि अल-नीनो का प्रभाव किसी एक देश तक सीमित नहीं है। यह लगभग सभी उत्पादक देशों को प्रभावित कर रहा है। 

फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) का वैश्विक चावल मूल्य सूचकांक 11 साल के उच्च पर पहुंच चुका है। यह स्थिति तब है जबकि अमेरिका के कृषि विभाग ने दुनिया में चावल उपजाने वाले सभी छह देशों में रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान जताया है। इनमें बांग्लादेश, चीन, भारत, इंडोनेशिया, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं। 

विश्लेषकों का कहना है कि अल-नीनो से सभी प्रमुख चावल उत्पादक देशों का उत्पादन घट जाएगा। ऐसा हुआ तो कीमतें तेजी से बढ़ेंगी। हाल में चावल के शीर्ष उत्पादक देशों चीन और भारत में स्टॉक में गिरावट के कारण चालू वित्त वर्ष में वैश्विक स्तर पर चावल का भंडार घटकर 6 साल के निचले स्तर 17 करोड़ टन हो सकता है। इटली और स्पेन में गंभीर सूखे के कारण यूरोप का उत्पादन 1995-1996 के बाद से सबसे कम होने का अनुमान है, जबकि अमेरिका में भी इसी तरह की स्थिति देखी गई है। 

चावल निर्यात एसोसिएशन के अध्यक्ष बीके कृष्णा राव ने कहा, भारत दुनिया में सबसे सस्ता चावल बेच रहा था। न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से कीमतें बढ़ गई। इससे दूसरे देशों ने भी चावल की कीमत बढ़ानी शुरू कर दी है। वैश्विक चावल व्यापार में 40 फीसदी हिस्सेदारी के साथ भारत सबसे बड़ा निर्यातक है। भारत पिछले साल तक चावल का सबसे सस्ता उत्पादक देश था।

चावल का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक थाईलैंड ने मई में सामान्य से 26 फीसदी कम बारिश होने पर किसानों से चावल की केवल एक फसल बोने की अपील की है। एक विश्लेषक रोजा वांग ने कहा, अनाज के शीर्ष उत्पादक चीन में मौसम फसल के अनुकूल नहीं है। 

जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, बढ़ती घरेलू कीमतों के बीच बुआई की धीमी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए चिंता का विषय है। इससे यह संभावना बढ़ गई है कि सरकार निर्यात पर और अंकुश लगा सकती है। मोदी सरकार गेहूं की कीमत में वृद्धि को रोकने के भी उपाय कर रही है और यही वजह है कि वह प्रतिबंध लगाने में संकोच नहीं करेगी। 

एक डीलर ने कहा, भारतीय निर्यात में कमी से संभावित रूप से वैश्विक कीमतें बढ़ सकती हैं। ऐसी स्थिति में म्यांमार, पाकिस्तान, थाईलैंड और वियतनाम निर्यात को 30 लाख से 40 लाख मीट्रिक टन तक बढ़ा सकते हैं। 2007-2008 में भी वैश्विक खाद्य संकट पैदा हो गया था। उस समय भारत और वियतनाम ने चावल निर्यात प्रतिबंधित कर दिया था। तब कीमतें 1,000 डॉलर प्रति टन से ऊपर पहुंच गईं थीं। 

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