अंबानी, टाटा सहित दुनिया के अमीरों का शुरुआती दिनों में ऐसा था करियर 

मुंबई- दुनिया के कई सारे ऐसे अरबपति हैं, जिन्होंने बहुत छोटी सी नौकरी से अपने करियर की शुरुआत की थी। कोई अटेंडेंट की नौकरी कर रहा था, तो कोई कुक था। दिग्गज निवेशक वॉरेन बफे ने तो अखबार बांटने का भी काम किया। धीरूभाई अंबानी, नारायण मूर्ति, रतन टाटा और जेफ बेजोस की भी शुरुआती नौकरी बेहद साधारण थी। लेकिन उनमें पैसा कमाने की ललक थी। अपनी मेहनत की दम पर इन्होंने अरबों डॉलर का कारोबार खड़ा किया है। 

वॉरेन बफेट शेयर मार्केट के दिग्गज निवेशक हैं। दुनिया के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में उनका छठा स्थान है। वे बर्कशायर हैथवे के सीईओ और चेयरमैन हैं। वॉरेन अमेरिका के न्यूजपेपर दी वॉशिंगटन पोस्ट के लिए अखबार बांटने वाले डिलीवरी बॉय का काम करते थे। वॉरेन को साल 1994 में इस काम के लिए 175 डॉलर प्रति महीने मिलते थे। उन्होंने ओहामा में अपने पड़ोसियों को वाशिंगटन पोस्ट की लगभग 500,000 कॉपी बांटी। बफेट ने बर्कशायर हैथवे को 1964 में इसलिये खरीदा था, ताकि वह कंपनी के   

दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों की लिस्ट में अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस तीसरे स्थान पर हैं। लेकिन एक समय उन्होंने कुक की नौकरी भी की थी। जेफ बेजोस की पहली नौकरी मैकडॉनाल्ड्स में फ्राई कुक की थी। उन्होंने साल 1980 में पहली नौकरी शुरू की थी। इस नौकरी में उन्हें मुश्किल से 2 डॉलर प्रति घंटे की सैलरी मिलती थी।  

बेजोस ने बाद में कम्प्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और वो प्राइवेट नौकरी करने लगे। वे वॉलस्ट्रीट में बैंकर्स ट्रस्ट नाम की कंपनी में काफी अच्छे पद पर थे। काम के दौरान उन्हें अमेरिका में खूब घूमने का मौका मिला। इस दौरान वे वो काफी लोगों से मिलते और उनकी खरीदारी को लेकर होने वाली समस्याओं के बारे में जानते। फिर उन्हें समझ आया कि इंटरनेट के इस दौर में ई-मार्केटिंग कंपनी का भविष्य काफी अच्छा रहेगा। 

इन्फोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति की पहली नौकरी रिसर्च असोसिएट की थी। वे IIM अहमदाबाद की एक फैकल्टी के लिए काम करते थे। बाद में वे चीफ सिस्टम्स मैनेजर बन गए। इसके बाद उन्होंने सॉफ्ट्रॉनिक्स नाम से एक कंपनी शुरू की, जो नहीं चल पाई थी। इसके बाद उन्हें मजबूरी में पुणे में पाटनी कम्प्यूटर सिस्टम्स में नौकरी करनी पड़ी। जहां उन्हें 10 हजार रुपये सैलरी मिलती थी। फिर साल 1981 में 6 दोस्तों के साथ मिलकर उन्होंने इन्फोसिस की शुरुआत की थी। मूर्ति को भारत में आईटी सेक्टर का जनक भी कहा जाता है। 

मुकेश अंबानी के पिता धीरूभाई अंबानी को कौन नहीं जानता। धीरूभाई अपने समय के भारत के टॉप बिजनसमैन थे। उन्होंने अपने बैटों मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी को रिलांयस ग्रुप विरासत में दिया था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि धीरूभाई की पहली नौकरी कौन-सी थी। धीरूभाई अंबानी ने गैस स्टेशन पर अटेंडेंट की नौकरी की थी। एक समय था जब धीरूभाई यमन में थे। वहां उन्होंने एक गैस स्टेशन पर अटेंडेंट की नौकरी की थी। उस समय उन्हें सिर्फ 300 रुपये महीने सैलरी मिलती थी। अपनी मेहनत की बदौलत वे धीरे-धीरे उस गैस स्टेशन के मैनेजर बन गए। इसके बाद साल 1957 में धीरूभाई वापस भारत लौटे। यहां आकर उन्होंने खुद का कारोबार शुरू किया। 

रतन टाटा ने साल 1961 में टाटा स्टील जमशेदपुर में नौकरी की थी। इसके पहले रतन टाटा टाटा मोटर्स में नौकरी कर चुके थे। यहां वे एक आम कर्मचारी की तरह टेल्को स्थित जीटी हॉस्टल में रहा करते थे। टाटा स्टील में नौकरी करने के दौरान उनकी पहली जिम्मेदारी ब्लास्ट फर्नेस और चूना पत्थर का प्रबंधन करना था। टाटा को जब पहली नौकरी का ऑफर मिला तो उनके पास रिज्यूमे भी नहीं था। आईबीएम में बिना रिज्यूमे के पहुंचने के बाद वहां मौजूद इलेक्ट्रॉनिक टाइपराइटर से रतन टाटा ने अपना रिज्यूमे तुरंत बनाकर उन्हें सौंप दिया। हालांकि, रतन टाटा ने आईबीएम में नौकरी नहीं की थी। 

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