अदाणी समूह पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट को हथियार बनानेवाले निवेशकों को मुआवजा दें
मुंबई- शेयर बाजार के अगर आप निवेशक हैं तो निश्चित तौर पर खबरों के आधार पर निवेश का फैसला कभी भी घातक हो सकता है। हालिया अदाणी के मामले में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में हमने यही देखा है। शेयर बाजार में निवेश अफवाहों या खबरों के आधार पर कई बार आपको जमीन पर ला पटकता है। ऐसे बहुतेरे मामले सामने आए हैं, जब निवेशकों की गाढ़ी कमाई इन वजहों से डूब गई है।
ताजा मामला अदाणी समूह का है। इस पूरे मामले में अब सुप्रीम कोर्ट की नियुक्त समिति की रिपोर्ट ने उन सभी अटकलों पर विराम लगा दिया है जो अदाणी समूह को और नीचे गिराने की प्रतीक्षा कर रहे थे। दुर्भाग्य से, इस तरह का माहौल खड़ा किये जाने से किसी भी तरह से निवेशकों को कोई राहत नहीं मिलने वाली है, क्योंकि शेयरों को अपने पिछले स्तर पर वापस आने में काफी समय लगेगा। पैरा 103 में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि अदाणी के शेयरों ने आंशिक रूप से अपने नुकसान की भरपाई की है, पर उस स्तर पर नहीं, क्योंकि बाजार सेंटिमेंट को भी महत्व देता है।
इस प्रकरण में कानून का उल्लंघन साबित नहीं हुआ है और जांच केवल संदेह के आधार पर जारी है। इस स्तर पर दो सवाल उठते हैं। संदेह की सीमा क्या है और तलवार कितनी देर तक लटक सकती है? क्या यह अनिश्चितकालीन हो सकता है? समिति ने खुद सुप्रीम कोर्ट के मामलों के आधार पर कहा है कि जांच को समाप्त करने की एक अवधि होनी चाहिए।
मौजूदा कीमत न केवल गवर्नेंस के मुद्दों की जटिलता को दर्शाती है, बल्कि वृद्धि की उन बाधाओं को भी दर्शाती है जिससे समूह को सामना करना पड़ रहा है। सेबी के साथ केवल सहानुभूति रखी जा सकती है, क्योंकि सभी पक्षों से सेबी पर बेवजह दबाव भी पड़ता है। समिति ने स्पष्ट रूप से निष्कर्ष निकाला है कि मौजूदा कानून के अनुसार, न्यूनतम शेयर धारिता (एमपीएस) मानदंडों का किसी भी तरह से उल्लंघन हुआ है, ऐसा कहीं से भी साबित नहीं हुआ है, फिर भी संदेह बना हुआ है।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने सेबी के संदेह को बढ़ा दिया है। सवाल यह भी है कि जब कोई यह कहता है कि एसबीआई या एलआईसी डूब जाएगा। या अदाणी माल्या या नीरव मोदी की तरह भाग जाएगा। लेकिन इससे पहले यह समझना जरूरी है कि इनकी विश्सनीयता क्या है। एसबीआई के पास दुनिया में सबसे बड़ा ग्राहक आधार है और सभी म्यूचुअल फंड कंपनियों की संपत्तियों से ज्यादा एलआईसी के पास पॉलिसी हैं। इन खबरों से अगर कल एलआईसी और एसबीआई अपना कारोबार खो देते हैं, तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?
देखा जाए तो समिति को किसी भी आरोप में कोई सच्चाई नहीं मिली, फिर भी सभी शेयर धारकों को बहुत नुकसान हुआ है। ज्ञान और विवेक को कचरे के डिब्बे में फेंक कर सभी ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को एक सच्चाई के रूप में स्वीकार किया। जिस समय रिपोर्ट आई उसने इसके भरोसे को और भी ज्यादा हिला दिया। इन सबका असर कर्मचारियों और निवेशकों पर पड़ेगा। पर जो सबसे अहम सवाल है, वह यह कि जो नुकसान निवेशकों का हुआ है, क्या उसकी भरपाई वे लोग कर सकते हैं, जिन्होंने इस रिपोर्ट के भरोसे पूरे बाजार को तहस नहस कर दिया।
अदाणी समूह के शेयर जनवरी में आई रिपोर्ट के बाद से जो टूटे थे, वहां से करीब 40 फीसदी तक रिकवर कर चुके हैं। पर सवाल सिर्फ इस समूह का नहीं है। ऐसा कई बार देखा गया है। किसी भी रिपोर्ट का नतीजा बाद में कुछ भी हो, पर जो घाटा निवेशकों का हो जाता है, उसकी भरपाई करने और उन निवेशकों का विश्वास बहाल करने में बहुत समय चला जाता है। इसलिए निवेशकों को कभी भी खबरों के आधार पर निवेश की रणनीति को नहीं बदलना चाहिए।
सेबी के पूर्व चेयरमैन जीएन वाजपेयी कहते हैं कि हम एलआईसी, एसबीआई और अदाणी के शेयर धारकों को क्या संदेश देना चाहते हैं? अगर कल एलआईसी और एसबीआई अपना कारोबार खो देते हैं, तो इसका जिम्मेदार कौन होगा? निवेशकों का जो घाटा हुआ है, क्या उन्हें मुआवजा मिल सकता है? अगर नहीं तो फिर इस निवेशक को कहां न्याय मिलेगा।