स्टार्टअप की दुनिया में जानिए क्यों गिरता है मूल्यांकन और कैसे होता है तय
मुंबई- अगर आप स्टार्टअप की दुनिया में थोड़ी बहुत भी रुचि रखते हैं तो वैल्यूएशन का नाम जरुर सुना होगा, या अगर आप शार्क टैंक देखते हैं तो पक्का ही देखा होगा कि कैसे कुछ ही सेकंड्स में शार्क्स किसी भी स्टार्टअप की वैल्यूएशन निकाल देते हैं और उसके हिसाब से फंडिंग ऑफर करते हैं।
वैल्यूएशन अपने आप में एक बहुत बड़ा विषय है और स्टार्टअप के स्टेज के हिसाब से अलग अलग तरीके से ये निकाला जाता है तो, इस आर्टिकल सीरिज के कुछ और आर्टिकल के माध्यम से मै आपको इसे समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि ये काम कैसे करता है. तो चलिए शुरू करते हैं।
सबसे पहले तो इस शब्द को ही समझते हैं, आपने पढ़ा होगा की Swiggy, Uber, Zomato, Ola तमाम स्टार्टअप कंपनियों की वैल्यूएशन सैकड़ों हजारों करोड़ों में है, और कमाल की बात ये है कि इनमें से अधिकतर कपनियां अभी नुकसान में हैं यानी पैसे नहीं बना रही हैं फिर भी लगातार फंडिंग उठा रही हैं और पैसे लगा रही है।
तो अगर देशी भाषा में समझें तो वैल्यूएशन किसी भी स्टार्टअप के फ्यूचर में कमाए जाने वाले प्रोफिट्स की कैलकुलेशन है, यानी बहुत बार आपने ऐसे स्टार्टअप को भी करोड़ों की वैल्यू पर पैसे लेते हुए देखा है जो अभी जस्ट मार्किट में आई है और पैसे नहीं बना रही है, तो फिर ये कैसे हुआ, जी हां, यहां वैल्यूएशन कई सारे मापदंडों पर निर्भर करता है, लेकिन फिलहाल ये समझिये कि ये एक कैलकुलेशन है जो आप इन्वेस्टर को दिखाते हैं कि इस प्रोडक्ट और तरीके से अगले 5 साल में आपकी कंपनी xx पैसा बना लेगी और ये बनाने के लिए आपको अभी xx पैसा चाहिए, यही वैल्यूएशन और फंडिंग की सिंपल सी परिभाषा है।
हालांकि वैल्यूएशन निकालने का कोई फिक्स मॉडल नहीं है, हर इन्वेस्टर अपने अपने हिसाब और कंपनी, इंडस्ट्री, टीम, प्रोडक्ट, टाइमिंग, यूनिकनेस पर काम करता है, लेकिन इस आर्टिकल में ये जानते हैं कि जब आपकी कंपनी नयी है तो कैसे वैल्यूएशन निकलती है।
जैसे की हमने ऊपर पढ़ा कि कंपनी चाहे नयी हो, पुरानी हो, प्रॉफिट में हो Loss में हो, सबका वैल्यूएशन होता है तो, नीचे समझते हैं नयी कंपनी के वैल्यूएशन में क्या क्या तरीका काम करता है।
आपने सुना होगा लोग पैसा घोड़े पर नहीं घुड़सवार पर लगाते हैं, यही बात यहां पर भी लागू होती है, एक फाउंडर को देखकर ये पता चल जाता है कि ये कंपनी कहां जाने वाली है, आपका विजन, एनर्जी, क्रिएटिविटी, पैशन, रिस्क लेने की क्षमता, नेटवर्किंग स्किल्स, सेल्स स्किल्स, टीम मैनेजमेंट, लीडरशिप सब पर पैसा लगता है।
अब रोल आता है आपके प्रोडक्ट का, आप क्या बना रहे हैं, कैसा बना रहे हैं, आपका प्रोडक्ट कितना अलग है, कोई खास अचीवमेंट जैसे कॉपीराइट, पेटेंट, इनोवेशन सब काउंट होता है।
यहां इंडस्ट्री का रोल बहुत मायने रखता है, एक टर्म आती है TAM “टोटल एड्रेसबल मार्किट”, यानी आप जिस मार्किट में जा रहे हैं, वो मार्किट कितनी बड़ी है, वहां के कस्टमर्स की पेइंग कैपेसिटी कैसी है, कौन कौन से लोग पहले से ही उस मार्किट में हैं, उनका मार्किट शेयर क्या है।
इसका कोई फिक्स तरीका नहीं है और आपके वैल्यूएशन में ऊपर की सारी बातें बहुत मैटर करती हैं। फिर भी एक सिंपल सी गणित ये है कि मान लेते हैं कि आपने एक बिज़नस के बारे में सोचा और उसको अगले 3-5 साल चलाने के लिए आपको 2 लाख की जरुरत है, एक लाख आपके पास पहले से है। आप प्रोजेक्शन लगा रहे हैं कि अगले एक साल में आप इस बिज़नस से 5 लाख रुपये कमा लेंगे। अभी तक कंपनी के सारे शेयर्स आपके पास या आप दो फाउंडर्स के पास है। अब आपको कोई एंजेल इन्वेस्टर मिलता है, जिसके पास आप जाते हैं कि आपको एक लाख चाहिए उसके लिए आप कंपनी की 10 प्रतिशत की इक्विटी देने के लिए के लिए तैयार हैं।
अगर वो इन्वेस्टर मान जाता है और आपको 10 प्रतिशत पर 1 लाख रुपये दे देता है, तो आपके कंपनी की अभी की वैल्यू हो गई 10 लाख, यही आपकी वैल्यूएशन है। हालांकि उन कम्पनीज में जो खास करके शुरू के स्टेज में हैं, उसमे वैल्यूएशन निकालना मुश्किल होता है।