10 रुपये के फंड से शुरू हुआ था गीता प्रेस, अब इसके 100 साल हो गए पूरे 

मुंबई- गोविंद भवन ट्रस्ट की गीताप्रेस 100 साल की हो चुकी है। साल 1923 में किराए की एक दुकान में शुरू हुए इस प्रेस की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। मात्र 1 रुपये में लोगों तक गीता उपलब्ध करवाने वाली गीताप्रेस ने कई उतार-चढ़ाव देखें। आज ये प्रेस सिर्फ एक प्रिटिंग प्रेस नहीं बल्कि जनभावना बन चुकी है। साल 1923 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में इस प्रिटिंग प्रेस की नींव रखी। ये प्रिटिंग प्रेस केवल भारत नहीं बल्कि दुनियाभर में मशहूर हैं। 

कहानी की शुरुआत गुलाम भारत में हुई। चुरू, राजस्थान के रहने वाले जयदयाल गोयदंका कारोबारी घराने से ताल्लुक रखते थे। कारोबार के अलावा उनकी रुचि धर्म-अध्यात्म में थी। उस वक्त वो कोलकाता में रहते थे। वो अक्सर सत्संग का आयोजन करते थे, लेकिन उस वक्त गीता आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती थी। एक बार उन्होंने कोलकाता के एक प्रिंटिंग प्रेस को गीता की 5000 कॉपियां छापने का आर्डर दिया, लेकिन उन कॉपियों में कई गलतियां थी। इस बात से वो काफी नाराज हुए। उन्होंने अपना प्रिंटिंग प्रेस शुरू करने का फैसला किया। जयदयाल चाहते थे कि गीता की छपाई में कोई गलती या फिर अशुद्धि ना हो। 

जयदयाल गोयदंका ने 29 अप्रैल 1923 को गोरखपुर के हिंदी बाजार में 10 रुपये किराए के मकान में प्रेस की शुरुआत की। इसका नाम गीताप्रेस रखा गया। प्रेस में गीता ग्रंथ की छपाई होती थी। हैंडप्रेस प्रिंटिंग मशीन लगाई गई। जगह छोटी पड़ने लगी, इसलिए साल 1926 को प्रेस को हिंदी बाजार से शिफ्ट करने का फैसला लिया गया। 1000 रुपये की लागत से गीताप्रेस की मौजूदा जगह पर प्रेस शिफ्ट कया गया। प्रेस में रामायण, गीता, वेद, पुराण और उपनिषद की ही केवल छपाई होती थी। 

गीताप्रेस में छपी पहली पुस्तक की कीमत 1 रुपये थी। साल 1926 में गीता प्रेस ने मासिक पत्रिका निकालने का फैसला किया। उस वक्त हनुमान प्रसाद पोद्दार संपादक थे। उन्होंने कल्याण पत्रिका की शुरुआत की। पत्रिका में महात्मा गांधी ने भी अपना लेख लिखा। हालांकि गांधी जी ने इस लेख के लिए बस एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि इस पत्रिका में कोई विज्ञापन न छापा जाए। उनकी बात को मानते हुए गीताप्रेस ने विज्ञापन ना छापने का फैसला किया। आज तक इस फैसले को माना जाता है। 

हिंदी और संस्कृति के अलावा गीता प्रेस 13 अन्य भाषओं में हिंदू धर्म से जुड़े ग्रंथ और साहित्य प्रकाशित करती है। गीता और मानस के अलावा 2000 से अधिक पुस्तकों की 90 करोड़ से अधिक प्रतियां छापी जा चुकी है। सिर्फ गीता की 100 से अधिक तरह की 12 करोड़ प्रतियां छापी जा चुकीं हैं। इसके अलावा 16.57 करोड़ कल्याण पत्रिका छापी गई । हालांकि इस प्रेस ने कई बार उतार-चढ़ाव देखें। कई बार इसके बंद होने की नौबत आई। शुद्ध और सस्ती दरों पर लोगों को धार्मिक पुस्तक उपलब्ध करवाने के चलते प्रेस को नुकसान हो रहा। 

गीता प्रेस एक ट्रस्ट के तौर पर काम करता है। उसका लक्ष्य मुनाफा कमाना नहीं है। लोगों को कम कीमत पर धार्मिक पुस्तकें उपलब्ध करवाना है। उद्योगों से सीधा कच्चा माल खरीदकर वो अपनी लागत को कम करने की कोशिश करते हैं। गौरखपुर में दो लाख वर्ग फुट में ये प्रेस फैला है। जहां देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग इसे देखने आते हैं। साल 2021 में गोरखपुर से सांसद रविकिशन जब गीता प्रेस के दौरे पर गए थे, उन्होंने ट्वीट कर बताया था कि वहां जापानी, इतालवी और जर्मन प्रिंटिंग मशीनें हैं। जिसकी कीमत 5 करोड़ रुपये से 15 करोड़ रुपये तक की है। प्रेस हर महीने करीब 80 लाख रुपये सैलरी के तौर पर कर्मचारियों को देता है 

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