तलाक पर सुप्रीम कोर्ट और लिव इन रिलेशन
मुंबई- सुप्रीम कोर्ट ने देश में तलाक और लिव इन रिलेशनशिप को लेकर महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के पांच जजों की बेंच ने कहा कि जिन शादियों के बचने की गुंजाइश न हो, उनको सुप्रीम कोर्ट अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके खत्म कर सकता है। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत SC को विशेष शक्तियां मिली हुई हैं। कोर्ट ने कहा कि वह आपसी सहमति से तलाक के इच्छुक पति-पत्नी को बिना फैमली कोर्ट भेजे बिना भी अलग रहने की इजाजत दे सकता है।
बेंच ने कहा, ‘हमने व्यवस्था दी है कि इस अदालत के लिए किसी शादीशुदा रिश्ते में आई दरार के भर नहीं पाने के आधार पर उसे खत्म करना संभव है।’ जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि अगर आपसी सहमति हो तो कुछ शर्तों के साथ तलाक के लिए अनिवार्य 6 महीने के वेटिंग पीरियड को भी खत्म किया जा सकता है। संविधान पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति ए एस ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी भी शामिल हैं।
एक दूसरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 25 साल से अलग रह रहे एक जोड़े की शादी को यह कहते हुए भंग कर दिया कि उन्हें विवाहित के रूप में मान्यता देना “क्रूरता को मंजूरी देना” होगा। दंपति केवल चार साल तक साथ रहे।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जेबी परदीवाला की पीठ ने कहा कि हमारे सामने एक विवाहित जोड़ा है जो मुश्किल से चार साल से एक साथ हैं और पिछले 25 सालों से अलग रह रहे हैं। उनके बच्चे नहीं हैं और उनका वैवाहिक बंधन पूरी तरह से टूट गया है, मरम्मत से परे है,” सुप्रीम कोर्ट ने कहा।
“हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस संबंध को समाप्त होना चाहिए क्योंकि इसकी निरंतरता क्रूरता को मंजूरी देगी। लंबे समय तक अलगाव, सहवास की अनुपस्थिति, सभी सार्थक संबंधों का पूर्ण विच्छेद और दोनों के बीच मौजूदा कटुता को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्रूरता के रूप में पढ़ा जाना चाहिए। इस जोड़े ने 1994 में दिल्ली में शादी कर ली। उसने आरोप लगाया कि उसी साल बिना बताए उसका गर्भपात हो गया। उसने आरोप लगाया कि उसे उनका घर पसंद नहीं आया क्योंकि यह छोटा था।
शादी के चार साल बाद महिला उसे छोड़कर चली गई और उसके खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज करा दिया। उस व्यक्ति और उसके भाई को गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने तलाक के लिए अर्जी दी। एक अन्य मामले में कोर्ट ने कहा कि अगर कोई लड़की यह जानते हुए लिव इन रिलेशन में रह रही है कि सामने वाला पुरुष शादीशुदा है तो इसमें किसी भी तरह का मामला नहीं बनेगा, क्योंकि लड़की को यह पता है कि इसमें जोखिम है।
सुप्रीमकोर्ट के इन सभी फैसलों ने एक अलग ही छाप छोड़ी है। पहले मामले में उसने 6 महीने की सीमा को खत्म कर तुरंत तलाक को मंजूरी देने की बात कही है। इससे उन लोगों को कानूनी, दौड़भाग औऱ पैसे की बचत होगी, जो तलाक के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं। हालांकि, किसी भी हालत में तलाक अच्छा नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि इससे दो लोगों का पारिवारिक जीवन अलग हो जाता है। अगर दंपत्ति के पास संतानें हैं तो उनके लिए भी एक अजीब सा माहौल बन जाता है।
तलाक की बात करें तो यह भारत की सांस्कृतिक विरासत ही है कि पूरी दुनिया में हमारे देश में तलाक की दर केवल एक फीसदी है। जबकि बाकी सारे देशों में तलाक की दर हमारे से बहुत ज्यादा है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह ऋषियों मुनियों की धरती है और इसकी एक अपनी विरासत भी है जो धार्मिक होने के साथ-साथ अन्य कई बंधनों से बंधी होती है।
आंकड़े बताते हैं कि तुर्किये में 25 फीसदी, कोलंबिया में 30 फीसदी, जापान में 35 फीसदी, जर्मनी में 38 फीसदी और ब्रिटेन में 41 फीसदी लोग तलाक ले लेते हैं। ऑस्ट्रेलिया में यह दर 43 फीसदी, चीन में 44 फीसदी, अमेरिका में 45 फीसदी, दक्षिण कोरिया में 46 फीसदी, इटली में 46 पर्सेंट और कनाडा में यह दर 47 पर्सेंट है।
अन्य देशों में रूस में 73 फीसदी, स्पेन में 85 फीसदी और पुर्तगाल में यह दर 94 फीसदी है। यह बहुत ही अजीब बात है कि 100 में से 94 लोग अगर तलाक लेते हैं तो उस देश की सांस्कृतिक विरासत क्या होगी। ऐसे में अगर भारत में तलाक की दर एक फीसदी है तो यह बहुत ही बेहतर है, लेकिन कोशिश यह होनी चाहिए कि इस एक फीसदी को भी किसी तरह से कम किया जाना चाहिए। यह ठीक उसी तर्ज पर होना चाहिए जैसे कि 100 गुनहगार छूट जाएं, लेकिन एक बेगुनाह को सजा नहीं होना चाहिए।