एटीएम का उपयोग सावधानी से करें, नहीं तो खाली हो जाएगा बैंक खाता
मुंबई- एटीएम जालसाज अपने शिकार की तलाश में हैं और जब पीड़ित बैंकों के पास जाता है तो उसे वहां से एकदम ठंडी प्रतिक्रिया मिलती है। क्या आपने कभी इस विकट स्थिति का सामना किया है जब आपने आपका डेबिट कार्ड एक असुरक्षित क्षेत्र में रखे एटीएम में डाला और कार्ड डालते वह मशीन में फंस गया? अगर आपका जवाब हां है तो आप अकेले नहीं हैं।
धोखाधड़ी करने वाले दुपहिया वाहनों पर बैठकर बिना सुरक्षा वाले एटीएम के आसपास घूमते हैं और ताक में रहते हैं कि कब उनके हाथ कोई शिकार लग जाये. उनकी मंशा होती है कि वे उनके कार्ड की क्लोनिंग करके और चतुराई से उन्हें बदलकर उनकी गाढ़ी कमाई या सेविंग पर हाथ साफ़ कर सकें। कहानी यहीं समाप्त नहीं होती है. जब धोखेबाज आपके कार्ड के डिटेल्स चुरा लेता है तो कुछ समय बाद आपको झटके लगने लगते हैं क्योंकि आपको अपने अकाउंट से डेबिट के मेसेज आने शुरू हो जाते हैं. जब तक आपको पता चलता है कि आपके साथ धोखा हुआ है तब तक आपके अकाउंट से हजारों या लाखों की अच्छी खासी रकम जा चुकी होती है।
यकीन करना मुश्किल है, लेकिन यही सचाई है। ऐसे कई गिरोह हैं जो देश के कई हिस्सों में डेबिट कार्ड धारकों की मदद करने की आड़ में काम कर रहे हैं. जैसे ही वे पैसे निकालते हैं उनका कार्ड अटक जाता है और एटीएम की स्क्रीन पर बैलेंस, फोन नंबर और अन्य डिटेल्स प्रदर्शित होने लगते हैं. जैसे ही आपको पता चलता है कि मशीन में कुछ गड़बड़ है तो उसी समय दो या तीन व्यक्ति अंदर आ जाएंगे और उनमें से एक आपको बातचीत में शामिल करेगा जबकि दूसरा आपके कार्ड को दूसरे से बदल देगा। कुछ ही समय में वे चले जाएंगे और उसके बाद आपके रजिस्टर्ड मोबाइल पर कुछ समय बाद पैसे निकलने के मेसेज आने शुरू हो जायेंगे।
जब तक घबराए हुए ग्राहक कार्ड ब्लॉक करने के लिए बैंक को फोन करते हैं, तब तक उनके कुछ हज़ार रुपये निकाल लिए जाते हैं। कार्ड को डीएक्टिवेट (निष्क्रिय) करना अपने आप में एक कठिन और लम्बी प्रक्रिया है क्योंकि बैंकों के पास इस तरह के मुद्दों को संभालने के लिए कोई समर्पित लाइन या टीम नहीं होती है।
इस जालसाजी का शिकार हुए लोगों को ‘आरबीआई कहता है…’ वाले एक विज्ञापन की याद दिलाई जाती है जो आजकल अक्सर इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल या प्रिंट के माध्यम से दिखाया या बताया जा रहा है। आरबीआई की इस सलाह के बाद, आप अपने ब्रांच से संपर्क करेंगे और यह सोचकर कि वे आपके पैसे वापस पाने में मदद करेंगे, आप साइबर अपराध शाखा में मामला दर्ज करेंगे।
ऐसे मामलों में बैंक के पास एक ही जवाब होता है कि आपके पिन से समझौता या उसे कोम्प्रोमाईज़ किया गया है, इसलिए इसका रिफंड नहीं हो सकता है. जबकि साइबर क्राइम ब्रांच के पास आपके मामले के लिए समय भी नहीं हो सकता है क्योंकि उनके पास ऐसे मामलों की हजारों फाइलें हैं। यदि समस्या में एक से अधिक बैंक शामिल हैं तो उनमें आपसी तालमेल एक अन्य बड़ा मुद्दा होता है। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, 2021-22 में ‘कार्ड, इंटरनेट एटीएम कार्ड, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिंग’ से संबंधित 65,893 धोखाधड़ी हुई हैं, जिसमें 258.61 करोड़ रुपये की राशि शामिल है।
कुछ ग्राहक ऐसे हैं जिन्होंने इस तरह के मामलों का सामना किया है और अपना अनुभव साझा किया है। उदाहरण के लिए, दिल्ली में एक वरिष्ठ पत्रकार को ऐसे ही एक एटीएम में अपने कार्ड की अदला-बदली का सामना करना पड़ा। उसके अटके हुए कार्ड को निकालने में मदद करने के बहाने उसके निजी क्षेत्र के बैंक डेबिट कार्ड को सरकारी बैंक के कार्ड से बदल दिया गया।
एटीएम की घटना के 10 मिनट के भीतर जब उनके मोबाइल पर विथड्रावल की सूचना मिली तो उसे एहसास हुआ कि उसके साथ धोखा किया गया है। उसने कार्ड को ब्लॉक करने के लिए हेल्पलाइन पर फोन किया और उसके आश्चर्य की बात यह है कि जब तक वे बैंक के कस्टमर केयर को चोरी हुए डेबिट कार्ड का डिटेल्स दे रहे थे, तब तक लगातार उनके अकाउंट से पैसे निकाले जा रहे थे और इसका उन्हें मेसेज भी आ रहा था. कॉल डिटेल्स लेने के नाम पर खानापूर्ति की गई। लेकिन न तो संबंधित बैंक ने कॉल डिटेल्स को स्वीकार किया और न ही आरबीआई ओम्बड्समैन ने आरबीआई की शिकायत दर्ज करने की सलाह का पालन करते हुए इस पर तत्काल कोई कार्रवाई की।
शिकायतकर्ता द्वारा कार्ड को निष्क्रिय करने के बाद खोई हुई राशि को रिफंड करने के अनुरोध को स्वीकार करने में बैंक ने अपनी लाचारी दिखाई। ओम्बड्समैन के द्वारा उन्हें जवाब मिला कि, “शिकायत को रिजर्व बैंक के सेक्शन 16 (2) (ए) के तहत खारिज कर दिया गया है – इंटीग्रेटेड ओम्बड्समैन स्कीम 2021: ‘लोकपाल की राय में, सेवा में कोई कमी नहीं है.”
उसी दिन पूर्वी दिल्ली में फिर से ऐसी ही घटना एक हाउसवाइफ के साथ घटी, जो एक सरकारी बैंक के होम बैंक एटीएम में गई थी, जब उसके अटके कार्ड को उसी बैंक के जालसाजों ने बदल दिया। लेकिन इस केस में जालसाजों ने महिला का कार्ड स्वैप कर दिया और उससे खरीदारी की। जब तक उनके पास मेसेज आता तब महिला के अकाउंट से करीब 1 लाख रुपये की शॉपिंग हो चुकी थी।
जालसाज रोजाना ग्राहकों को ठगने के नए-नए तरीके ईजाद कर रहे हैं, जबकि शिकायत निवारण का सिस्टम उसी गति से काम नहीं कर पा रहा है। शिकायत निवारण तंत्र को चुस्त-दुरुस्त करने की तत्काल आवश्यकता है ताकि डिजिटल और कम नकद लेनदेन को बढ़ावा दिया जा सके।