राजस्थान में सरकार को करोडों का चूना, बिना एग्रीमेंट रजिस्टर्ड ही बिक रही हैं कालोनियां
मुंबई। राजस्थान में सरकार को करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है। इसके साथ ही अदालतों में ढेर सारे मामले जा रहे हैं जिससे अदालत का समय बर्बाद हो रहा है। दरअसल, यहां पर बन रहीं कॉलोनियों का एग्रीमेंट रजिस्टर्ड नहीं हो रहा है। इससे सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है।
जानकारी के मुताबिक, राजस्थान में किसानों की जमीन पर कालोनियां बनाई जाती हैं। इन्हें किसान बेचता है और फिर इस पर सहकारी समितियां घर बनाकर बेचती हैं। लेकिन देखा यह गया है कि रजिस्ट्रेशन का पैसा बचाने के लिए सहकारी समितियां एग्रीमेंट को रजिस्टर्ड नहीं करती हैं और वैसे ही दे देती हैं। जबकि बिना रजिस्टर्ड एग्रीमेंट के यह जमीन या घर मान्य नहीं होता है। साथ ही किसान पैसा लेकर चला जाता है और सहकारी समितियां भी चली जाती हैं। ऐसे में जो घर खरीदता है, उसको नुकसान होता है और साथ ही एग्रीमेंट रजिस्टर्ड नहीं होने से सरकार को चूना लग रहा है।
ऐसे सैकड़ों मामलों के सामने आने के बाद अब सरकार ने इसकी जांच कराई है। सरकार इन सहकारी समितियों से कहा है कि वे ब्याज के साथ इन पैसों को लौटाएं। लेकिन सूत्रों का कहना है कि सहकारी समितियां कारोबार करके उन इलाकों से गायब हो गई हैं। ऐसे में सरकार को यह पैसा मिलना मुश्किल है। सरकारी नियमों के मुताबिक, इस तरह के सभी मामलों में एग्रीमेंट को रजिस्टर्ड करना जरूरी है।
जिन सहकारी समितियों का मामला सामने आया है उनमें ग्राम सीतापुरा में विकास भवन निर्माण सहकारी समिति, मानपुरा, गोविन्दपुरा और श्योसिंहपुर में बाबा आर एन गौड़ गृह निर्माण सहकारी समिति, बीलवा में पटेल नगर गृह निर्माण सहकारी समिति, गांव श्योपुर और श्योसिंहपुरा में शंकर भवन गृह निर्माण, शिवशंकर हाउसिंग कोआपरेटिव, बाड श्योपुर में टैगोर नगर , दी सांगानेर और यशोनंद पुरा में बाबा आर एन ग़ौड़ जैसी सहकारी समितियां हैं।बताया जाता है कि पटेल नगर की कई कालोनियां हैं। इसमें बीलवा के साथ बड़ी का बास जैसे इलाके भी हैं। इनके साथ ही महावीर स्वामी गृह निर्माण. सूरजपोल गेट गृह विकास सहकारी आदि भी इस काम में शामिल हैं। इन सभी को न्यायालय कलेक्टर (मुद्रांक) जयपुर ने 16 मार्च को एक पत्र भेजकर वसूली करने का आदेश उप पंजीयक विभाग को दिया है। इसमें जयपुर के तीनों रजिस्ट्रार विभाग (डीआईजी) ने नोटिस जारी की है और ऐसी तमाम सहकारी समितियां इसमें हैं। हालांकि, जानकारों का कहना है कि सरकार चाहे तो उन सभी पर छापा मारकर या कार्रवाई कर अपनी वसूली कर सकती है।