निचले तबकों और छोटे उद्योगों के लिए वरदान साबित हुई पीएम मुद्रा योजना
मुंबई- बिना किसी गारंटी के मिलने वाली प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) पिछले 8 वर्षों में देश के निचले तबकों और छोटे उद्योगों के लिए वरदान साबित हुई है। पीएमएमवाई ने ऋण देने वाले सदस्य संस्थानों यानी कमर्शियल बैंक, ग्रामीण बैंक, एनबीएफसी के बीच अच्छे खासे लोन के वितरण को बढ़ावा देकर लोगों में विश्वास जगाने का कारनामा किया है। इसके साथ ही साथ इसने अन्य प्रकार के लोन चाहने वाले समूहों के बीच बेहतर क्रेडिट संस्कृति को बढ़ावा दिया है जो मुख्य रूप से नीचे के तबके से आते हैं और जो अब तक लंबे समय तक सेवा से वंचित रहे हैं। इससे जनसंख्या के पैमाने पर एकसमान क्रेडिट देने को भी बढ़ावा मिला है।
एसबीआई की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कम या शून्य क्रेडिट हिस्ट्री वाले ग्राहकों के लिए उधार देने वाले बैंकों, संस्थानों और नीति निर्माताओं को विश्वसनीय डेटा प्रदान करने में एक ब्रिज का काम किया है। इससे वे कमजोर समूहों के लिए बेहतर और जरूरतों के अनुसार फाइनेंशियल ऑफर तैयार करने में सक्षम हो गए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, जमीनी स्तर को सशक्त बनाना मुद्रा योजना की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक रहा है। योजना के लॉन्च के बाद से कुल वितरण का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि पीएमएमवाई का अनूठा यूएसपी टारगेट किये गए लाभार्थी वर्गों द्वारा अच्छी तरह से हासिल किया गया है। इससे समाज के निचले तबकों का आर्थिक दबदबा बढ़ रहा है और संसाधनों का समान पुनर्वितरण सुनिश्चित हो रहा है। इसके साथ ही सभी का समान रूप से आर्थिक और सामाजिक रूप से उन्नयन हो रहा है।
लोन वितरण और खातों की संख्या दोनों ने महामारी का सफलतापूर्वक सामना करने के बाद मुद्रा अब महिलाओं, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्गों के छोटे समूहों को वित्तीय स्वतंत्रता देकर देश के सामाजिक ताने-बाने को लाभान्वित करने के साथ साथ मन्युफैक्चरिंग सर्विसेस और ट्रेड को बढ़ाने में जुटा प्रतीत होता है
रिपोर्ट के अनुसार, कर्ज के औसत टिकट का आकार इस दौरान लगभग दोगुना हो गया है। खासकर तरुण और किशोर लोन के वितरण में उत्साहजनक रुझान देखा जा रहा है। इसके अलावा, खुदरा व्यापार, सेवाओं और विनिर्माण में भी कर्ज वितरण को अच्छी तरह से संतुलित किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, हमारा मानना है कि पीएमएमवाई में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से महिला कर्जदारों की वित्तीय स्थिति बेहतर होती है। इससे उनका विश्वास मजबूत होता है।
पहले तीन सालों में मुद्रा योजना के कर्ज वितरण में 33 फीसदी की वृद्धि हुई। लेकिन कोरोना के बाद इसमें गिरावट आई। हालांकि, वित्त वर्ष 2023 तक फिर इसमें 36 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। कर्ज का औसत आकार वित्त वर्ष 2016 से 2023 के बीच लगभग दोगुना हो गया जो 38,000 रुपये से बढ़कर 76,000 रुपये तक पहुंच गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2016 में एससी और एसटी के लिए मुद्रा आत्मनिर्भर अनुपात 0.81 से बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में क्रमशः 2.20 और 2.02 हो गया है। ओबीसी के लिए यह 0.82 से बढ़कर 1.98 हो गया है। अल्पसंख्यकों के लिए यह 0.99 से बढ़कर 2.71 हो गया है जबकि महिला उद्यमियों के लिए 0.82 से 2.28 पर पहुंच गया है। कर्ज वितरण के मामले में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिलाओं में सबसे ज्यादा शिशु उत्पाद के तहत कर्ज बांटा गया है। जबकि अल्पसंख्यकों में किशोर सेगमेंट सबसे अधिक रहा है।
शुरुआत में इस योजना के जरिये केवल विनिर्माण, व्यापार, सेवा क्षेत्र में आय सृजन गतिविधियों को कवर किया गया था। वित्त वर्ष 2017 में कृषि से जुड़ी गतिविधियाँ, जैसे मछली व मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन, पशुधन पालन, ग्रेडिंग, छंटाई, एकत्रीकरण कृषि, उद्योग, डेयरी, मत्स्य पालन, कृषि-क्लीनिक और कृषि व्यवसाय केंद्र, खाद्य और कृषि-प्रसंस्करण आदि को शामिल किया गया, जो आजीविका को बढ़ावा देते हैं। वर्ष 2018 में इस योजना को ट्रैक्टर की खरीदी तक के लिए बढ़ाया गया फिर वित्त वर्ष 2019 में व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए दोपहिया वाहनों की खरीदी पर भी कर्ज दिए जाने की शुरुआत हुई।
मुद्रा योजना को 8 अप्रैल, 2015 को शुरू किया गया था और इसके तहत 10 लाख रुपये तक का कर्ज मिलता है। यह एक गारंटी मुक्त योजना है। इस स्कीम के तहत तीन कैटेगरी हैं। इसमें शिशु कैटेगरी में 50 हजार रुपये तक, किशोर में 50,000 से पांच लाख तक कर्ज और तरुण में 5 लाख से 10 लाख रुपये तक का कर्ज दिया जाता है।
ऐसे बढ़ी योजना की रफ्तार
वित्त वर्ष | कर्ज की संख्या (करोड़) | रकम (लाख करोड़ रुपये) |
2017 | 3.97 | 1.75 |
2018 | 4.81 | 2.46 |
2019 | 5.99 | 3.11 |
2020 | 6.20 | 3.28 |
2021 | 5.07 | 3.11 |
2022 | 5.31 | 3.31 |
2023 | 6.23 | 4.50 |
शिशु सेगमेंट में सबसे ज्यादा खाता खोला गया और कुल खातों का 77.6 फीसदी इसी में है। हालांकि 2016 में यह 92.9 फीसदी था। इसी तरह किशोर सेगमेंट में कुल 20.1 फीसदी खाते हैं जो 2016 में केवल 5.9 फीसदी थे। तरुण में यह 1.2 फीसदी से बढ़कर 1.8 फीसदी पर पहुंच गया है। सबसे ज्यादा कर्ज किशोरों को मिला है। इनको कुल कर्ज का 40.2 फीसदी कर्ज मिला है जो 2016 में 31.3 फीसदी था। शिशु सेगमेंट में यह 45.8 फीसदी से घटकर 37.4 फीसदी और तरुण में 22.9 फीसदी से घटकर 22.3 फीसदी पर आ गया।
शिशु सेगमेंट में सबसे ज्यादा कर्ज अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति को मिला है। तरुण की तुलना में किशोर सेगमेंट में अल्पसंख्यकों ज्यादा कर्ज दिया गया है। नए उद्यमियों और मुद्रा कार्ड मालिकों जैसे उद्यमियों ने तरुण उत्पाद के तहत सबसे अधिक कर्ज वितरण का लाभ उठाया है।
किशोर सेगमेंट के तहत महिला उद्यमियों को मिलने वाले कर्ज में कोरोना के बाद 2.4 गुना की तेजी आई है। शिशु में महिलाओं के खातों की संख्या 79 फीसदी से ज्यादा है जो 2016 में 98.1 फीसदी थी। रिपोर्ट का कहना है कि पीएमएमवाई में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से महिला कर्जदारों की वित्तीय स्थिति बेहतर होती है।
पिछले 6 वर्षों (2016-2022) के दौरान प्रति महिला कर्ज में 11 फीसदी की वृद्धि हुई है और यह बढ़कर 42,791 रुपये पर पहुंच गया। प्रति महिला जमा भी 10.7 फीसदी बढ़कर 61,476 रुपये पर पर पहुंच गया। इस प्रकार, पीएमएमवाई जमीनी स्तर पर महिला सशक्तिकरण के लिए एक प्रभावी शक्ति उपकरण है।
भारत का सामाजिक ताना बाना का इंडेक्स वंचितों की भागीदारी का प्रतिनिधित्व करता है। औपचारिक बैंकिंग वित्त में महिलाएं और सरकारी आवंटन में वृद्धि। वंचितों के कल्याण के लिए पिछले 5 साल में 3.2 गुना महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। बेहतर वित्तीय अनुशासन के साथ-साथ उधार लेने वाले समूहों ने लोन चुकाने में भी अच्छी भूमिका निभाई है।