यूपी के इस डीएसपी ने पहली बार अतीक अहमद की पकड़ी थी गिरहबान
मुंबई- प्रयागराज में माफिया अतीक अहमद हत्याकांड का मामला पूरे देश में गूंज रहा है। मेडिकल के लिए भाई अशरफ के साथ ले जाए जा रहे अतीक को तीन युवकों ने गोली मार दी, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद से ही अतीक के अतीत पर बहस चल पड़ी है। उसके अवैध साम्राज्य की पहली ईंट से लेकर आज तक के तमाम कारनामों को लोग याद कर रहे हैं। ऐसे में यूपी के डीएसपी धीरेंद्र राय ने पहली बार कानून के हाथों से अतीक की गिरेबान पकड़ी थी। सिर्फ अतीक ही नहीं, मायावती जैसी प्रदेश की कद्दावर शख्सियत पर भी उन्होंने शिकंजा कसा था।
उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के कसारा गांव में जन्मे धीरेंद्र राय के पिता हरदत्त राय भी पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर थे। इतना ही नहीं, धीरेंद्र के बड़े पिताजी आजाद हिंद फौज के लेफ्टिनेंट कर्नल थे। सैनिकों के परिवार से आने के कारण धीरेंद्र के स्वभाव में निर्भीकता और ईमानदारी थी, जिसकी वजह से वह आरोपियों में उनकी हैसियत के आधार पर भेद नहीं करते थे।
साल 1986 की बात है, जब राय उत्तर प्रदेश के पन्नूगंज (तत्कालीन मिर्जापुर और वर्तमान सोनभद्र) थाने में बतौर थानाध्यक्ष तैनात थे। उस समय कुख्यात अपराधी घमड़ी खरवार पूरी तरह से बिहार सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ था। उसका आतंक ऐसा था कि बिहार सरकार ने उसे जिंदा पकड़ने के लिए 50 हजार रुपये का इनाम रख दिया था। इसी दौरान घमड़ी खरवार का सामना राय और उनकी टीम से हो गया। अपनी जांबाजी से राय ने घमड़ी खरवार को जिंदा पकड़ लिया। इस उपलब्धि पर राय की टीम को बिहार सरकार ने 50 हजार रुपये की नगद धनराशि से पुरस्कृत किया।
साल 1996 में राय प्रयागराज CID में रहते हुए अशोक साहू मामले में की जांच कर रहे थे। तब माफिया अतीक अहमद को भी अंदाजा नहीं था कि वह इतनी आसानी से गिरफ्तार हो जाएगा। राय बताते हैं कि अतीक की पहुंच सत्ता और ब्यूरोक्रेसी में थी और उसे सदैव शासन का संरक्षण प्राप्त होता था। ऐसे हालात में जांच की जिम्मेदारी किसी दूसरे अफसर को दिए जाने के बाद भी धीरेंद्र राय अपनी कर्तव्यपरायणता से डिगे नहीं और पहली बार अतीक को उसके पिता के साथ गिरफ्तार किया। यह वह पहला वाकया था, जब किसी पुलिस अफसर ने अतीक पर कानूनी हाथ डाला था।
साल 1999 और 2006 के बीच सीबीआई में अपने कार्यकाल के दौरान वह मायावती के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच करने वाले अधिकारियों में से एक थे। उन्होंने न सिर्फ बड़ी मात्रा में आय से अधिक कथित संपत्ति का खुलासा किया बल्कि 2005 में मायावती से पूछताछ भी की। 10 मई, 2005 को एक अडिशनल एसपी समेत कई अधिकारी दिल्ली में मायावती के घर गए।
राय को मायावती से पूछताछ करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने 13 मॉल एवेन्यू, लखनऊ में उनके घर की भी तलाशी ली और इस सिलसिले में उनके परिवार के कई सदस्यों के साथ-साथ बसपा संस्थापक कांशीराम की बहनों से भी बात की। इसके बाद राय ने मायावती के बहुचर्चित ‘उपहार कांड’ का पता लगाया। उन्होंने पाया कि मायावती ने कांशीराम की तीन बहनों समेत कई लोगों से पैसे के रूप में ‘उपहार’ प्राप्त करने का दावा किया है। उनकी जांच में मायावती के भाई सिद्धार्थ कुमार की पत्नी के नाम पर भी संपत्ति का खुलासा हुआ।
सीबीआई उनके काम से इतनी खुश थी कि उसने उन्हें 2004 और 2005 में दो बार पुरस्कृत किया। इनाम की सिफारिश में तत्कालीन अतिरिक्त एसपी, सीबीआई, आरएम कृष्णा ने लिखा, ‘(राय) ने आय से अधिक संपत्ति की एक बड़ी संख्या का पता लगाकर सराहनीय काम किया है। इसमें बहुत सारे जोखिम शामिल थे क्योंकि दानदाता शीर्ष राजनेताओं और नौकरशाहों से जुड़े हुए थे। इसके लिए राय की ओर से बहुत समर्पण और ईमानदारी की भी आवश्यकता थी।
पुलिस पदक के लिए सिफारिश में सीबीआई एसपी ने कहा, ‘उन्होंने ताज हेरिटेज कॉरिडोर की जांच के संबंध में बहुमूल्य सहायता प्रदान की है और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती द्वारा अर्जित की गई बड़ी आय से अधिक संपत्ति का खुलासा किया है।’ साल 2005 में राय को तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने असाधारण क्षमताओं के लिए भारतीय पुलिस पदक से भी सम्मानित किया।
राय बताते हैं कि जब 22 जुलाई, 2007 को चित्रकूट में ठोकिया नामक बदमाश के एनकाउंटर में वह एसटीएफ की टीम को लीड कर रहे थे, तब रास्ते में आते समय गाड़ियों पर फायरिंग हुई थी और उसमें उनके साथ कई लोग मारे गए थे। तब सूबे की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती सरकार ने इन्हें लापरवाही, उदासीनता और निष्क्रियता के लिए निलंबित कर दिया था।
डीएसपी धीरेंद्र कुमार राय चार साल तक निलंबित रहे। इस दौरान लोगों ने इनसे यह भी कहा कि अब आप नौकरी छोड़ दीजिये, लेकिन राय को कानून पर भरोसा था। उन्होंने अपनी कानूनी लड़ाई लड़ी और सूबे की मुख्यमंत्री को कटघरे में खड़ाकर लोगों की कानून के प्रति आस्था को और भी बढ़ा दिया।
तमाम मुश्किलों और परेशानियों के बाद भी राय ने अपने नीति और सिद्धांतों पर डटे रहे और अंततः साल 2015 में सीओ क्राइम ब्रांच लखनऊ से सेवानिवृत्त हुए। अभी वो अपने गांव में रहकर जैविक खेती के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं। राय के छोटे बेटे त्रिदीप राय भारतीय बास्केटबॉल टीम के पूर्व कप्तान हैं और छोटी बहू पद्मश्री प्रशांति सिंह सोलंकी भी महिला भारतीय बस्केटबॉल टीम की पूर्व कप्तान रही हैं।