यूरोप के क्रेडिट सुइस बैंक पर डूबने का खतरा, आ सकती है मंदी की आहट 

मुंबई- अमेरिका से शुरू हुआ बैंकिंग संकट अब यूरोप की दहलीज पर पहुंच चुका है। स्विट्जरलैंड के दिग्गज बैंक क्रेडिट सुइस के शेयरों में गुरुवार को भारी गिरावट आई। इसका पूरी दुनिया के बैंकिंग शेयरों पर दिख रहा है। निवेशकों में खलबली मची हुई है। अमेरिका में निवेशक छोटे बैंकों से धड़ाधड़ पैसा निकालकर बड़े बैंकों में रख रहे हैं।  

अमेरिका में दिवालिया बैंकों का रेकॉर्ड रखने की शुरुआत साल 2001 से हुई थी। तबसे अब तक 560 बैंक डूब चुके हैं। देश में साल 2009 में 140 और वर्ष 2010 में सबसे अधिक 157 बैंक डूबे थे। उससे पहले साल 2008 में 25 बैंक डूबे थे। यह अमेरिका के आधुनिक इतिहास में सबसे बड़ा बैंकिंग संकट था। इस बार केवल दो बैंक डूबे हैं और फिर भी इतना बवाल क्यों हो रहा है? 

इसकी वजह यह है कि अमेरिका में एसेट्स के हिसाब से यह 2008 के बाद सबसे बड़ा बैंकिंग संकट है। साल 2008 में जो 25 बैंक डूबे थे उनका कंबाइंड एसेट 374 अरब डॉलर था। इस बार सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक का कंबाइंड एसेट 319 अरब डॉलर है। एक बैंक डूबने के कगार पर पहुंच गया है। फर्स्ट रिपब्लिक बैंक पर भी दिवालिया होने का खतरा मंडरा रहा है।  

पिछले साल अमेरिकी बैंकों को 620 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था। महंगाई पर काबू करने के लिए अमेरिकी फेड रिजर्व जिस तरह ब्याज दरों को बढ़ा रहा है, उससे कई और बैंकों के डूबने का खतरा पैदा हो गया है। 

अमेरिका में 2001 से अब तक छोटे-बड़े 560 बैंक डूब चुके हैं। साल 2001 में चार, 2002 में 10, 2003 और 2004 में तीन-तीन बैंक डूबे थे। इसके बाद 2007 में तीन और 2008 में 25 बैंक डूबे थे। 2008 में वॉशिंगटन म्यूचुल  डूबा था जिसकी एसेट 307 अरब डॉलर थी। इसके अलावा 32 अरब डॉलर एसेट वाला Indymac भी डूब गया था। 2009 में 140, 2010 में रेकॉर्ड 157, 2011 में 92, 2012 में 51 और 2013 में 24 बैंक डूबे थे। इसके बाद 2014 में 17 बैंक डूबे थे।  

उसके बाद से हर साल डूबने वाले बैंकों की सिंगल डिजिट में रही। लेकिन इस बार सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक के डूबने से जमाकर्ताओं में हड़कंप मचा है। लोग छोटे बैंकों से पैसा निकालकर बड़े बैंकों में जमा कर रहे हैं। जानकारों का कहना है बैंकों में डिपॉजिट कम होने से वे लोन कम देंगे। इससे इकॉनमी में पूंजी का फ्लो रुक जाएगा और मंदी की आशंका बढ़ेगी। इसका असर भारत सहित पूरी दुनिया पर देखने को मिल सकता है। 

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