दरों को बढ़ाने की रफ्तार रोकनी चाहिए,आर्थिक सुधार को हो सकता है नुकसान 

मुंबई- आरबीआई को रेपो दर को बढ़ाने की रफ्तार अब रोकनी चाहिए। उसे अमेरिका के केंद्रीय बैंक से अलग फैसला करना होगा। एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष ने शनिवार को एक कार्यक्रम में कहा कि निकट समय में अमेरिकी फेडरल रिजर्व दरों को बढ़ाने की रफ्तार को रोकने वाला नहीं है। इसलिए आरबीआई को अब इस पर सोचना होगा। 

घोष ने कहा, क्या हम अमेरिकी फेडरल के साथ कदम मिला सकते हैं? हमें रुकने और सोचने की जरूरत है कि आरबीआई ने जो पहले दरों में वृद्धि की थी, उसका प्रभाव सिस्टम में कम हो गया है। हमें लगता है कि अमेरिका का केंद्रीय बैंक अभी भी दरों में दो से तीन बार बढ़त कर सकता है। ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को खुद इस पर सोचना होगा। 

देश में महंगाई जनवरी, 2023 में बढ़कर 6.52 फीसदी हो गई, जो आरबीआई के तय ऊपरी दायरे 6 प्रतिशत से भी अधिक है। यह 2022 में 12 माह में से 10 महीनों में 6 फीसदी से ज्यादा ही रहा है। अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आरबीआई महंगाई को कम करने के लिए दरों में वृद्धि करेगा, क्योंकि हाल के दिनों में खाद्य कीमतों में बढ़त दिखी है। 

अमेरिकी फेडरल रिजर्व वास्तव में आरबीआई की तुलना में दरों को बढ़ाने में अधिक आक्रामक रहा है। पिछले साल एक मार्च से नीतिगत दरों में इसने 4.5 फीसदी की वृद्धि की है, जबकि आरबीआई ने 2.5 फीसदी की बढ़त की है। यदि आप 2008 के चक्र को देखें, तो आप देखेंगे कि केंद्रीय बैंकों ने दरों में वृद्धि की, लेकिन जब उन्होंने दरों में कटौती की, तो यह देशों के कारकों के आधार पर किया गया। आरबीआई को यह सोचने की जरूरत है कि क्या हम फेड से अलग हो सकते हैं या देखें कि क्या हम उनके साथ तालमेल बिठा रहे हैं। 

उन्होंने कहा कि आरबीआई ने मई 2022 से ब्याज दरों में 2.5 फीसदी की बढ़ोतरी की है और यह चक्र अभी भी चल रहा है। अभी रेपो रेट 6.50 फीसदी है। हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि इस दर वृद्धि चक्र का अंत हो और यह डेटा पर निर्भर होना चाहिए। अन्यथा किसी समय यह भारत की आर्थिक सुधार को नुकसान पहुंचा सकता है। 

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