ऑटो क्षेत्र की पीएलआई योजना की होगी कड़ी जांच, कंपनियों ने बोगस तरीके से उठाया फायदा
नई दिल्ली। ऑटोमोबाइल और ऑटो कलपुर्जों के क्षेत्र के लिए 25,938 करोड़ रुपये की उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना की जांच में तेजी लाई जाएगी। इसके तहत कंपनियों ने बोगस तरीके से फायदा उठाया था। इसकी शिकायत मिलने पर पहले से ही इसकी जांच हो रही है।
फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम) के तहत सरकार ने इस योजना को शुरू किया था। यह कदम ऐसे समय में आया है जब एक दर्जन इलेक्ट्रिक दोपहिया निर्माताओं के खिलाफ स्थानीयकरण दिशानिर्देशों का पालन नहीं करने और आयातित घटकों का उपयोग करने के आरोपों के बीच जांच चल रही है। इन कंपनियों ने चीन से कलपुर्जे आयात कर स्थानीयकरण के नाम पर सब्सिडी का फायदा ले रही थीं। इसमें एथर, ओला, टीवीएस मोटर और विडा अलग-अलग अपने ईवी के कथित गलत मूल्य निर्धारण के लिए जांच के दायरे में हैं।
इसके लिए एक समिति बनाई गई है, जिसमें चार केंद्रीय वाहन परीक्षण एजेंसियों और सार्वजनिक क्षेत्र की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी आईएफसीआई के प्रतिनिधि शामिल हैं। वाहन परीक्षण एजेंसियों में इंटरनेशनल सेंटर फॉर ऑटोमोटिव टेस्टिंग (आईसीएटी, मानेसर), ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एआरएआई, पुणे), जीएआरसी (ग्लोबल ऑटोमोटिव रिसर्च सेंटर, ओरगदम), और नेशनल ऑटोमोटिव टेस्ट ट्रैक्स (एनएटीआरएक्स, पीथमपुर) शामिल हैं।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि यह जांच यह सुनिश्चित करने के लिए है कि क्या जो दावा कंपनियों ने किया है, वह सही है या नहीं। फेम कार्यक्रम के तहत, उन इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के लिए सब्सिडी का दावा नहीं किया जा सकता है, जिनकी एक्स-फैक्टरी कीमत 1.50 लाख रुपये से अधिक है। यह आरोप लगाया गया है कि इन निर्माताओं ने सब्सिडी के लिए वाहनों की कीमत कम रखने के लिए ग्राहकों को अलग से चार्जर और सॉफ्टवेयर का बिल दिया।