आरबीआई ने कहा, फॉरेक्स बाजार को नई चुनौतियों का करना होगा सामना 

मुंबई। भारत को विदेशी मुद्रा बाजार में उभरने वाली अस्थिरता का प्रबंधन करने के लिए कमर कसने की जरूरत है, क्योंकि देश रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में आगे बढ़ रहा है। आने वाले समय में बाजार तेजी से विकसित होंगे। इससे एक दूसरे से उनका जुड़ाव बढ़ेगा और उत्पादों का भी विस्तार होगा। ऐसे में भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार (फॉरेक्स) के लिए नई चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने कहा, भारतीय बैंक विदेश में अपने कारोबार का विस्तार कर रहे हैं। इससे नए मोर्चे पर उनको चुनौतियां मिलेंगी। 

मिस्र में फॉरेन एक्सचेंज डीलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के एक कार्यक्रम में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर राव ने कहा कि घरेलू बाजार में अप्रवासियों की भागीदारी बढ़ रही है। इससे टेक्नोलॉजी बदल रही है जिससे बाजार में काम करने के तरीके में भी बदलाव आ रहा है। विदेशी विनिमय बाजार के भागीदारों को इस बदलाव और संबंधित जोखिम के प्रबंधन के लिए तैयार रखना होगा। हालांकि, आरबीआई देश और दुनिया में मैक्रो वित्तीय माहौल में बदलाव को ध्यान में रखकर आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत है। 

राव ने कहा, विदेशी मुद्रा बाजार में ज्यादा उतार-चढ़ाव होने पर आरबीआई सरकारी बैंकों के जरिये हस्तक्षेप करता है। यानी अगर रुपया ज्यादा गिरा तो डॉलर बेचा जाता है और रुपया ज्यादा मजबूत होता है तो डॉलर खरीदा जाता है। अंतरराष्ट्रीयकरण के अपने लाभ हो सकते हैं, लेकिन इसके साथ जोखिम भी है। इसमें मुद्राओं में उतार-चढ़ाव का प्रबंधन करना प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय बैंक विदेशी बाजारों में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहे हैं। हालांकि, कुछ देशों के साथ रुपये में कारोबार शुरू हुआ है और इसमें और देशों की भी दिलचस्पी दिख रही है। अगर ई-रूपी तेजी से बढ़ता तो इसके अपने फायदे हो सकते हैं। 

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