वेदांता को झटका, सरकार ने कहा हिस्सा बेचने का करेंगे विरोध
मुंबई- अनिल अग्रवाल के वेदांता समूह की कर्ज घटाने की योजनाओं को बड़ा झटका लगा है। कर्ज घटाने के लिए समूह अपनी जिंक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को बेचने तैयारी में है। भारत सरकार ने कहा है कि वह इस बिक्री का विरोध करेगी।
वेदांता समूह, टीएचएल को अपनी सहयोगी कंपनी हिंदुस्तान जिंक को 2.98 अरब डॉलर में बेचना चाहती है। यह सौदा 18 माह के दौरान कई चरणों में पूरा होना था। सरकार वेदांता को इस यूनिट को बेचने से रोकने के लिए कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है। हिंदुस्तान जिंक में भारत सरकार की 30 फीसदी हिस्सेदारी है। वेदांता के पास 64.92 फीसदी हिस्सा है।
हिंदुस्तान जिंक ने सरकार के उस पत्र की एक कापी स्टॉक एक्सचेंज को दी है, जिसमें सरकार ने कहा है कि अगर कंपनी इस सौदे पर आगे बढ़ती है तो वह सभी कानूनी रास्ते तलाशेगी। कंपनी ने कहा कि वह इस पत्र को बोर्ड के समक्ष रखेगी। सौदे को मंजूरी देने के लिए शेयरधारकों की बैठक बुलाई जानाी बाकी है।
अनिल अग्रवाल लंदन में रहते हैं। इस सौदे से मिले पैसे का इस्तेमाल वे वेदांता रिसोर्सेज का कर्ज घटाने के लिए करना चाहते हैं। एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि अगर समूह 16 हजार करोड़ जुटा पाने या अंतरराष्ट्रीय जिंक परिसंपत्तियों को बेचने में असफल रहा तो कंपनी के कर्ज से जुड़ी रेटिंग दबाव में आ सकती है।
हिंदुस्तान जिंक 2002 तक सरकारी कंपनी थी। अप्रैल, 2002 में सरकार ने हिंदुस्तान जिंक में 26 फीसदी हिस्सेदारी स्टरलाइट अपॉरच्यूनिटीज एंड वेंचर्स लि. (एसओवीएल) को 445 करोड़ रुपये में बेची थी। इससे वेदांता समूह के पास कंपनी का प्रबंधन नियंत्रण आ गया था। वेदांता समूह ने बाद में बाजार से कंपनी की 20 फीसदी और हिस्सेदारी खरीदी थी। इसके बाद नवंबर, 2003 में समूह ने सरकार से कंपनी का 18.92 फीसदी हिस्सा और ले लिया। इससे वेदांता की हिस्सेदारी बढ़कर 64.92 फीसदी हो गई।