ईसीएलजीएस से 6.6 करोड़ लोगों की आजीविका को बचाने में मिली मदद
मुंबई- कोरोना के बाद सरकार द्वारा शुरू की गई आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) के कारण 14.6 लाख एमएसएमई बच गईं। अगर यह स्कीम नहीं होती तो यह कंपनियां डूब जातीं या बुरे फंसे कर्ज यानी एनपीए में चली जातीं। इससे 1.65 करोड़ लोग बेरोजगार हो सकते थे। हालांकि, इस पूरी योजना से कुल 6.6 करोड़ लोगों की (अगर हर परिवार में चार सदस्य हैं) आजीविका बच गई। एसबीआई की सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। 30 सितंबर, 2022 तक इस योजना के तहत कुल 2.82 लाख करोड़ रुपये कर्ज दिए गए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) के 2.2 लाख करोड़ रुपये के खाते इसी दौरान इस योजना के कारण सुधर गए। इसका मतलब यह हुआ कि इस उद्योग का 12 फीसदी कर्ज एनपीए में जाने से बच गया। 2020 में सरकार ने एमएसएमई के लिए उद्यम पोर्टल शुरू किया जहां पर पंजीकरण से ढेर सारे फायदे मिलते हैं। इसका फायदा यह हुआ कि जहां देश में जीएसटी में केवल 1.40 करोड़ कंपनियां पंजीकृत हैं, वहीं इस पोर्टल पर 1.33 करोड़ कंपनियां रजिस्टर्ड हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इस योजना से एमएसएमई अब बड़ी बन रही हैं। इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि एमएसएमई इकाइयाँ 250 करोड़ के टर्नओवर की सीमा को पार करने वाली कई इकाइयों के साथ बड़ी होती जा रही हैं। हालांकि, चीन की तुलना में अभी भी भारत में इनकी संख्या कम है। चीन में 14 करोड़ और भारत में 6.4 करोड़ एमएसएमई हैं। भारत की 90 फीसदी कंपनियां सूक्ष्म कैटेगरी की हैं और इन्हें बड़ा करने की जरूरत है। अगर ये बड़ा हो जाती हैं तो यह एक क्रांति हो सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस क्षेत्र को लगातार बैंकों की ओर से कर्ज मिल रहा है। 2015-16 में जहां कुल कर्ज 12 लाख करोड़ रुपये था वह 2021-22 में 20 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया है। हालांकि, कोरोना में इस सेक्टर को जो भी नुकसान हुआ था, उससे अब कंपनियां उबर रही हैं। खासकर टेक्सटाइल्स, ट्रांसपोर्ट, मेटल, खाद्य तेल, केमिकल, कंज्यूमर ड्यूरेबल जैसे क्षेत्र उबर चुके हैं।
एसबीआई रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और जम्मू कश्मीर में ऐसी सैकड़ों कंपनियां हैं, जो मार्च, 2020 के कोरोना में प्रभावित नहीं हुईं और इनको पूरा कर्ज मिलता रहा। हालांकि, योजना का सबसे ज्यादा फायदा गुजरात की कंपनियों को मिला और फिर महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उसके बाद उत्तर प्रदेश है।
देश में कुल 6.3 करोड़ सूक्ष्म कंपनियां हैं जबकि 3.3 लाख छोटी और 0.01 लाख मध्यम कंपनियां हैं। इसमें से गांवों में 3.25 करोड़ और शहरों में 3.09 करोड़ हैं।