डिजिटल रुपये में कारोबारी नहीं ले रहे दिलचस्पी, एक माह बाद भी नहीं उत्साह
मुंबई- अंतर-बैंक और संस्थागत लेनदेन के लिए थोक डिजिटल रुपये में कारोबारियों की कोई दिलचस्पी नहीं दिख रही है। एक नवंबर को लॉन्च पायलट प्रोजेक्ट से बैंकरों को ऐसा पता चला है। सात बैंकरों ने बताया, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के ई-रुपये का उपयोग इंटरनेट-आधारित बैंकिंग के समान ही है। इसलिए ग्राहकों को इसमें कुछ नया नहीं दिख रहा है।
आरबीआई ने ई-रुपया को मूल रूप से नकदी के डिजिटल विकल्प के रूप में तैयार किया है। लेकिन प्रारंभिक परीक्षण में बैंक ही एक दूसरे के साथ निपटान के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं। बैंकरों के अनुसार, इसका उनको कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। ई-रुपया में दुनिया भर में आजमाई जा रही कई केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राओं (सीबीडीसी) में एक खामी है। इसका उपयोग करने वाले प्रत्येक कारोबार को व्यक्तिगत रूप से निपटाना पड़ता है, जबकि पहले इंटरबैंक भुगतान प्रणाली में सारे ट्रेड एक साथ जमा किया जाते थे और फिर उन्हें थोक में ही क्लियरिंग कॉरपोरेशन के जरिये सेटल कर दिया जाता था।
एक निजी बैंक अधिकारी ने कहा, इंटरनेट आधारित लेनदेन का कोई फायदा नहीं है। ई-रुपया लेनदेन पहले से पूरी तरह से स्थापित प्रक्रियाओं को बदल नहीं रहा है, बल्कि वे बैंकों के लेखा कार्य में एक और प्रक्रिया के रूप में जुड़ रहा है। अधिकारी ने कहा, फिलहाल यह सक्षम नहीं है। इसमें कारोबार बहुत कम हो रहा है। जिसका मतलब है कि हमें नकदी का प्रबंधन भी करना होगा और इसके परिणामस्वरूप अधिक कागजी कार्रवाई और अतिरिक्त मेहनत होगी।
बैंकरों ने कहा कि वे शुरू में उत्साहित थे लेकिन अब सोच रहे हैं कि क्या वित्तीय संस्थान ई-रुपये का उपयोग जारी रखना चाहेंगे। एक बैंकर ने कहा, मुझे नहीं लगता कि एक बार पायलट पूरा हो जाने के बाद बिना आरबीआई के दबाव के बैंक इसका इस्तेमाल करना चाहेंगे। बैंक परीक्षण के दौरान इसका उपयोग सरकारी प्रतिभूतियों में कारोबार करने के लिए कर रहे हैं।
गुरुवार को 2.1 अरब रुपये का बॉन्ड में कारोबार ई-रूपी के जरिये हुआ। पहले दो हफ्तों में प्रतिदिन 5 से 6 बिलियन रुपये तक की ट्रेडिंग हुई थी। यूपीआई के स्पष्ट फायदे हैं, जिससे यह यह इतना लोकप्रिय हुआ। जब आपके पास पहले से ही डिजिटल लेन-देन का एक सुचारू साधन है तो बदलाव स्वाभाविक रूप से नहीं आ सकता है।